Header Ads Widget

Chaturthi vibhakti ki upapad vibhaktiyan । चतुर्थी विभक्ति की उपपद विभक्तियाँ । उपपद विभक्तियाँ संस्कृत । sanskrit upapad vibhaktiyan

चतुर्थी  विभक्ति की उपपद विभक्तियाँ

Chaturthi vibhakti ki upapad vibhaktiyan


       उपपद विभक्ति का यह तृतीय भाग है । प्रथम भाग की पोस्ट में “द्वितीया विभक्ति की उपपद विभक्तियों” के बारे में तथा द्वितीय भाग की पोस्ट में “तृतीया विभक्ति की उपपद विभक्तियों” के बारे में विस्तार से बताया  गया है । दोनों पोस्ट का लिंक नीचे दिया जा रहा है । आप लिंक पर क्लिक करके जानकारी प्राप्त कर सकते हैं-

 

द्वितीया विभक्ति की उपपद विभक्तियाँ

तृतीया विभक्ति की उपपद विभक्तियाँ


    संस्कृत भाषा में वाक्यों का निर्माण दो प्रकार की विभक्तियों से होता है- 1. कारक विभक्तियाँ  2. उपपद विभक्तियाँ 

क्रम से दोनों के बारे में समझते हैं-

 

1. कारक विभक्तियाँ-

       कारकों के  लक्षण के अधार पर वाक्य में जहाँ पर विभक्ति का प्रयोग किया जाता है, उसे कारक विभक्ति कहते हैं । जैसे करण कारक की परिभाषा है- “क्रिया की सिद्धि में जो अत्यन्त सहायक होता है, उसे करण कारक कहते हैं । करण कारक में तृतीया विभक्ति होती है । करण कारक के चिह्न- ‘से, के द्वारा, के साथ’ हैं ।”

       यदि इस नियम के अधार पर वाक्य का निर्माण होगा तो वाक्य में कारक विभक्ति होगी । उदाहरण-

(क) मोहन बस से विद्यालय जाता है ।

      मोहन: बसयानेन विद्यालयं गच्छति ।

       इस वाक्य में “बस” करण कारक है, अत: यहाँ पर “बस” में तृतीया विभक्ति का प्रयोग हुआ है ।

 

2. उपपद विभक्तियाँ- 

       वाक्य में जब किसी विशेष पद (शब्द) के कारण कोई विभक्ति आती है, उसे उपपद विभक्ति कहते हैं । उपपद विभक्ति में कारक विभक्ति का प्रयोग नहीं करते हैं । जैसे-

(क) गाँव के चारों ओर पेड़ हैं ।

      ग्रामं अभित: वृक्षा: सन्ति ।

       इस वाक्य में ‘अभित:’ उपपद शब्द है, अभित: के योग में द्वितीया विभक्ति होती है । अभित: का अर्थ है “चारों ओर” । ‘चारों ओर’ का प्रभाव गाँव शब्द पर पड़ रहा है । अत: गाँव शब्द में द्वितीया विभक्ति (ग्रामं) हुई है ।

       यदि हम कारक के नियम के अनुसार देखें तो ‘गाँव’ के साथ ‘के’ कारक चिह्न है और ‘के’ चिह्न ‘सम्बन्ध’ का होता है, सम्बन्ध में षष्ठी विभक्ति होती है, परन्तु ऊपर के वाक्य में ‘अभितः’ के कारण द्वितीया विभक्ति हुई है ।

 

अब चतुर्थी विभक्ति की उपपद विभक्तियों को विस्तार से समझते हैं-

 

सम्प्रदान कारक का सूत्र-

“कर्मणा यमभिप्रैति स सम्प्रदानम्”- दान के कर्म के द्वारा कर्ता जिसे सन्तुष्ट करता है, उसे सम्प्रदान कारक कहते हैं ।

 

चतुर्थी विभक्ति का सूत्र-

“चतुर्थी सम्प्रदाने”- सम्प्रदान कारक में चतुर्थी विभक्ति होती है ।

 

चतुर्थी विभक्ति की उपपद विभक्तियाँ-


नियम- 1- “रुच्यर्थानां प्रीयमाणः”

       रुच् तथा रुच् अर्थ देने वाली धातुओं के योग में प्रसन्न होने वाला सम्प्रदान कहलाता है तथा उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है । जैसे-

बच्चे को लड्डू अच्छा लगता है ।

बालकाय मोदकं रोचते ।

रमा को फिल्म अच्छी लगती है ।

रमायै चलचित्रं रोचते ।

 

नियम- 2 “धारेरुत्तमर्णः”

       णिजन्त धृञ् (धारि-कर्ज लेना या उधार देना) धातु के अर्थ में कर्ज देने वाले की सम्प्रदान संज्ञा होती है व उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है । जैसे-

अजय ने रमेश से सौ रुपये ऋण लेता है ।

अजयः रमेशाय शतं धारयति ।

लता सीता से हजार रुपये ऋण लेती है ।

लता सीतायै सहस्रं धारयति ।

 

नियम- 3 “स्पृहेरीप्सितः”

       स्पृह् ( चाहना) धातु के योग में जिसे चाहा जाता है, वह सम्प्रदान कहलाता है और उसमें चतुर्थी विभाक्ति होती है । जैसे-

महिला बच्चे की चाहत करती है ।

महिला शिशवे स्पृहयति ।

कंजूस धन चाहता है ।

कृपणः धनाय स्पृहयति ।

 

नियम- 4 “क्रुधद्रुहेर्ष्यार्थानां यं प्रति कोपः

       क्रुध्, द्रुह्, ईर्ष्य्, असूय् धातुओं के योग में तथा इन धातुओं के समान अर्थ वाले धातुओं के योग में  जिस पर क्रोध किया जाता है उसमें चतुर्थीय् विभक्ति होती है । जैसे-

क्रुध्- गुस्सा करना

शिक्षक छात्रों पर गुस्सा करता है ।

शिक्षकः छात्रेभ्यः क्रुध्यति ।


द्रुह्- द्रोह करना

दुष्ट सज्जनों से द्रोह करते हैं ।

दुर्जनाः सज्जनेभ्यः द्रुह्यन्ति ।


ईर्ष्य्- ईर्ष्या करना

उमेश रमेश से ईर्ष्या करता है ।

उमेशः रमेशाय ईर्ष्यति ।


असूय्- कमी निकालना

दुष्ट सज्जन में कमियाँ निकालता है ।

खलः सज्जनाय असूयति ।

विशेष- जब क्रुध् व द्रुह् धातुओं से पूर्व उपसर्ग होगा, तब जिसके प्रति क्रोध किया जाएगा वह कर्म संज्ञक होगा ।

 

नियम- 5 “राधीक्ष्योर्यस्य विप्रश्नः”

       शुभाशुभ अर्थ में राध् और ईक्ष् धातुओं के प्रयोग में जिनके विषय में प्रश्न पूछा जाता है उनकी सम्प्रदान संज्ञा होती है । जैसे-

भरत राम का शुभाशुभ पूछते हैं ।

भरतः रामाय राध्यति/ईक्षते ।

 

नियम- 5 “प्रत्यङ्भ्यां श्रुवः पूर्वस्य कर्ता”

       प्रति और आ उपसर्ग पूर्वक श्रु धातु के साथ जिसके लिए प्रतिज्ञा की जाती है उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है । जैसे-

राजा गरीब को धन देने की प्रतिज्ञा करता है ।

राजा निर्धनाय धनं प्रतिशृणोति/ आशृणोति ।

 

नियम- 6 “तुमर्थाच्च भाववचनात्”

       तुमुन् प्रत्यय जोड़ने से किसी धातु का जो अर्थ निकलता है उसको प्रकट करने के लिए भाववाचक संज्ञा का प्रयोग करने पर उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है । जैसे-

छात्र पढने के लिए पुस्तक खरीदता है ।

छात्रः पठनाय (पठितुं) पुस्तकं क्रीणाति ।

 

नियम- 7 “नमः स्वस्तिस्वाहास्वधाऽलंवषड्योगाच्च”

       नमः, स्वस्ति, स्वाहा, स्वधा, अलम्, वषट् शब्दों के योग में चतुर्थी विभक्ति होती है । जैसे-

नमः- नमस्कार

शिव के लिए नमस्कार ।

शिवाय नमः ।


स्वस्ति- कल्याण

राजा का कल्याण हो ।

नृपाय स्वस्ति ।


स्वाहा- आहुति

अग्नि को यह आहुति है ।

अग्नये स्वाहा ।


स्वधा- तर्पण ( पितरों को अन्न)

पितरों के लिए अन्न ।

पितृभ्यः स्वधा ।


वषट्- हविर्दान

इन्द्र को हविर्दान ।

इन्द्राय वषट् ।


अलम्- समर्थ या पर्याप्त

दैत्यों को मारने के लिए हरि समर्थ हैं ।

दैत्येभ्यः हरि अलम् ।

 

धन्यवाद ।

Post a Comment

0 Comments