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द्वितीया विभक्ति की उपपद विभक्तियाँ

Dwiteeya vibhakti ki upapad vibhaktiyan
upapad vibhaktiya

 

       संस्कृत भाषा में वाक्यों का निर्माण दो प्रकार की विभक्तियों से होता है- 1. कारक विभक्तियाँ  2. उपपद विभक्तियाँ 

क्रम से दोनों के बारे में समझते हैं-

 

1. कारक विभक्तियाँ-

       कारकों के  लक्षण के अधार पर वाक्य में जहाँ पर विभक्ति का प्रयोग किया जाता है, उसे कारक विभक्ति कहते हैं । जैसे करण कारक की परिभाषा है- “क्रिया की सिद्धि में जो अत्यन्त सहायक होता है, उसे करण कारक कहते हैं । करण कारक में तृतीया विभक्ति होती है । करण कारक के चिह्न- ‘से, के द्वारा, के साथ’ हैं ।”

       यदि इस नियम के अधार पर वाक्य का निर्माण होगा तो वाक्य में कारक विभक्ति होगी । उदाहरण-

(क) मोहन बस से विद्यालय जाता है ।

      मोहन: बसयानेन विद्यालयं गच्छति ।

     इस वाक्य में “बस” करण कारक है, अत: यहाँ पर “बस” में तृतीया विभक्ति का प्रयोग हुआ है ।

 

2. उपपद विभक्तियाँ- 

       वाक्य में जब किसी विशेष पद (शब्द) के कारण कोई विभक्ति आती है, उसे उपपद विभक्ति कहते हैं । उपपद विभक्ति में कारक विभक्ति का प्रयोग नहीं करते हैं । जैसे-

(क) गाँव के चारों ओर पेड़ हैं ।

      ग्रामं अभित: वृक्षा: सन्ति ।

       इस वाक्य में ‘अभित:’ उपपद शब्द है, अभित: के योग में द्वितीया विभक्ति होती है । अभित: का अर्थ है “चारों ओर” । ‘चारों ओर’ का प्रभाव गाँव शब्द पर पड़ रहा है । अत: गाँव शब्द में द्वितीया विभक्ति (ग्रामं) हुई है ।

       यदि हम कारक के नियम के अनुसार देखें तो ‘गाँव’ के साथ ‘के’ कारक चिह्न है और ‘के’ चिह्न ‘सम्बन्ध’ का होता है, सम्बन्ध में षष्ठी विभक्ति होती है, परन्तु ऊपर के वाक्य में ‘अभितः’ के कारण द्वितीया विभक्ति हुई है ।

 

कर्म संज्ञा सूत्र-

       “कर्तुरीप्सिततमं कर्म” – अर्थात् कर्ता अपनी क्रिया के द्वारा जिस पदार्थ को सर्वाधिक प्राप्त करना चाहता है, उस कारक को “कर्म” कहते हैं ।

 

द्वितीया विभक्ति का सूत्र-

       “कर्मणि द्वितीया” – कर्म कारक में द्वितीया विभक्ति होती है ।

 

कर्म संज्ञा के प्रमुख नियम-


नियम- “तथायुक्तं चानीप्सितम्”

       कुछ पदार्थ ऐसे भी होते हैं जो कर्ता को अनीप्सित (अप्रिय)  होते हुए भी ईप्सित (प्रिय) की तरह क्रिया से सम्बद्ध रहते हैं, अतः उनकी भी कर्म संज्ञा होती है । जैसे-

गाँव जाते हुए तिनके को छूता है ।

ग्रामं गच्छन् तृणं स्पृशति ।

       इस वाक्य में गाँव जाना कर्ता को ईप्सित है अत: गाँव कर्म संज्ञक है, परन्तु तिनके को छूना कर्ता को ईप्सित नहीं है, फिर भी तिनका कर्म संज्ञक है ।

 

नियम- “अधिशीङ्स्थाऽऽसां कर्म”

 अधि उपसर्ग पूर्वक “ शी, स्था, आस्” धातुओं के आधार को कर्म संज्ञा होती है । जैसे-

हरि वैकुण्ठ में रहते हैं ।

हरिः वैकुण्ठं अधिशेते/ अधितिष्ठति/अध्यास्ते ।

 

नियम-   “अभिनिविशश्च”

       यदि ‘विश्’ धातु से पूर्व एक साथ ‘अभि’ और ‘नि’ उपसर्ग आते हैं तो अधार में कर्म कारक होता है ।

रमेश सन्मार्ग का अनुसरण करता है ।

रमेश: सन्मार्गम् अभिनिविशते ।

 

नियम-   “उपान्वध्याङ्वसः”

यदि वस् धातु से पूर्व ‘उप, अनु, अधि, आ’ इनमें से कोई भी उपसर्ग आया हो तो क्रिया का अधार कर्म होगा । जैसे-

विष्णु वैकुण्ठ में वास करते हैं ।

विष्णु वैकुण्ठम् अधिवसति/उपवसति/आवसति/अनुवसति ।

 

अब द्वितीया विभक्ति की उपपद विभक्तियों को विस्तार से समझते हैं-

नियम- 1- “अन्तरान्तरेण युक्ते”

       ‘अन्तरा’ और ‘अन्तरेण’ के योग में द्वितीया विभक्ति होती है । वाक्य प्रयोग-


अन्तरा- बीच में

विद्यालय और घर के बीच में तालाब है ।

विद्यालयं गृहं च अन्तरा सरोवर: अस्ति ।

 

अन्तरेण- बिना, विषय में, छोड़कर

वायु के बिना जीवन नहीं है ।

वायुम् अन्तरेण जीवनं नास्ति ।

मैं श्याम के विषय में नहीं जानता हूँ ।

अहं श्यामम् अन्तरेण न जानामि ।

महेश ने आम को छोड़कर कुछ भी नहीं खाया ।

महेश: आम्रम् अन्तरेण किमपि न अखादत् ।

 

नियम 2- “अभित: परित: समया निकषा हा प्रतियोगेऽपि”

       “अभित:, परित:, समया, निकषा, हा, प्रति” के योग में द्वितीया विभक्ति होती है ।


अभित:- चारों ओर

गाँव के चारों ओर जंगल है ।

ग्रामम् अभित: वनं अस्ति

 

परित:- सब ओर

हमारे सब ओर हवा है ।

अस्मान् परित: वायु: अस्ति ।

 

समया/निकषा- समीप (नजदीक)

विद्यालय के समीप घर है ।

विद्यालयं समया/निकषा गृहम् अस्ति ।

 

हा- अफसोस होना

अफसोस है दुष्ट पर जो चोरी करता है ।

हा दुष्टं य: चौरकार्यं करोति ।

 

प्रति- ओर, तरफ

छात्र विद्यालय की ओर/तरफ जाते हैं ।

छात्रा: विद्यालयं प्रति गच्छन्ति ।

 

नियम- 3

“उभयत:, सर्वत:, धिक्, उपर्युपरि, अधोऽध:, अध्यधि, ऋते” शब्दों की जिससे नजदीकी पाई जाती है उसमें द्वितीया विभक्ति होती है ।

 

उभयत:- दोनों ओर

नदी के दोनों ओर पेड़ हैं ।

नदीम् उभयत: वृक्षा: सन्ति ।

 

सर्वत:- सभी ओर

पहाड़ के सभी ओर बर्फ है ।

पर्वतं सर्वत: हिमम् अस्ति ।

 

उपर्युपरि- ठीक ऊपर

वृक्ष के ठीक ऊपर पक्षी हैं ।

वृक्षम् उपर्युपरि खगा: सन्ति ।

 

अधोऽध:/अध्यधि- ठीक नीचे

पृथ्वी के ठीक नीचे पाताल लोक है ।

पृथ्वीं अधोऽधः/अध्यधि पाताललोकः अस्ति ।

 

ऋते- बिना

राम के बिना रावण को कोई नहीं मार सकता ।

रामं ऋते कोऽपि रावणं हन्तुं न समर्थ: ।

 

नियम- 4  “कालाध्वनोरत्यन्तसंयोगो”

       समय और मार्गवाची शब्दों में द्वितीया विभक्ति होती है, यदि अन्त तक पूरे समय या मार्ग का ज्ञान न हो ।


कालवाची

सुरेश ने पूरे पाँच वर्षों तक पढा ।

सुरेशः पंच वर्षाणि अपठत् ।

 

मार्गवाची-

गंगा नदी पूरे एक कोश तक टेढी है ।

गंगा क्रोशं कुटिला ।

 

नियम- 5

“दुह्याच् पच् डण्ड् रुधि प्रच्छि चि ब्रू शासु जिमथमुषाम्”
कर्मयुक् स्यादकथितं तथा स्यान्नीहृकृष्वहाम् ॥

       “दुह्, याच्, पच्, डण्ड्, रुध्, प्रच्छ्, चि, ब्रू, शास्, जि,मथ्, मुष्, नी, हृ, कृष्, वह्” इन द्विकर्मक धातुओं के योग में द्वितीया विभक्ति होती है ।

 

दुह्- दुहना

ग्वाला गाय से दूध दुहता है ।

गोपः गां पयः दोग्धि ।

 

याच्- माँगना

गरीब अमीर से खाना माँगत है ।

निर्धन: धनिकं भोजनं याचते ।

 

पच्- पकाना

राम आटे से रोटी पकाता है ।

राम: गोधूमचूर्णं रोटिकां पचति ।

 

डण्ड्- सजा देना

राजा चोर को सौ रुपये जुर्माना करता है ।

नृप: चौरं शतं दण्डयति ।

 

रुध्- घेरना

गाय को व्रज में घेरता है ।

गां व्रजम् अवरुणद्धि ।

 

प्रच्छ्- पूछना

दिनेश सैनिक से रास्ता पूछता है ।

दिनेशः सैनिकं मार्गं पृच्छति ।

 

चि- चुनना

बालक पेड़ से फल चुनता है ।

बालकः वृक्षं फलं चिनोति ।

 

ब्रू- बोलना

गुरु शिष्य से धर्म की बातें करता है ।

गुरु: शिष्यं धर्मं ब्रूते ।

 

शास्- शासन करना
गुरु शिष्य को धर्म की बात बताता है ।

गुरुः शिष्यं धर्मं शास्ति ।

 

जि- जीतना

राजा दुश्मन से  राज्य जीतता है ।

राजा शत्रुं राज्यं जयति ।

 

मथ्- मथना

अमृत के लिए समुद्र को मथता है ।

सुधां क्षीरनिधिं मथ्नाति ।

 

मुष्- चोरना

चोर अमीर के हजार रुपये चुराता है ।

चौरः धनिकं सहस्रं मुष्णाति ।

 

नी- ले जाना

छात्र पुस्तक को गाँव ले जाता है ।

छात्रः पुस्तकं ग्रामं नयति ।

 

हृ- चुराना

चोर राजा का धन चुराता है ।

चौरः राजानं धनं हरति ।

 

कृष्- खोदना

लोग धरती को रत्नों के लिए खोदते हैं ।

जनाः धरां रत्नानि कर्षन्ति ।

 

वह्- ले जाना

वह बकरी को गाँव ले जाता है ।

सः अजां ग्रामं वहति ।


धन्यवाद ।

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