तृतीया विभक्ति की उपपद विभक्तियाँ
उपपद विभक्ति का यह द्वितीय भाग है । प्रथम भाग की पोस्ट में “द्वितीया विभक्ति की उपपद विभक्तियों” के बारे में बताया गया है । द्वितीया विभक्ति की उपपद विभक्तियों की पोस्ट का लिंक नीचे दिया जा रहा है । आप लिंक पर क्लिक करके जानकारी प्राप्त कर सकते हैं-
द्वितीया विभक्ति की उपपद विभक्तियाँ
संस्कृत भाषा में वाक्यों का निर्माण दो प्रकार
की विभक्तियों से होता है- 1. कारक विभक्तियाँ
2. उपपद विभक्तियाँ ।
क्रम
से दोनों के बारे में समझते हैं-
1. कारक विभक्तियाँ-
कारकों के
लक्षण के अधार पर वाक्य में जहाँ पर विभक्ति का प्रयोग किया जाता है, उसे कारक
विभक्ति कहते हैं । जैसे करण कारक की परिभाषा है- “क्रिया की सिद्धि में जो अत्यन्त
सहायक होता है, उसे करण कारक कहते हैं । करण कारक में तृतीया विभक्ति होती है । करण
कारक के चिह्न- ‘से, के द्वारा, के साथ’ हैं ।”
यदि इस नियम के अधार पर वाक्य का निर्माण होगा
तो वाक्य में कारक विभक्ति होगी । उदाहरण-
(क)
मोहन बस से विद्यालय जाता है ।
मोहन: बसयानेन विद्यालयं गच्छति ।
इस वाक्य में “बस” करण कारक है, अत: यहाँ पर
“बस” में तृतीया विभक्ति का प्रयोग हुआ है ।
2. उपपद विभक्तियाँ-
वाक्य में जब किसी विशेष पद (शब्द) के कारण
कोई विभक्ति आती है, उसे उपपद विभक्ति कहते हैं । उपपद विभक्ति में कारक विभक्ति का
प्रयोग नहीं करते हैं । जैसे-
(क)
गाँव के चारों ओर पेड़ हैं ।
ग्रामं अभित: वृक्षा: सन्ति ।
इस वाक्य में ‘अभित:’ उपपद शब्द है, अभित: के
योग में द्वितीया विभक्ति होती है । अभित: का अर्थ है “चारों ओर” । ‘चारों ओर’ का प्रभाव
गाँव शब्द पर पड़ रहा है । अत: गाँव शब्द में द्वितीया विभक्ति (ग्रामं) हुई है ।
यदि हम कारक के नियम के अनुसार देखें तो ‘गाँव’
के साथ ‘के’ कारक चिह्न है और ‘के’ चिह्न ‘सम्बन्ध’ का होता है, सम्बन्ध में षष्ठी
विभक्ति होती है, परन्तु ऊपर के वाक्य में ‘अभितः’ के कारण द्वितीया विभक्ति हुई है
।
अब
तृतीया विभक्ति की उपपद विभक्तियों को विस्तार से समझते हैं-
करण कारक का सूत्र-
“साधकतमं करणं”- क्रिया
की सिद्धि में जो अत्यन्त सहायक हो, उसे करण कारक कहते हैं ।
तृतीया विभक्ति का सूत्र-
“कर्तृकरणयोस्तृतीया”-
करण में तृतीया विभक्ति होती है और कर्मवाच्य व भाववाच्य के कर्ता में भी तृतीया विभक्ति
होती है । जैसे-
बालक
बस से विद्यालय जाता है ।
बालक:
बसयानेन विद्यालयं गच्छति ।
इस
वाक्य में बस करण कारक है अत: बस में तृतीया विभक्ति हुई ।
कर्मवाच्य- बालक के द्वारा पुस्तक पढी जाती है
बालकेन पुस्तकं पठ्यते ।
भाववाच्य- उसके द्वारा हँसा जाता है ।
तेन हस्यते ।
इन
दो वाक्यों में कर्मवाच्य और भाववाच्य के कर्ता में तृतीया विभक्ति हुई है ।
तृतीया विभक्ति की उपपद विभक्तियाँ-
नियम- 1 “इत्थंभूतलक्षणे”
जिस लक्षण या चिह्न से किसी व्यक्ति या वस्तु
की पहचान होती है, उस लक्षण बोधक शब्द में तृतीया विभक्ति होती है । जैसे-
वह
जटाओं से तपस्वी लगता है ।
सः
जटाभिः तापस: प्रतीयते ।
नियम- 2 “येनाङ्गविकारः”
यदि शरीर के किसी अंग में विकृति (विकार) दिखाई
पड़े तो विकृत अंग के वाचक शब्द में तृतीया विभक्ति होती है । जैसे-
रमेश
आँख से काणा है ।
रमेश
नेत्रेण काणः अस्ति ।
अमर
कान से बहरा है ।
अमरः
कर्णेन बधिरः अस्ति ।
अमर
पैर से लंगड़ा है ।
अमरः
पादेन खञ्जः अस्ति ।
नियम- 3 “हेतौ”
कारण (हेतु) बोधक शब्दों में तृतीया विभक्ति होती है । जैसे-
विद्या से
यश होता है ।
विद्यया
यशः भवति ।
वह
पढने के लिए रहता है ।
सः
अध्ययनेन वसति ।
नियम- 4 “पृथग्विनानानाभिस्तृतीयाऽन्यतरस्याम्”
पृथक्, बिना, नाना(बिना अर्थ में) शब्दों के
साथ द्वितीया, तृतीया, पंचमी विभक्तियों में से किसी एक विभक्ति का प्रयोग कर सकते
हैं । जैसे-
कौरव
पाण्डवों से अलग रहते थे ।
कौरवाः
पाण्डवान्/पाण्डवै:/पाण्डवेभ्यः
पृथग् अवसन् ।
मनुष्य
जल के बिना जीवित नहीं रहता है
।
मनुष्यः
जलं/जलेन/जलात् विना न जीवति ।
नियम- 5 “प्रकृत्यादिभ्य उपसंख्यानाम्”
प्रकृति (स्वभाव) आदि क्रिया विशेषण शब्दों
में तृतीया विभक्ति होती है । जैसे-
मोहित
सुख से जीता है ।
मोहितः
सुखेन जीवति ।
लता
स्वभाव से सरल है ।
लता
स्वभावेन सरला अस्ति ।
नियम- 6 “सहयुक्तेऽप्रधानम्”
सह, साकम्, सार्धम्, समम् के साथ तृतीया विभक्ति
होती है । जैसे-
सह- साथ
रमेश
अजय के साथ जाता है ।
रमेशः
अजयेन सह गच्छति ।
साकम्- साथ
राम
सीता के साथ वन जाते हैं ।
रामः
सीतया सह वनं गच्छति ।
सार्धम्- साथ
देव
विजय के साथ जाता है ।
देवः
विजयेन सह गच्छति ।
समम्- साथ
उमा
लता के साथ विद्यालय जाती है ।
उमा
लतया सह विद्यालयं गच्छति ।
धन्यवाद
।
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