यजुर्वेद की सम्पूर्ण जानकारी
Complete
information about Yajurveda
"वेद" प्राचीन भारत के पवित्रतम
साहित्य हैं जो हिन्दुओं के प्राचीनतम और आधारभूत धर्मग्रन्थ भी हैं । वेद न केवल भारत
के अपितु विश्व के सबसे प्रचीन ग्रन्थ हैं । वेदों में विश्व के मानव के कल्याण के
लिए वर्णन हैं । भारतीय संस्कृति में वेद वर्णाश्रम
धर्म के मूल और सबसे प्राचीन ग्रन्थ हैं । मान्यता है कि इनके मन्त्रों को परमेश्वर
ने प्राचीन ऋषियों को अप्रत्यक्ष रूप से सुनाया था, इसलिए वेदों को 'श्रुति' भी कहा
जाता है । वेद चार हैं- ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद ।
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Yajurveda |
इस पोस्ट में यजुर्वेद
की सम्पूर्ण जानकारी (Yajurveda ki sampurn jankari) प्रदान की जा रही है ।
यजुर्वेद में मुख्यरूप से यज्ञादि विषयों का वर्णन है
।
यजुर्वेद- एक सामान्य परिचय -
Yajurveda- A General Introduction-
# 'यजुः' शब्द 'यज्' धातु से निष्पन्न है । 'यजुः' का अर्थ यज्ञ या पूजा है ।
# ‘इज्यते अनेनेति यजुः' अर्थात् जिन मंत्रो से यज्ञ किये जाते हैं,
उन्हें यजु: कहते हैं ।
# 'अनियताक्षरावसानो यजुः" जिसमें अक्षरों की संख्या निश्चित न
हो, वह यजु: है ।
# 'यजुषां वेद, यजुर्वेद: इति' अर्थात् जो यजुषों का वेद हो, वह 'यजुर्वेद'
है ।
# यजुर्वेद के अधिकांशतः मन्त्र गद्यात्मक हैं, कुछ मन्त्र पद्यात्मक
भी हैं ।
# पातंजलि ने यजुर्वेद की 100 शाखाएँ स्वीकारी हैं ।
# शौनक ने चरणव्यूह में यजुर्वेद
की 86 शाखाएँ स्वीकारी हैं ।
# यजुर्वेद का ऋत्विक् अध्वर्यु है ।
# यजुर्वेद का मुख्य देवता वायु है ।
# यजुर्वेद का मुख्याचार्य वैशम्पायन है ।
# यजुर्वेद का उपवेद धनुर्वेद है ।
यजुर्वेद के भाग Portions of the Yajurveda-
# यजुर्वेद के मुख्य 2 भाग हैं-
1. शुक्ल यजुर्वेद 2. कृष्ण
यजुर्वेद
# जिसमें सिर्फ मन्त्र भाग है, वह शुक्ल यजुर्वेद है ।
# जिसमें मंत्र भाग व ब्राह्मण भाग दोनों वर्णित हैं, वह कृष्ण यजुर्वेद
है। कृष्ण यजुर्वेद में मन्त्रों के विनियोग, विवरण और व्याख्या भी है ।
# शुक्ल यजुर्वेद आदित्य सम्प्रदाय का प्रतिनिधि ग्रन्थ है ।
# कृष्ण यजुर्वेद ब्रह्म सम्प्रदाय का प्रतिनिधि ग्रन्थ है ।
शुक्ल यजुर्वेद का विस्तृत परिचय
Detailed introduction of Shukla Yajurveda
शुक्ल
यजुर्वेद- वर्तमान में शुक्ल यजुर्वेद की 2 शाखाएँ उपलब्ध होती हैं-
#
1. माध्यन्दिन शाखा- इसे वाजसनेय शाखा भी कहते हैं। इसमें
कुल 40 अध्याय, 303 अनुवाक और 1975 मन्त्र या कण्डिकाएँ हैं ।
#
2. काण्व शाखा- इसमें कुल 40 अध्याय, 328 अनुवाक और 2086 मन्त्र या कण्डिकाएँ हैं
।
# माध्यन्दिन व काण्व शाखा का प्रतिपाद्य विषय समान केवल अध्याय या
मन्त्रों के क्रम में दोनों का अन्तर है।
शुक्ल
यजुर्वेद- माध्यन्दिन शाखा का प्रतिपाद्य विषय
# अध्याय 1 व 2 में दर्श (अमावस्या) व पौर्णमास (पूर्णिमा) से सम्बन्ध
यागों का वर्णन है ।
# अध्याय 3 में अग्निहोत्र और चातुर्मास इष्टियों का वर्णन है ।
# अध्याय 4 से 8 तक अग्निष्टोम और सोमयाग का वर्णन है।
# अध्याय 9 व 10 में वाजपेय व राजसूय यागों का वर्णन है ।
# अध्याय 11 से 18 तक अग्निचयन व विविध वेदियों के निर्माण से सम्बन्धित
मन्त्र हैं ।
# अध्याय 19 से 21 में सौत्रामणी याग का विधान है ।
# अध्याय 22 से 25 में अश्वमेध यज्ञ का विस्तृत वर्णन है ।
# अध्याय 26 से 29 खिल अध्याय हैं ।
# अध्याय 30 में पुरुषमेध का वर्णन है।
# अध्याय 31 को पुरुषसूक्त कहते हैं। इसमें विराट् पुरुष के स्वरूप
का वर्णन है ।
# अध्याय 32 में विराट् पुरुष के दार्शनिक व आध्यात्मिक स्वरूप का वर्णन
है ।
# अध्याय 33 में सर्वमेध सूक्त का वर्णन है ।
# अध्याय 34 के आरम्भिक 6 मन्त्रों में शिवसंकल्प सूक्त है, बाकी मन्त्रों
में अन्य देवताओं की स्तुति है।
# अध्याय 35 में पितृमेध का वर्णन है ।
# अध्याय 36 से 38 में प्रावर्ग्य नामक यज्ञ का वर्णन है ।
# अध्याय 39 में अन्त्येष्टि संस्कार से सम्बन्धित मंत्र हैं ।
# अध्याय 40 ईशावास्योपनिषद् उपदिष्ट है । यह उपनिषद् सभी उपनिषदों
में प्रथम परिगणित है ।
शुक्ल यजुर्वेद का वाङ्ग्मय
# ब्राह्मण- शतपथ ब्राह्मण
# आरण्यक- बृहदारण्यक
# उपनिषद् - ईशावास्योपनिषद्, वृहदारण्यकोपनिषद्
विशेष-
# शुक्ल यजुर्वेद का पहला मन्त्र- ओ३म् इसे त्वोर्जे त्वा वायव स्थ
देवो वः........ है ।
कृष्ण यजुर्वेद का विस्तृत परिचय
Detailed introduction of Krishna Yajurveda
# कृष्ण यजुर्वेद की 4 शाखाएँ उपलब्ध हैं
# 1. तैत्तिरीय 2.
मैत्रायणी
3. कठ 4. कपिष्ठल
1.
तैत्तिरीय शाखा-
# तैत्तिरीय शाखा में 7 काण्ड, 44 प्रपाठक, 631 अनुवाक और 2198 कण्डिकाएँ
(मन्त्र) हैं ।
2.
मैत्रायणी शाखा-
# मैत्रायणी शाखा में 4 काण्ड, 54 प्रपाठक, 634 अनुवाक और 3144 मन्त्र
हैं। इस शाखा में मन्त्रो का स्वरांकन नहीं किया गया है।
3.
कठ शाखा-
# कठ शाखा में 5 खण्ड, 40 स्थानक, 843 अनुवाक और 3091 मन्त्र हैं ।
4. कपिष्ठल शाखा-
# कपिष्ठल शाखा वर्तमान में अपूर्ण रूप में उपलब्ध है। इस शाखा के
6 अष्टक और 48 अध्याय ही उपलब्ध मिलते हैं। अध्याय 9 से 24 तक तथा 32, 33 और 43 अध्याय
आंशिक रूप से प्राप्त होते हैं ।
# ब्राह्मण- तैत्तिरीय, मैत्रायणी, कठ, कपिष्ठल ।
# आरण्यक- तैत्तिरीय, मैत्रायणीय ।
# उपनिषद्- तैत्तिरीयोपनिषद्, मैत्रायणी-उपनिषद्, कठोपनिषद्, श्वेताश्वतरोपनिषद्
।
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धन्यवाद ।
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