ऋग्वेद की सम्पूर्ण जानकारी
Complete information about Rigveda
वेद- एक सामान्य परिचय । Veda - A General Introduction
इस
पोस्ट में ऋग्वेद की सम्पूर्ण जानकारी (Rigveda ki sampurn jankari) प्रदान की जा रही
है ।
वेद शब्द कैसे बना ? How did the
word Veda come into being ?
वैदिक वाङ्मय के कितने भाग हैं ? How many parts of Vedic hymn are there ?
# वैदिक वाङ्मय के 4 भाग हैं 1. मन्त्र भाग या संहिता 2. ब्राह्मण 3. आरण्यक 4. उपनिषद
संहिता किसे कहते हैं ? What is
Samhita ?
मन्त्रों
के समूह का नाम 'संहिता' है ।
संहिता के कितने भेद हैं ? ( वेद कितने हैं ) How many differences does Samhita have ?
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संहिता के 4 भेद हैं-
1. ऋक् संहिता या ऋग्वेद 2. साम संहिता या सामवेद
3. यजु: संहिता या यजुर्वेद 4. अथर्व संहिता या अथर्ववेद ।
वेदत्रयी में कौन-कौन से वेद आते हैं
? Which Vedas come in Vedatrayi ?
वेदों की कितनी शाखाएँ हैं ? How many branches of Vedas are there ?
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मंत्रों के संकलन, ग्रहण, उच्चारण विषयक भेदों से संहिताओं की अनेक शाखाएँ बन गई ।
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महाभाष्यकार पतंजलि जी ने पस्पशाह्निक में ऋग्वेद की 21, यजुर्वेद की 100, सामवेद की
1000 और अथर्ववेद की 9 शाखाओं का उल्लेख किया है ।
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कुल 1130 शाखाओं में से अधिकांश शाखाएँ अध्ययन के अभाव में समाप्त हो गई हैं, आज कुछ
ही शाखाएँ उपलब्ध हैं ।
ऋग्वेद की सम्पूर्ण जानकारी
Rigveda - A General
Introduction
ऋग्वेद-
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"ऋच्यन्ते स्तूयन्ते अनया इति ऋक्" अर्थात् देवताओं की स्तुतियों अथवा उनके
प्रति गायी गई प्रार्थनाओं का वेद ऋग्वेद कहलाता है ।
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चारों वेदों में ऋग्वेद का महत्व सबसे अधिक है ।
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ऋग्वेद विश्व का सबसे प्राचीन ग्रंथ है ।
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भाषा एवं भाव की दृष्टि से ऋग्वेद अन्य वेदों से प्राचीन है ।
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ऋग्वेद का ऋत्विक 'होता' है ।
ऋग्वेद का वाङ्मय । Rigvedic literature-
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ऋग्वेद के आरण्यक - 1. ऐतरेय 2. शांखायन हैं ।
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ऋग्वेद के उपनिषद् - 1. ऐतरेय 2. कौषीतकी हैं ।
ऋग्वेद की शाखाएँ । Rigveda
branches-
# पतंजलि ने ऋग्वेद की 21 शाखाएँ स्वीकारी हैं ।
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चरणव्यूह नामक ग्रन्थ में ऋग्वेद की 5 शाखाएँ बताई गई हैं-
1.
शाकल 2. वाष्कल 3. आश्वलायनी 4. शांखायनी 5. माण्डूकायनी ।
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वर्तमान में केवल 'शाकल' शाखा ही उपलब्ध होती है ।
ऋग्वेद के कितने विभाग हैं ?
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ऋग्वेद का विभाग 2 प्रकार से किया गया है 1. अष्टक क्रम 2. मण्डल क्रम ।
1. अष्टक क्रम- (Ashtak kram)
अष्टक क्रम में समस्त ऋग्वेद को आठ अष्टकों
में विभक्त किया गया है । प्रत्येक अष्टक में
आठ अध्याय है, प्रत्येक अध्याय को अध्ययन की सुविधा के लिये वर्गों में बांटा गया है
। इस कार ऋग्वेद में 8 अष्टक, 64 अध्याय और 2006 वर्ग हैं ।
2. मण्डल क्रम- (Mandal kram)
मण्डल क्रम आधृत विभाग को अधिक ऐतिहासिक
व वैज्ञानिक माना जाता है । मण्डल क्रम में कुल 10 मण्डल, 85 अनुवाक और 1017 सूक्त
हैं । 10 मण्डल होने के कारण इसे 'दशतयी' भी कहते हैं । इन सूक्तों के अतिरिक्त 11
सूक्त वालखिल्य नाम से विख्यात हैं । जिनका स्थान अष्टम मण्डल के मध्य सूक्त 49 से
लेकर सूक्त 59 तक है । इनमें मन्त्रों की संख्या 80 है |
खिल का क्या अर्थ है ?
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खिल का अर्थ है परिशिष्ट अथवा बाद में जोड़े गए मन्त्र । कुल 11 सूक्त खिल या वालखिल्य नाम से विख्यात हैं
। अष्टम मण्डल में मुख्य सूक्त 92 हैं, जबकि खिल सूक्तों सहित यह संख्या 103 हो जाती
है ।
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खिल सूक्तों को स्वाध्याय के समय पढ़ने का विधान है, किंतु न तो इनका पद पाठ मिलता
है और न ही अक्षर गणना में इनका समावेश होता है ।
ऋग्वेद में कुल सूक्त कितने हैं ?
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इस प्रकार ऋग्वेद में कुल 1028 सूक्त हैं ।
ऋग्वेद की रचना काल सम्बन्धी मत
1. बालगंगाधर तिलक- इनके अनुसार ऋग्वेद की रचना 6000 ई. पू. में हुई ।
2. मैक्समूलर इनके अनुसार 1200 से 1000 ई. पू. में हुई ।
3. विंटर नित्स- इनके अनुसार 3000 ई. पू. में हुई ।
4.
मान्य मत- इस मत के अनुसार 1500 से 1000 ई. पू. में हुई ।
ऋग्वेद के सूक्तों का विभाजन-
मण्डलानुसार
सूक्तों की संख्या -
प्रथम
मण्डल- 191
द्वितीय
मण्डल- 43
तृतीय
मण्डल - 62
चतुर्थ
मण्डल- 56
पंचम
मण्डल- 87
षष्ठ
मण्डल- 75
सप्तम
मण्डल- 104
अष्टम
मण्डल- 92 + 11
नवम
मण्डल- 114
दशम
मण्डल- 191
इस
प्रकार कुल 1028 सूक्त हैं ।
ऋग्वेद के ऋषि Rigveda ke Rishi-
ऋग्वेद
के मण्डल एवं उनके ऋषि-
प्रथम
मण्डल- मधुच्छन्दा, मेधातिथि, दीर्घतमा
द्वितीय
मण्डल- गृत्समद व उनके वंशज
तृतीय
मण्डल- विश्वामित्र व उनके वंशज चतुर्थ मण्डल- वामदेव व उनके वंशज
पंचम
मण्डल- अत्रि व उनके वंशज
षष्ठ
मण्डल भारद्वाज व उनके वंशज
सप्तम
मण्डल- वसिष्ठ व उनके वंशज
अष्टम
मण्डल-कण्व, अंगिरा व उनके वंशज नवम मण्डल- अनेक ऋषि
दशम
मण्डल- अनेक ऋषि
ऋग्वेद के अन्य महत्वपूर्ण
बिन्दु-
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प्रथम व दशम मण्डल को सबसे नया माना जाता है, दोनों में सूक्त संख्या भी समान
(191) है ।
# नवम मण्डल के सभी सूक्त सोम देवता के गुण गाते हैं, सोम को 'पवमान' भी कहा जाता है, अतः इस मण्डल को 'पवमान मण्डल' भी कहते हैं ।
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शौनक के अनुसार ऋग्वेद में 10580 मन्त्र, 153826 शब्द और 432000 अक्षर हैं ।
# ऋग्वेद के मन्त्र 14 छंदों में रचे गए हैं । सबसे ज्यादा मन्त्र त्रिष्टुप्, गायत्री, जगती और अनुष्टुप छंद में हैं ।
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ऋग्वेद के अनुसार देवताओं की संख्या कुल 33 है । जिनमें 11 पृथ्वी में, 11 अंतरिक्ष
में और 11 द्युलोक में हैं । वेदों के अनुसार कोटि शब्द का अर्थ प्रकार है, न कि संख्यावाचक
करोड़ ।
# इस वेद में लगभग 25 नदियों का उल्लेख किया गया है, जिनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण नदी सिन्धु है । सर्वाधिक पवित्र नदी सरस्वती को माना गया है । इसमें गंगा का प्रयोग एक बार तथा यमुना का प्रयोग तीन बार हुआ है ।
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ऋग्वेद में राजा का पद वंशानुगत होता था ।
# ऋग्वेद के 9वें मण्डल में सोम रस की प्रशंसा की गई है ।
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इस वेद में गाय के लिए 'अहन्या' शब्द का प्रयोग किया गया है ।
ऋग्वेद के प्रमुख सूक्त Rigveda ke sukt-
(1) पुरुष सूक्त ऋग्वेदसंहिता के दशम मण्डल 90 संख्यक सूक्त 'पुरुष सूक्त' कहलाता है ।
(2)
नासदीय ऋग्वेदसंहिता के दशम मण्डल के 129वें सूक्त को 'नासदीय सूक्त' कहते हैं ।
(3)
हिरण्यगर्भ सूक्त इस संहिता के दशम मण्डल के 121वें सूक्त को 'हिरण्यगर्भ सूक्त' कहते
हैं ।
(4)
संज्ञान सूक्त - ऋग्वेदसंहिता के दशम मण्डल के 191 संख्यक सूक्त को 'संज्ञान सूक्त'
कहते हैं ।
(5)
अक्ष सूक्त - ऋग्वेद के दशम मण्डल के 34वें सूक्त को 'अक्ष सूक्त' कहते हैं
(6)
विवाह सूक्त - ऋग्वेद संहिता के दशम मण्डल के 85वें सूक्त को 'विवाह सूक्त' नाम से
जाना जाता है ।
ऋग्वेद के संवाद सूक्त- Rigveda ke samvad sukt
1.
पुरुरवा उर्वशी संवाद ऋ. 10/95 2. यम-यमी-संवाद ऋ. 10/10
3.
सरमा-पणि-संवाद ऋ. 10/108 4. विश्वामित्र-नदी-संवाद ऋ. 3/33
5.
वशिष्ठ-सुदास-संवाद ऋ. 7/83
6.
अगस्त्य-लोपामुद्रा संवाद ऋ. 1/179 7. इन्द्र-इन्द्राणी - वृषाकपि-संवाद ऋ. 10/86
ऋग्वेद के व्याख्याकार व भाष्यकार-
2.
सायण आचार्य
3.
स्वामी दयानन्द सरस्वती
4.
महर्षि अरविंद
5.
विल्सन
कुछ अन्य पाश्चात्य विद्वान-
2.
ग्रासमान
3.
ग्रिफिथ
4.
गेल्डनर
5.
रुडाल्फ रॉथ
6.
लुडविग
7.
ओल्डनबर्ग
8.
मैकडॉनल
ऋग्वेद
की प्रमुख नदियाँ और उनके आधुनिक नाम-
वितस्ता |
झेलम |
सुवस्तु |
स्वात |
विपाशा |
व्यास |
परुष्णी |
रावी |
कुभा |
कबुल |
गोमती |
गोमल |
शतुद्रि |
सतलज |
दृशद्वती |
घग्घर |
अस्किनी |
चिनाब |
सिंधु |
सिंध |
क्रुभु |
कुर्रम |
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धन्यवाद ।
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