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Sanskrit Visheshan shabd roop । संस्कृत विशेषण शब्दरूप । संस्कृत गिनतियाँ । Sanskrit counting ।

संस्कृत विशेषण और विशेष्य


sanskrit visheshan shabd roop संस्कृत विशेषण शब्दरूप
sanskrit visheshan shabd roop






विशेषण- 

       संज्ञा व सर्वनाम शब्द की विशेषता बताने वाले शब्द को विशेषण कहते हैं । जैसे-
1. उन्नत: वृक्ष: अस्ति ।         2. कक्षायाम् पंचाशत् छात्रा: सन्ति

3. आम्रं मधुरं अस्ति ।          4. स: बालक: विद्यालयं गच्छति ।
     

     इन वाक्यों में “उन्नत:, पंचाशत्, मधुरं, स:”  ये शब्द “वृक्ष:, छात्रा:, आम्रम्, बालक:” इन संज्ञा शब्दों की विशेषता बता रहे हैं, अत में “उन्नत:, पंचाशत्, मधुरं, स:” ये सब विशेषण हैं ।

विशेष्य- 

         जिस संज्ञा या सर्वनाम शब्द की विशेषता बताई जाती है उसे विशेष्य कहते हैं । जैसे-

# रमेश: कुशल: अस्ति ।

   इस वाक्य में “रमेश:” की विशेषता “कुशल:” शब्द से बताई जा रही है, इसलिए ‘रमेश:’ विशेष्य है ।


संस्कृत विशेषण और विशेष्य के कुछ नियम-

# विशेष्य प्रधान होता है और विशेषण अप्रधान होता है ।

# विशेष्य सदा सामन्य रूप में ही ज्ञात होता है, विशेषण से निश्चित गुण, रूप, आकार आदि का ज्ञान होता है । जैसे- नील कमल, इस उदाहरण में जब तक सिर्फ कमल शब्द बोला जाएगा तब तक हमें पता नहीं चलेगा कि कमल किस रंग का है, परन्तु नील कमल बोलते ही हमें पता चल जाता कि कमल का रंग नीला है ।

# सामान्यत: जो लिंग, जो वचन और जो विभक्ति विशेष्य की होती है वही लिंग, वचन और विभक्ति विशेषण की भी होती है-

    यल्लिङ्गं यद्वचनं या च विभक्तिर्विशेष्यस्य ।

    तल्लिङ्गं तद्वचनं सैव विभक्तिर्विशेषणस्यापि ॥


विशेषण के प्रकार-

विशेषण के चार प्रकार के होते हैं-

1. गुणवाचक विशेषण

2. संख्यावाचक विशेषण

3. परिमाणवाचक विशेषण

4. सार्वनामिक विशेषण ।


visheshan ke bhed विशेषण के भेद्
        visheshan ke bhed








1. गुणवाचक विशेषण-

       जिस शब्द से संज्ञा या सर्वनाम के गुण का बोध होता है, उसे गुणवाचक विशेषण कहते हैं । गुण का तात्पर्य सिर्फ अच्छी विशेषताओं से नहीं है, अपितु यहाँ गुण का तात्पर्य है किसी भी वस्तु या व्यक्ति की विशेष स्थिति, विशेष दया, विशेष दिशा, रंग, गंध, काल, स्थान, आकार ,रूप, स्वाद, बुराई, अच्छाई, आदि  । अत: जो विशेषण किसी संज्ञा या सर्वनाम की उपर्युक्त विशेषताओं का बोध कराए, उसे गुणवाचक विशेषण कहते हैं । जैसे-

(क) रमेश अच्छा लड़का है ।  (गुण)

(ख) आम पीला है ।  (रंग)

(ग) बिस्किट मीठा है । (स्वाद)

(घ) मन्दिर ऊँचा है ।  (आकार)

इन वाक्यों में ‘रमेश’ का विशेषण ‘अच्छा’, ‘आम’ का विशेषण ‘पीला’, ‘बिस्किट’ का विशेषण ‘मीठा’ और ‘मन्दिर’ का विशेषण ‘ऊँचा’ है ।


गुणवाचक विशेषण के संस्कृत में कुछ प्रचलित शब्द निम्न हैं-

गुण-दोष- दयालु:, क्रूर:, शोभन:, दुष्ट:, सरल:, परिश्रमी, सत्यनिष्ठ:, सुन्दर:, मनोहर:, साधु:, आदि ।

रंग- श्वेत:, कृष्ण:, रक्त:, पीत:, हरित:, नील: आदि ।

आकार- उन्नत:, विशाल:, ज्येष्ठ:, कनिष्ठ:, दीर्घ:, लघु:, स्थूल:, कृष: आदि ।

स्वाद- मधुर:, अम्ल:, कटु:, तिक्त:, लावण:, कषाय:, आदि ।

कालबोधक- प्राचीन:, नवीन:, पुरातन:, नूतन:, क्षणिक:, दीर्घकालिक: आदि ।

 स्थान बोधक- भारतीय:, पाश्चात्य:, वैदेशिक:, पर्वतीय: आदि ।

अवस्था बोधक- आर्द्र:, शुष्क:, ज्वलित:, पक्व: आदि ।

दशा बोधक- स्वस्थ:, अस्वस्थ:, रुग्ण:, दु:खित:, सुखी आदि ।

स्पर्श-बोधक- कठोर:, कोमल: आदि ।


गुणवाचक विशेषण के प्रमुख शब्द तीनों लिंगों में-

पुल्लिंग

स्त्रीलिंग

नपुंसकलिंग

अर्थ

श्वेत:

श्वेता    

श्वेतम्

सफेद

कृष्ण:

कृष्णा

कृष्णम्

काला

रक्त:

रक्ता

रक्तम्

लाल

पीत:

पीता

पीतम्

पीला

हरित:

हरिता

हरितम्

हरा

नील:

नीला

नीलम्

नीला

मधुर:

मधुरा

मधुरम्

मीठा

अम्ल:

अम्ला

अम्लम्

खट्टा

कटु:

कट्वी

कटु

कड़वा

तिक्त:

तिक्ता

तिक्तम्

तीखा

शीतल:

शीतला

शीतलम्

ठंडा

उष्ण:

उष्णा

उष्णम्

गर्म

लघु:

लघ्वी

लघु

छोटी

विशाल:

विशाला

विशालम्

चौड़ा

उन्नत:

उन्नता

उन्नतम्

ऊँचा

उच्च:

उच्चा

उच्चम्

ऊँचा

स्थूल:

स्थूला

स्थूलम्

मोटा

कृष:

कृषा

कृषम्

पतला

मनोहर:

मनोहरा

मनोहरम्

सुन्दर

सुन्दर:

सुन्दरी

सुन्दरम्

सुन्दर

सरल:

सरला

सरलम्

सरल

दुष्ट:

दुष्टा

दुष्टम्

दुष्ट

नूतन:

नूतना

नूतनम्

नया

पुरातन:

पुरातना

पुरातनम्

पुराना

साधु:

साध्वी

साधु

अच्छा

बुद्धिमान्

बुद्धिमती

बुद्धिमत्

बुद्धिमान

धनवान्

धनवती

धनवत्

धनवान्

पक्व:

पक्वा

पक्वम्

पका

दु:खित:

दु:खिता

दु:खितम्

दु:खी

स्वस्थ:

स्वस्था

स्वस्थम्

स्वस्थ


#इसी प्रकार अन्य विशेषणों को भी समझना चाहिए ।

 

2. संख्या वाचक विशेषण-

       जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम की संख्या सम्बन्धी विशेषता का बोध कराते हैं, उसे संख्यावाचक विशेषण कहते हैं ।

संख्यावाचक विशेषण दो प्रकार के होते हैं-

(I). निश्चित संख्या वाचक- जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम की निश्चित संख्या सम्बन्धी विशेषता का बोध कराते हैं, उसे निश्चित संख्यावाचक विशेषण कहते हैं । जैसे- एक:, चत्वार:, दश आदि । वाक्यों में प्रयोग-

(क) कक्षायां विंशति: छात्रा: सन्ति ।

(ख) उद्याने पंचविंशति: वृक्षा: सन्ति ।

(ग) मम पर्श्वे शतं रुप्यकाणि सन्ति  ।

    ऊपर के उदाहरणों में ‘विंशति:, पंचविंशति, शतं’ ये निश्चित संख्यावाचक विशेषण हैं ।

 

 

# निश्चित संख्यावाचक विशेषण से सम्बन्धित महत्वपूर्ण जानकारियाँ-


1. एक शब्द का अर्थ संख्यावाचक होने पर इसके रूप केवल एकवचन में ही चलेंगे व तीनों लिंगो के लिए भिन्न-भिन्न रूप चलेंगे ।

2. द्वि शब्द के रूप केवल द्विवचन में ही चलेंगे व तीनों लिंगो के लिए भिन्न-भिन्न रूप चलेंगे ।

3. त्रि और चतुर् शब्द के रुप केवल बहुवचन में ही चलेंगे व तीनों लिंगो के लिए भिन्न-भिन्न रूप चलेंगे ।

4. पंच से अष्टादश तक (5-18)  संख्याओं के शब्दरुप केवल बहुवचन में ही चलेंगे व तीनों लिंगों में शब्दरूप एकसमान चलेंगे ।

5. एकोनविंशति: (19 )  से आगे सारी संख्याओं के रुप हमेशा एकवचन में ही चलेंगे ।

6. विंशति: (20), षष्ठि: (60), सप्तति: (70), अशीति: (80), नवति: (90) इत्यादि इकारान्त वाले सभी शब्दरूप नित्य स्त्रीलिंग में चलेंगे एकवचन में ही चलेंगे । इन सभी के रूप ‘मति:’ शब्दरूप के समान चलेंगे ।

7. त्रिंशत् (30), चत्वारिंशत् (40), पंचाशत् (50)  इत्यादि तकारान्त वाले सभी शब्दरूप नित्य स्त्रीलिंग में चलेंगे व एकवचन में ही चलेंगे । इन सभी के शब्दरूप ‘विपत्’ शब्दरूप के समान चलेंगे ।

8. शतम् (सौ), सहस्रम् (हजार), अयुतम् ( दस हजार), लक्षम् (लाख), नियुतम्/ प्रयुतम् (दस लाख), अर्बुदम् (अरब), खर्वम् (खरब), नीलम् (नील), पद्मम् (पद्म), शंखम् (शंख), महाशंखम् (महाशंख) आदि शब्दरुप सदा नपुंसकलिंग व एकवचन में ही चलेंगे । इन सभी के शब्दरूप ‘गृहम्’ शब्दरूप के समान चलेंगे ।

9. कोटि: (करोड़) के शब्दरुप सदा स्त्रीलिंग व एकवचन में ही चलेंगे । इसके रुप “मति:” के समान चलेंगे ।

10. ऊनविंशति (19) से नवनवति (99) तक सभी संख्याओं के शब्दरुप स्त्रीलिंग में चलते हैं ।


sanskrit counting संस्कृत गिनतियाँ
                  sanskrit counting





संस्कृत के संख्या वाचक शब्द (संस्कृत की गिनतियाँ)-

sanskrit counting संस्कृत गिनतियाँ 1-50
Sanskrit Counting 1-50

sanskrit counting संस्कृत गिनतियाँ 51-100
 Sanskrit counting 51-100

















प्रमुख संख्यावाचक शब्दों के शब्दरूप-


एक-शब्द के शब्दरूप तीनों लिंगों में-


 

एकवचन

द्विवचन

द्विवचन

विभक्ति

पुल्लिंग

स्त्रीलिंग

नपुंसकलिंग

प्रथमा

एकः

एका

एकम्

द्वितीया

एकम्

एकाम्

एकम्

तृतीया

एकेन

एकया

एकेन

चतुर्थी

एकस्मै

एकस्यै

एकस्मै

पञ्चमी

एकस्मात्

एकस्या:

एकस्मात्

षष्ठी

एकस्य

एकस्या:

एकस्य

सप्तमी

एकस्मिन्

एकस्याम्

एकस्मिन्

 

द्वि-शब्द के शब्दरूप तीनों लिंगों में-

 

द्विवचन

द्विवचन

द्विवचन

विभक्ति

पुल्लिंग

स्त्रीलिंग

नपुंसकलिंग

प्रथमा

द्वौ

द्वे

द्वे

द्वितीया

द्वौ

द्वे

द्वे

तृतीया

द्वाभ्याम्

द्वाभ्याम्

द्वाभ्याम्

चतुर्थी

द्वाभ्याम्

द्वाभ्याम्

द्वाभ्याम्

पञ्चमी

द्वाभ्याम्

द्वाभ्याम्

द्वाभ्याम्

षष्ठी

द्वयोः

द्वयोः

द्वयोः

सप्तमी

द्वयोः

द्वयोः

द्वयोः

 

त्रि-शब्द के शब्दरूप तीनों लिंगों में-

 

बहुवचन

बहुवचन

बहुवचन

विभक्ति

पुल्लिंग

स्त्रीलिंग

नपुंसकलिंग

प्रथमा

त्रय:

तिस्र:

त्रीणि

द्वितीया

त्रय:

तिस्र:

त्रीणि

तृतीया

त्रिभिः

तिसृभि:

त्रिभिः

चतुर्थी

त्रिभ्यः

तिसृभ्य:

त्रिभ्यः

पञ्चमी

त्रिभ्यः

तिसृभ्य:

त्रिभ्यः

षष्ठी

त्रयाणाम्

तिसृणाम्

त्रयाणाम्

सप्तमी

त्रिषु

तिसृषु

त्रिषु

 

चतुर् शब्द के शब्दरूप तीनों लिंगों में-

 

बहुवचन

बहुवचन

बहुवचन

विभक्ति

पुल्लिंग

स्त्रीलिंग

नपुंसकलिंग

प्रथमा

चत्वारः

चतस्रः

चत्वारि

द्वितीया

चतुरः

चतस्रः

चत्वारि

तृतीया

चतुर्भिः

चतसृभिः

चतुर्भिः

चतुर्थी

चतुर्भ्यः

चतसृभ्यः

चतुर्भ्यः

पञ्चमी

चतुर्भ्यः

चतसृभ्यः

चतुर्भ्यः

षष्ठी

चतुर्ण्णाम्

चतषृणाम्

चतुर्ण्णाम्

सप्तमी

चतुर्षु

चतसृषु

चतुर्षु

 

पञ्चन् शब्द के शब्दरूप तीनों लिंगों में-

 

बहुवचन

बहुवचन

बहुवचन

विभक्ति

पुल्लिंग

स्त्रीलिंग

नपुंसकलिंग

प्रथमा

पञ्च

पञ्च

पञ्च

द्वितीया

पञ्च

पञ्च

पञ्च

तृतीया

पञ्चभिः

पञ्चभिः

पञ्चभिः

चतुर्थी

पञ्चभ्यः

पञ्चभ्यः

पञ्चभ्यः

पञ्चमी

पञ्चभ्यः

पञ्चभ्यः

पञ्चभ्यः

षष्ठी

पञ्चानाम्

पञ्चानाम्

पञ्चानाम्

सप्तमी

पञ्चसु

पञ्चसु

पञ्चसु

 

षष्-शब्द के शब्दरूप तीनों लिंगों में-

 

बहुवचन

बहुवचन

बहुवचन

विभक्ति

पुल्लिंग

स्त्रीलिंग

नपुंसकलिंग

प्रथमा

षट्

षट्

षट्

द्वितीया

षट्

षट्

षट्

तृतीया

षड्भिः

षड्भिः

षड्भिः

चतुर्थी

षड्भ्यः

षड्भ्यः

षड्भ्यः

पञ्चमी

षड्भ्यः

षड्भ्यः

षड्भ्यः

षष्ठी

षण्णाम्

षण्णाम्

षण्णाम्

सप्तमी

षट्सु

षट्सु

षट्सु

 

सप्तन्-शब्द के शब्दरूप तीनों लिंगों में-

विभक्ति

पुल्लिंग

स्त्रीलिंग

नपुंसकलिंग

प्रथमा

सप्त

सप्त

सप्त

द्वितीया

सप्त

सप्त

सप्त

तृतीया

सप्तभि:

सप्तभि:

सप्तभि:

चतुर्थी

सप्तभ्य:

सप्तभ्य:

सप्तभ्य:

पञ्चमी

सप्तभ्य:

सप्तभ्य:

सप्तभ्य:

षष्ठी

सप्तानाम्

सप्तानाम्

सप्तानाम्

सप्तमी

सप्तसु

सप्तसु

सप्तसु

 

 

अष्टन्-शब्द के शब्दरूप तीनों लिंगों में-

अष्टन् शब्द के शब्दरूप दो प्रकार से चलते हैं- 1

 

बहुवचन

बहुवचन

बहुवचन

विभक्ति

पुल्लिंग

स्त्रीलिंग

नपुंसकलिंग

प्रथमा

अष्टौ

अष्टौ

अष्टौ

द्वितीया

अष्टौ

अष्टौ

अष्टौ

तृतीया

अष्टाभिः

अष्टाभिः

अष्टाभिः

चतुर्थी

अष्टाभ्यः

अष्टाभ्यः

अष्टाभ्यः

अष्टमी

अष्टाभ्यः

अष्टाभ्यः

अष्टाभ्यः

षष्ठी

अष्टानाम्

अष्टानाम्

अष्टानाम्

सप्तमी

अष्टासु

अष्टासु

अष्टासु

 

अष्टन्-शब्द के शब्दरूप तीनों लिंगों में- 2

 

बहुवचन

बहुवचन

बहुवचन

विभक्ति

पुल्लिंग

स्त्रीलिंग

नपुंसकलिंग

प्रथमा

अष्ट

अष्ट

अष्ट

द्वितीया

अष्ट

अष्ट

अष्ट

तृतीया

अष्टभिः

अष्टभिः

अष्टभिः

चतुर्थी

अष्टभ्यः

अष्टभ्यः

अष्टभ्यः

अष्टमी

अष्टभ्यः

अष्टभ्यः

अष्टभ्यः

षष्ठी

अष्टानाम्

अष्टानाम्

अष्टानाम्

सप्तमी

अष्टसु

अष्टसु

अष्टसु

 

नवन्-शब्द के शब्दरूप तीनों लिंगों में-

 

बहुवचन

बहुवचन

बहुवचन

विभक्ति

पुल्लिंग

स्त्रीलिंग

नपुंसकलिंग

प्रथमा

नव

नव

नव

द्वितीया

नव

नव

नव

तृतीया

नवभिः

नवभिः

नवभिः

चतुर्थी

नवभ्यः

नवभ्यः

नवभ्यः

अष्टमी

नवभ्यः

नवभ्यः

नवभ्यः

षष्ठी

नवनाम्

नवनाम्

नवनाम्

सप्तमी

नवसु

नवसु

नवसु

 

दशन्-शब्द के शब्दरूप तीनों लिंगों में-

 

बहुवचन

बहुवचन

बहुवचन

विभक्ति

पुल्लिंग

स्त्रीलिंग

नपुंसकलिंग

प्रथमा

दश

दश

दश

द्वितीया

दश

दश

दश

तृतीया

दशभिः

दशभिः

दशभिः

चतुर्थी

दशभ्यः

दशभ्यः

दशभ्यः

अष्टमी

दशभ्यः

दशभ्यः

दशभ्यः

षष्ठी

दशनाम्

दशनाम्

दशनाम्

सप्तमी

दशसु

दशसु

दशसु

 

 

विंशति-शब्द के शब्दरूप नित्य स्त्रीलिंग एकवचन  में

विभक्ति

स्त्रीलिंग/ एकवचन

प्रथमा

विंशति:

द्वितीया

विंशतिम्

तृतीया

विंशत्या

चतुर्थी

विंशत्यै/विंशतये

अष्टमी

विंशत्या:/ विंशते:

षष्ठी

विंशत्या:/ विंशते:

सप्तमी

विंशत्याम्/ विंशतौ

 

त्रिंशत्-शब्द के शब्दरूप नित्य स्त्रीलिंग एकवचन  में

विभक्ति

स्त्रीलिंग/ एकवचन

प्रथमा

त्रिंशत्

द्वितीया

त्रिंशतम्

तृतीया

त्रिंशता

चतुर्थी

त्रिंशते

अष्टमी

त्रिंशत:

षष्ठी

त्रिंशत:

सप्तमी

त्रिंशति

 

चत्वारिंशत्-शब्द के शब्दरूप नित्य स्त्रीलिंग एकवचन  मे

विभक्ति

स्त्रीलिंग/एकवचन

प्रथमा

चत्वारिंशत्

द्वितीया

चत्वारिंतम्

तृतीया

चत्वारिंता

चतुर्थी

चत्वारिंशते

पंचमी

चत्वारिंशत:

षष्ठी

चत्वारिंशत:

सप्तमी

चत्वारिंशति


अन्य संख्या शब्दों के रूप भी इसी प्रकार समझने चहिए ।

(II). अनिश्चित संख्या वाचक-  

        जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम की अनिश्चित संख्या सम्बन्धी विशेषता का बोध कराते हैं, उसे अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण कहते हैं । जैसे- केचन, कति, सर्वे, बहु, अनेक, कतिपय, आदि । वाक्यों में प्रयोग-

(क) कक्षायां केचन छात्रा: सन्ति ।

(ख) बहव: बालका: क्रीडन्ति ।

(ग) मम ग्रामे कानिचन भवनानि सन्ति ।

    ऊपर के उदाहरणों में ‘केचन, बहव:, कानिचन’ ये अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण हैं ।


अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण के शब्दरूप-


कति- शब्दरूप

विभक्ति

बहुवचन

प्रथमा

कति

द्वितीया

कति

तृतीया

कतिभि:

चतुर्थी

कतिभ्य:

पंचमी

कतिभ्य:

षष्ठी

कतीनाम्

सप्तमी

कतिषु

# कति शब्द के रूप तीनों लिंगो के लिए एकसमान चलते हैं ।

3. परिमाणवाचक विशेषण- 

      परिमाण का सामान्य अर्थ है नाप-तोल । जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम की नाप-तोल सम्बन्धी विशेषता को प्रकट करे, उसे परिमाणवाचक विशेषण कहते हैं । प्राचीन परिमाण की इकाई के शब्द निम्न हैं-


1. तोल के शब्द-

(क) रक्तिका- रत्ती                       (ख) माषक:- माशा

(ग) तोलक:- तोला                      (घ) षट्टङ्क:- छटांक

(ङ्) पाद:- पाव


2. माप के शब्द-

(क) अङ्गुलम्- अंगुल                   (ख) वितस्ति:- बालिश्त

(ग) पाद:- फुट                            (घ) हस्त:- हाथ


3. मूल्यवाचक शब्द-

(क) वराटक:/वराटिका- कौड़ी       (ख) पादिका- पाई

(ग) पण:- पैसा                          (घ) आण:- आना

(ङ) चतुराणी- चवन्नी                  (च) अष्टाणी- अठन्नी

(छ) रुप्यकम्- रुपया


 विशेष- वर्तमान की नाप-तोल प्राणाली संस्कृत में नहीं मिलती है, अत: इसके लिये वर्तमान प्राणाली को ही स्वीकार किया जाता है । जैसे-

१. एकलीटर-दुग्धम्- एक लीटर दूध ।

२. सप्तमीटरपरिमितं वस्त्रम्- सात मीटर कपड़ा ।

३. दशग्राम-स्वर्णम्- दस ग्राम सोना ।

 

 4. सार्वनामिक विशेषण- 

     जो सर्वनाम विशेषण के रूप में प्रयुक्त होते हैं, वे सार्वनामिक विशेषण कहलाते हैं । जैसे-

(क) स: बालक: गच्छति ।

(ख) तस्य छात्रस्य नाम उमेश: अस्ति ।

     यहाँ पर संज्ञा शब्दों के साथ सर्वनाम शब्द ‘स:, तस्य, सा’ का प्रयोग हुआ है, अत: ‘स:, तस्य, सा’ ये सार्वनामिक विशेषण हैं ।


अब कुछ प्रमुख सर्वनाम शब्दरुपों को समझते हैं-


1. अस्मद् शब्दः- दकारान्तः               

विभक्ति:

एकवचनम्

द्विवचनम्

बहुवचनम्

प्रथमा

अहम्

आवाम्

वयम्

द्वितीया

माम्, मा

आवाम्, नौ

अस्मान्, नः

तृतीया

मया

आवाभ्याम्

अस्माभिः

चतुर्थी

मह्यम्, मे

आवाभ्याम्, नौ

अस्मभ्यम्, न:

पञ्चमी

मत्

आवाभ्याम्

अस्मत्

षष्ठी

मम, मे

आवयोः, नौ

अस्माकम्, न:

सप्तमी

मयि

आवयोः

अस्मासु

सम्बोधन

-

-

-

# अस्मद् शब्द तीनों लिंगों के लिए एक समान प्रयुक्त होता है ।

2. युष्मद् शब्दः- दकारान्त          

विभक्ति:

एकवचनम्

द्विवचनम्

बहुवचनम्

प्रथमा

त्वम्

युवाम्

यूयम्

द्वितीया

त्वाम्, त्वा

युवाम्, वाम्

युष्मान्, वः

तृतीया

त्वया

युवाभ्याम्

युष्माभिः

चतुर्थी

तुभ्यम्, ते

युवाभ्याम्

युष्मभ्यम्, व:

पञ्चमी

त्वत्

युवाभ्याम्

युष्मत्

षष्ठी

तव, ते

युवयोः, वाम्

युष्माकम्, व:

सप्तमी

त्वयि

युवयोः

युष्मासु

सम्बोधन

-

-

-

# युष्मद् शब्द तीनों लिंगों के लिए एक समान प्रयुक्त होता है ।

 

3. तद् शब्द- दकारान्त पुल्लिङ्गः

विभक्ति:

एकवचनम्

द्विवचनम्

बहुवचनम्

प्रथमा

सः

तौ

ते

द्वितीया

तम्

तौ

तान्

तृतीया

तेन

ताभ्याम्

तैः

चतुर्थी

तस्मै

ताभ्याम्

तेभ्यः

पञ्चमी

तस्मात्

ताभ्याम्

तेभ्यः

षष्ठी

तस्य

तयोः

तेषाम्

सप्तमी

तस्मिन्

तयोः

तेषु

सम्बोधन

-

-

-

 

4. तद् शब्द- दकारान्त स्त्रीलिंग   

विभक्ति:

एकवचनम्

द्विवचनम्

बहुवचनम्

प्रथमा

सा

ते

ता:

द्वितीया

ताम्

ते

ता:

तृतीया

तया

ताभ्याम्

ताभि:

चतुर्थी

तस्यै

ताभ्याम्

ताभ्यः

पञ्चमी

तस्या:

तयोः

ताभ्यः

षष्ठी

तस्याम्

तयोः

तासु

सप्तमी

तस्मिन्

तयोः

तेषु

सम्बोधन

-

-

-

 

5. तद् शब्द- दकारान्त नपुंसकलिंग

विभक्ति:

एकवचनम्

द्विवचनम्

बहुवचनम्

प्रथमा

तत्

ते

तानि

द्वितीया

तत्

ते

तानि

तृतीया

तेन

ताभ्याम्

तैः

चतुर्थी

तस्मै

ताभ्याम्

तेभ्यः

पञ्चमी

तस्मात्

ताभ्याम्

तेभ्यः

षष्ठी

तस्य

तयोः

तेषाम्

सप्तमी

तस्मिन्

तयोः

तेषु

सम्बोधन

-

-

-


अन्य सर्वनाम शब्दरूप के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें-

सर्वनाम शब्दरूप प्रकरण


तुलना के आधार पर विशेषण अवस्थाएँ-

तुलना के आधार पर तीन विशेषण की अवस्थाएँ मानी जाती हैं-

1. सामान्य विशेषण

2. तुलनात्मक विशेषण

3. अतिशयबोधक विशेषण


1 सामान्य विशेषण- 

    इसमें किसी प्रकार की तुलना नहीं होती केवल विशेषण का सामान्य कथन होता है । जैसे-

(क) अयं बालक: धीर: ।

(ख) इयं बालिका धीरा ।

(ग) अयं नर: दुष्ट: ।


2. तुलनात्मक विशेषण- 

    इसमें दो व्यक्तियों या पदार्थों की तुलना करके एक दूसरे से अधिक या न्यून बताया जाता है । इसमें विशेषण के आगे ‘तर’, ‘ईयस्’ प्रत्यय लगाए जाते हैं । जैसे-

(क) रमेश: श्यामात् धीरतर: ।

(ख) उमा रमाया धीरतरा ।

(ग) आकारे रामायणात् महाभारतं वृहत्तर: ग्रंथ: अस्ति ।


3. अतिशयबोधक विशेषण 

    इसमें दो या दो से अधिक व्यक्तियों की तुलना की जाती है तथा एक को सबसे बढ़कर या सबसे कम बताया जाता है । इसमें विशेषण के आगे ‘तम’, ‘इष्ठ’ प्रत्यय लगाए जाते है । जैसे-

(क) हिमालय: सर्वेषां पर्वतानां उन्नततम: ।

(ख) महेश: सर्वेषां भ्राताणां कनिष्ठ: ।

(ग) रामायणस्य पात्रेषु श्रीरामस्य चरित्रं श्रेष्ठतम: अस्ति ।

 

संख्यावाचक विशेषण व परिमाण वाचक विशेषण में अन्तर-

     संख्यावाचक विशेषण में संज्ञा या सर्वनाम के साथ निश्चित या अनिश्चित संख्या का प्रयोग होता है, जबकि परिमाण वाचक विशेषण में संख्या का प्रयोग नाप-तौल की प्रणाली के साथ होता है । जैसे- दुकान पर दस बोतलें हैं, दस बोतलों में बीस लीटर तेल है । इन उदाहरणों में बोतल पहला विशेष्य है और बोतल का विशेषण दस है, जो कि संख्यावाचक विशेषण है ।दूसरा विशेष्य तेल है, तेल के लिए नाप-तौल की प्रणाली बीस लीटर का प्रायोग हुआ है, अत: यह परिमाण वाचक विशेषण है ।

    जब कोई संख्या नाप-तौल के साथ आए तो वह परिमाण वाचक विशेषण बन जाती है और जब बिना नाप-तौल के आए तो वह संख्यावाचक विशेषण बन जाती है ।

 

सर्वनाम व सर्वनामिक विशेषण में अन्तर-

    संज्ञा के स्थान पर जब सर्वनाम का प्रयोग होता है, तब वह सर्वनाम वाली अवस्था ही कहलाएगा । जैसे- रमेश घर जाता है । वह घर जाकर पुस्तक पढता है । इन वाक्यों में रमेश संज्ञा है । दूसरे वाक्य में रमेश के स्थान पर वह का प्रयोग हुआ है अत: ‘वह’ सर्वनाम है ।

     संज्ञा के साथ जब सर्वनाम का प्रयोग हो तब वह सार्वनामिक वोशेषण बन जात है । जैसे- वह छात्र घर जाकर पुस्तक पढता है । इस वाक्य में छात्र संज्ञा है और संज्ञा के साथ वह सर्वनाम भी आया है, अत: यहाँ पर ‘वह’ सार्वनामिक विशेषण है ।

                             

धन्यवाद ।                 

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