सामवेद की सम्पूर्ण जानकारी
Complete information about Samaveda
चारों वेदों में सामवेद
(Samveda) का महत्वपूर्ण स्थान है । सामवेद में सामान्यत: मन्त्रों को गायन पद्धति
से प्रस्तुत किया गया है । सामवेद में अधिकांशतः मन्त्र ऋग्वेद से लिए गए हैं । इस
पोस्ट में सामवेद के बारे में सम्पूर्ण जानकारी (Samveda ki jankaari) प्रदान की गई
है । आइए विस्तार से सामवेद के बारे में जानकारी (Complete information about
Samaveda) प्राप्त करते हैं-
सामवेद का परिचय-
Introduction to Samaveda-
# 'सामन्' शब्द की व्युत्पत्ति प्राप्ति अर्थक 'सन्' धातु से 'मन् प्रत्यय
लगाने पर होती है ।
# साम का शाब्दिक अर्थ है- वह गीत जिसके द्वारा परमात्मा को पाया जाता
है ।
# शबरस्वामी के अनुसार- 'विशिष्ट काचित् साम्यो गीतिः सामेत्युच्यते’
। अर्थात् मन्त्रों को जब विशिष्ट गान पद्धति से गाया जाता है, तब उसे 'सामन्' कहते
हैं ।
# सामवेद का 'ऋत्विक उद्गाता है ।
# सामवेद का देवता आदित्य और आचार्य जैमिनि है।
# पतञ्जलि जी ने सामवेद की 1000 शाखाएँ बताई
# शौनक ने चरणव्यूह में 13 शाखाएँ स्वीकारी हैं।
सामवेद की शाखाएँ- Branches of Samaveda-
# वर्तमान में 3 शाखाएँ उपलब्ध हैं
1. कौथुमीय 2. राणायनीय 3. जैमिनीय
# क्रम से सामवेद की शाखाओं के बारे में समझते हैं-
1. कौथुमीय शाखा- इस शाखा में 1875 मन्त्र हैं । यह सबसे प्रसिद्ध शाखा है । इसका प्रचलन गुजरात में है ।
2. राणायनीय शाखा- इस शाखा में 1810 मन्त्र हैं । यह महाराष्ट्र में प्रसिद्ध है ।
3. जैमिनीय शाखा- इस शाखा में 1687 मन्त्र हैं । इसका प्रचार कर्नाटक में है।
सामवेद
की कौथुमीय शाखा का विभाजन
# सामवेद की कौथुमीय शाखा के 2 भाग हैं- 1. पूर्वार्चिक 2. उत्तरार्चिक ।
# सामवेद की कौथुमीय शाखा में कुल मन्त्र संख्या 1875 है ।
# पूर्वार्चिक में 650 मन्त्र और उत्तरार्चिक में 1225 मन्त्र
हैं ।
# सामवेद की कौथुमीय शाखा में ऋग्वेक से 1504 मन्त्र लिए गए हैं ।
# सामवेद के 104 मन्त्र ही अपने हैं ।
# सामवेद में कई मन्त्र पुनरुक्त हैं ।
# पूर्वार्चिक के 267 मन्त्र उत्तरार्चिक में पुनरुक्त हैं ।
# सामवेद के स्वयं के 104 मन्त्रों में भी 5 मन्त्र पुनरुक्त हैं ।
# इस प्रकार देखें तो ऋग्वेद से लिए गए मन्त्र 1504, सामवेद के स्वयं
के मन्त्र 99, ऋग्वेद के पुनरुक्त मन्त्र 267 और सामवेद के पुनरुक्त मन्त्र 5 हैं ।
यदि इन सबका योग करें तो 1504+99+267+5 = 1875 हो जाता है ।
सामवेद की कौथुमीय शाखा- पूर्वार्चिक
# पूर्वार्चिक- पूर्वार्चिक में 4 काण्ड या पर्व, 6 प्रपाठक या अध्याय
और 650 मन्त्र हैं ।
# प्रत्येक प्रपाठक में दो अर्ध या खंड हैं। प्रत्येक खंड में 1 दशति
और प्रत्येक दशति में कुछ मन्त्र हैं ।
# दशति शब्द से ऐसा प्रतीत
होता है कि इनमें मन्त्रो की संख्या 10 रही होगी, किन्तु आज किसी खण्ड में 10 से कम
मन्त्र हैं और किसी में ज्यादा ।
# जिस काण्ड या पर्व में जिस देवता का वर्णन है, उसी देवता के नाम पर
काण्ड या पर्व का नाम भी है ।
# प्रथम पर्व (काण्ड) का नाम आग्नेय पर्व (काण्ड) है । इसमें अग्नि
से सम्बन्धित मन्त्र हैं। इसके अन्तर्गत प्रथम प्रपाठक आता है। इसमें कुल 114 मन्त्र
हैं ।
# द्वितीय पर्व (काण्ड) का नाम ऐन्द्र पर्व (काण्ड) है । इसमें इंद्र
की स्तुतियाँ की गई हैं । इसके अंतर्गत द्वितीय से चतुर्थ प्रपाठक आता है। इसमें
352 मन्त्र हैं ।
# तृतीय पर्व (काण्ड) का नाम पावमान पर्व (काण्ड) है। इसमें सोम की
स्तुति की गई है । इसके अंतर्गत पंचम प्रपाठक आता । इसमें 119 मन्त्र हैं।
# चतुर्थ पर्व (काण्ड) का नाम अरण्य पर्व (काण्ड) है। इसमें अरण्यगान
के ही मन्त्र हैं । इसके देवता इंद्र, अग्नि और सोम हैं। इसमें 55 मन्त्र हैं।
# इनके अतिरिक्त महानाम्नी आर्चिक भी है । इसके देवता इंद्र हैं और
इसमें कुल 10 मन्त्र हैं ।
सामवेद की कौथुमीय शाखा- उत्तरार्चिक
# उत्तरार्चिक- उत्तरार्चिक में कुल 9 प्रपाठक, 21 अध्याय, 400 सूक्त
और 1225 मन्त्र हैं ।
# प्रथम 5 प्रपाठकों में 2-2 अध्याय हैं, जबकि अन्तिम 4 प्रपाठकों में
3-3 अध्याय हैं ।
# सामवेद में मन्त्रों के समूह की संज्ञा को 'आर्चिक' कहते हैं ।
सामवेद का वाङ्ग्मय- Literature of samveda
# ब्राह्मण- प्रौढ़, षड्विंश, सामविधान, आर्षेय, देवताध्याय, उपनिषद्,
संहितोपनिषद्, वंश,
जैमिनीय ।
# आरण्यक- तलवल्कार और छान्दोग्य ।
# उपनिषद्- छान्दोग्योपनिषद् और केनोपनिषद् ।
सामगान के प्रकार (स्थान की दृष्टि से) (Samgan)
# सामगान 4 प्रकार के हैं-
1. ग्रामगान- यह गाँव या सार्वजनिक स्थानों पर गाया जाता था ।
2. अरण्यगान- वन और पवित्र स्थानों पर गाया जाता था ।
3. उहगान- उह का अर्थ है 'विचारपूर्वक विन्यास' । यह सोमयाग या धार्मिक स्थलों पर गाया जाता था ।
4. उह्यगान- रहस्यात्मक होने के कारण इसे वन और पवित्र स्थानों पर गाया जाता था ।
सामवेद
में सामगान के मन्त्रो के भाग-
# सामवेद में सामगान के मन्त्रो के 5 भाग हैं-
1. प्रस्ताव 2. उद्गीथ 3. प्रतिहार 4 उपद्रव 5. निधन
1. प्रस्ताव- इसका गान 'प्रस्तोता' नामक ऋत्विक् करता है। यह 'हूँ ओग्नाइ'
से प्रारम्भ करता है ।
2. उद्गीथ- इसे सामवेद का प्रधान ऋत्विक् 'उद्गाता' गाता है। यह 'ॐ' से प्रारम्भ करता है ।
3. प्रतिहार- इसका गान 'प्रतिहर्ता' नामक ऋत्विक करता है । यह 2 मन्त्रो को जोड़ने वाली कड़ी है । अन्त में ॐ' बोला जाता है ।
4. उपद्रव- इसका गान 'उद्गाता' ही करता है ।
5. निधन- इसका गान तीनों ऋत्विक करते हैं- प्रस्तोता, उद्गाता और प्रतिहर्ता ।
सामविकार- (Samavikar)
मन्त्र को गान का रूप देने के लिए उसमें कुछ परिवर्तन किए जाते हैं, उन्हीं परिवर्तनों को साम विकार कहते हैं । ये कुल 6 हैं-
1. विकार 2. विश्लेषण 3. विकर्षण 4. अभ्यास 5. विराम 6. स्तोभ
क्रम से सामविकारों को समझते हैं-
1. विकार- जहाँ शब्द के उच्चारण में परिवर्तन कर दिया जाता है । जैसे
अग्नि के स्थान पर ओग्नाइ ।
2. विश्लेषण- जहाँ एक ही शब्द को पृथक्-पृथक् करके बोला जाता है । जैसे
‘वीतये’ के स्थान पर
'वोयि तोयायि ।
3. विकर्षण- जहाँ एक स्वर का लम्बे समय के लिए उच्चारण किया जाता है । जैसे ‘आयाहि’ के स्थान पर आयाही..3.. ।
4. अभ्यास- जहाँ किसी पद का बार-बार उच्चारण किया जाता है। जैसे ‘तोयायि’ को दो बार बोला जाता है । जैसे- तोयायि- तोयायि ।
5. विराम- जहाँ सुविधा के लिए बीच में रुका जाता है। जैसे- ‘हव्यदातये’ में द पर रुका जाता है ।
6. स्तोभ- जहाँ कुछ अतिरिक्त पदों को जोड़ दिया जाता है। जैसे- हो, ओ होवा, हाउआ, हावु, रायि आदि ।
सामवेद के अन्य महत्वपूर्ण बिन्दु-
Other important points of the Samaveda-
1. सामवेद का उपवेद गान्धर्व वेद है ।
2. सामवेद के गायन करने वाले को सामग कहते हैं ।
3. सामवेद के 450 मन्त्रो का गान नहीं हो सकता है ।
4. सामवेद में कुल 144000 अक्षर हैं ।
5. सामवेद में मन्त्रों के ऊपर उदात्त स्वर के लिए 1, स्वरित स्वर के
लिए 2 और अनुदात्त स्वर के लिए 3 लिखा जाता है ।
6. सामवेद में 7 स्वर, 3 ग्राम, 21 मूर्छनाएँ और 49 तानों का वर्णन
मिलता है ।
7. सात स्वर इस क्रम में हैं-
मध्यम, गान्धार, ऋषभ, षडज, निषाद, धैवत, पंचम ।
8. 3 ग्राम निम्न हैं- 1. मन्द, 2. मध्य 3. तीव्र ।
9. 7 स्वर* 3 ग्राम मिलकर 21 मूर्छनाएँ बनती हैं।
10. 7 स्वर × 7 स्वर मिलकर 49 तानें बनती हैं।
11. सामवेद में सर्वाधिक 'गायत्री'
व 'प्रगाध’ छन्दों का प्रयोग हुआ है।
12. सामवेद का प्रथम मन्त्र
निम्न है-
“ॐ
अग्न आ याहि वीतये गृणानो हव्यदातये । नि होता सत्सि बर्हिषि ॥”
13. ग्रामगान और अरण्यगान पूर्वार्चिक में जबकि उहगान और उह्यगान का प्रयोग उत्तरार्चिक में होता है।
धन्यवाद ।
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