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रीतिकाल की सम्पूर्ण जानकारी । Reetikal ki jankari । रीतिकाल के कवि । Complete information about the Reetikal ।

रीतिकाल की सम्पूर्ण जानकारी

Complete information about the Reetikal

 

    हिन्दी साहित्य में रीतिकाल का तीसरा क्रम है । इसे उत्तरमध्यकाल भी कहते हैं । रीतिकाल का समय 1650 से 1850 माना जाता है । आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने रीतिकाल का समय 1700 से 1900 स्वीकारा है । रीतिकाल में शृंगार परक रचनाएँ अधिक हुई हैं, इसका मुख्य कारण था तत्कालीन समय का परिवेश, राजा, नवाब और सामन्त लोगों का वर्चस्व । तत्कालीन कवि भी काव्य रचना को अपनी जिविकोपार्जन के रूप में स्वीकारते थे,  अतः आश्रयदाताओं के अनुसार काव्य रचना करते थे । इस पोस्ट में रीतिकाल की सम्पूर्ण जानकारी (Ritikaal ki jankari) प्रदान की जा रही है, साथ में रीतिकाल के कवियों (Reetikal ke kavi) के बारे में भी जानकारी दी जा रही है ।

 

रीतिकाल के अन्य नाम –

Reetikal ke anya nam


★ अलंकृत काल- मिश्रबन्धु

★ रीतिकाल- जार्ज ग्रियर्सन व आचार्य रामचन्द्र शुक्ल

★ शृंगार काल- विश्वनाथ प्रताप मिश्र

★ कलाकाल- रमाशंकर शुक्ल व भागीरथ मिश्र

 

रीतिग्रन्थ का अर्थ-

    ऐसे ग्रन्थ जिनमें काव्यांगों के लक्षण व उदाहरण दिये जाते हैं, उन्हे रीतिग्रन्थ कहा जाता है । रीतिकाल के अधिकांश कवियों ने रीति निरूपण करते हुए लक्षण ग्रन्थ लिखे, अत: इस काल की प्रधान प्रवृत्ति रीति निरुपण मानी जाती है ।

 

रीतिकाल की परिस्थितियाँ-

Reetikal ki Paristhitiyan- 

    रीतिकाल के समय मुगलों का शासन चरमोत्कर्ष के बाद पतन की ओर अग्रसर था । इस काल में सामन्तवादी प्रवृत्ति का बोलबाला था । एक तरफ सामन्ती शासकों का बोलबाला तथा दूसरी ओर गरीब जनता पिस रही थी । विलास के उपकरणों का संचय करना एवं सुरा सुन्दरी में लीन रहना उच्चवर्ग के जीवन का एकमात्र लक्ष्य रह गया था । रीतिकालीन कवियों ने अपने समय के विलासी राजाओं व सामन्तो की विलासवृत्ति को तुष्ट करने के लिए घोर शृंगार प्रधान रचनाएँ लिखी । इस काल की सामाजिक स्थिति भी अत्यन्त दयनीय थी । कन्याओं का अपहरण आभिजात्य वर्ग के लोगों की सामान्य बात थी । साहित्य व कला की दृष्टि से यह युग अत्यन्त समृद्ध रहा । अधिकांश कवि राज दरबारों में रहते थे । कवियों का उचित सम्मान एवं प्रतिष्ठा कला को बढ़ावा देने के लिए होता था ।

 

रीतिकालीन काव्य की प्रवृत्तियाँ -

Reetikal ki pravritiyan

1. लक्षण ग्रन्थों का निर्माण का इस काल की प्रमुख प्रवृत्ति थी ।

2. राजाओं और सामन्तों की तुष्टि के लिये कवियों ने अपनी रचनाओं में घोर श्रृंगारिकता का वर्णन किया ।

3. इस काल के काव्यों में नारी के नख-शिख का चित्रण किया गया ।

4. रीतिकालीन कवियों ने प्रकृति चित्रण भी सहजता से किया ।

5. अधिकांश कवि राजाओं या सामन्तों के आश्रय में ही रहते थे, अत: कवियों आश्रय दाताओं की प्रशंसा अपने काव्यों में विशेष रूप से की है ।

6. रीति इस काल की मुख्य विशेषता थी, अत: कवियों में अलंकार प्रियता होना स्वाभाविक बात है ।

7. इस काल के लगभग सभी कवियों नें व्रजभाषा की प्रधानता में अपने काव्यों का सृजन किया ।

 

रीतिकाल के साहित्य व कवियों का वर्गीकरण-

 

रीतिकाल

रीतिबद्ध काव्य

( लक्षण काव्य )

रीतिसिद्ध काव्य

( लक्ष्य काव्य )

रीतिमुक्त काव्य

(स्वच्छन्द काव्य)

1.चिन्तामणि

1. बिहारी

1. घनानन्द

2. केशवदास

2. रसनिधि

2.आलम

3. मतिराम

3. नृपशम्भु

3. ठाकुरदास

4. देव

4. नेवाज

4. बोधा

5. पद्माकर

 

5. द्विजदेव

6. भिखारीदास

 

 

7. ग्वाल

 

 

8. भूषण

 

 

 

reetikal
reetikal

 

# अब क्रम से तीनों प्रकार के रीतियों व उनके कवियों की जानकारी प्राप्त करते हैं -

 

(I) रीतिबद्ध काव्य - Reetibaddh kavya

    इस पद्धति में लक्षण ग्रन्थों की रचना के साथ-साथ उदाहरण एवं व्याख्या की परिपाटी को अपनाया गया, अत: इस धारा के काव्यों को रीतिबद्ध काव्य कहते हैं और इस परिपाटी का जिन रचनाकारों के निर्वाह किया उन्हें रीतिबद्ध कवि कहते हैं । कहने का तात्पर्य यह है कि इस काल में काव्यांगों के लक्षण लिखकर उदाहरण भी प्रस्तुत किए गए । इनकी रचनाओं में अलंकरों का प्रयोग अन्य काव्यांगों की तुलना में अधिक हुआ है । इस पद्धति के कवियों की मुख्य भाषा ब्रज थी ।


रीतिबद्ध धारा के प्रमुख कवि-

 

1. चिन्तामणि- Chintamani-

जन्म= 1609, मृत्यु-1685  

चिन्तामणि का जन्म उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिला में कोण्डा जहानाबाद में हुआ । राजा हम्मीर के कहने पर ये तिकवांपुर में आकर बस गए थे । इनके कुल नौ ग्रन्थ स्वीकारे जाते हैं- 1. रसविलास 2. छन्दविचार पिंगल 3. श्रृंगार मंजरी 4. कविकुलकल्पतरू 5. कृष्णचरित 6. काव्यविवेक 7. काव्यप्रकाश 8. कवित्तविचार 9. रामायण ।

 

2. केशवदास- keshavdas

जन्म 1555, मृत्यु- 1647 ।

इनका जन्म मध्य प्रदेश के ओरछा में हुआ । केशव दास हिन्दी के प्रमुख अलंकारवादी आचार्य माने जाते हैं । - इनके अनुसार अलंकारों के विना कविता नहीं हो सकती है –

जदपि सुजाति सुलच्छनी, सुवरन सरस सुवृत्त ।

भूषण बिनु न विराजई, कविता वनिता मित्त ।।

केशवदास ने नौ ग्रन्थों की रचना की है – 1. रसिकप्रिया 2. रामचन्द्रिका 3. कविप्रिया 4. रतन बावनी 5. वीरसिंह देव चरित 6. विज्ञान गीता 7. जहाँगीर जसचन्द्रिका ।

 

3. मतिराम- Matiram-

जन्म-1604, मृत्यु - 1701 ।

मतिराम का जन्म उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले में स्थित तिकवांपुर में हुआ । इनके पिता का नाम विश्वनाथ त्रिपाठी था । ये जहाँगीर, बूंदी के राजा राव भाव सिंह हाड़ा, कुमाऊँ के राजा ज्ञानचन्द और बुन्देलखण्ड के स्वरूप सिंह के आश्रय में रहे थे । इनकी रचनाएँ – 1. ललित ललाम 2. अलंकार पंचाशिका 3. फूलमंजरी 4. रसराज 5. सतसई ।

 

4. भिखारीदास- Bhikharidas-

जन्म-1721, मृत्यु- ज्ञात नहीं ।

भिखारीदास का जन्म उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के ट्योंगा नामक ग्राम में हुआ । भिखारीदास का काव्यकाल हिन्दूपति सिंह के आश्रय में रहा । इनके कुल सात ग्रन्थ है- 1. रस सारांश 2. काव्यनिर्णय 3. शृंगार निर्णय 4.छन्दोर्णवपिंगल 5. शब्दनाम कोश 6. विष्णुपुराण भाषा 7. शतरंजशतिका ।

 

5. भूषण - Bhushan-

जन्म- 1613, मृत्यु- 1705 ।

भूषण का जन्म उत्तर प्रदेश के गांव में हुआ । इनके पिता का नाम कानपुर जिले के टिकवांपुर गाँव में हुआ । इनके पिता का नाम रत्नाकर त्रिपाठी था । चित्रकूट के राजा रुद्र में इन्हें 'भूषण' की उपाधि प्रदान की । इनके मूल नाम के विषय में किसी को जानकारी नहीं हैं । ये छत्रपति शिवाजी और उनके पौत्र साहूजी, छत्रसाल बुन्देला आदि राजाओं के यहाँ रहे । इनकी छः रचनाएँ हैं- 1. शिवराजभूषण 2. शिवा बावनी 3. छत्रसालदशक 4. भूषण उल्लास 5. भूषण हजारा 6. दूषनोल्लास | शिवराजभूषण ग्रन्थ में इन्होंने 105 अलंकारों का वर्णन किया है ।

 

6. पद्माकर- Padmakar- 

जन्म-1753 मृत्यु- 1833 ।

पद्माकर का जन्म मध्यप्रदेश के सागर में हुआ । इनके पिता का नाम मोहनलाल भट्ट था । इनके पूर्वज तैलंग ब्राह्मण थे । ये बुन्देलखण्ड के राजा अर्जुन सिंह, बांदा के सेनानायक अनूपगिरि, सतारा के राजा रघुनाथ राव, जयपुर के राजा प्रताप सिंह व इनके पुत्र जगतसिंह, ग्वालियर के महाराज दौलतराव सिंधिया आदि के यहाँ रहे व अनेक पुरस्कार भी प्राप्त किये । इनकी प्रमुख रचनाएँ – 1. राम रसायन 2. हिम्मत बहादुर विरुदावली 3. जगद्विनोद 4. पद्माभरण 5. अलीजाह प्रकाश 6. हितोपदेश 7. प्रबोध पचासा 8. गंगालहरी 9. जयसिंह विरुदावली 10. अश्वमेध ।

 

7. देव- Dev-

जन्म- 1673, मृत्यु- 1767 ।

देवदत्त का जन्म उत्तर प्रदेश के इटावा में हुआ था । ये अपने जीवन काल में अनेक राजाओं, नवाबों व रईसों के आश्रय में रहे । कवि देव ने कुल 72 ग्रन्थों की रचना की । वर्तमान में इनके 15 ग्रन्थ ही उपलब्ध होते हैं- 1. भावविलास 2. अष्टयाम 3. भवानी विलास 4. प्रेम तरंग 5. कुशलविलास 6. जातिविलास 7. देवचरित्र 8. रसविलास 9. प्रेम चन्द्रिका 10. सुजान विनोद 11. काव्य रसायन 12. सुख सागरतरंग 13. राग रत्नाकर 14. देवशतक 15. देवमाया प्रपंच ।

 

 

8. ग्वाल- Gwal-

जन्म- 1802, मृत्यु- 1867 ।

ग्वाल रीतिकाल के अन्तिम आचार्य थे । इनके कुल 14 ग्रन्थ हैं । जिनमें प्रसिद्ध रचनाएँ निम्न हैं- 1. रसिकानन्छ 2. साहित्यानन्द 3. रसरंग 4. अलंकार भ्रमभंजन 5. दूषण दर्पण 6 प्रस्तार प्रकाश ।


 

(II) रीतिसिद्ध काव्य- Reetisiddha kavya

    इस धारा के कवियों को लक्षण, उदाहरण और काव्यांगों की अच्छी समझ थी, परन्तु कवियों ने लक्षणों को न लिखकर सीधे काव्य की रचना की, अतः वे कवि रीतिसिद्ध कवि कहलाए । कहने का तात्पर्य यह है कि इस धारा के कवियों को काव्य के अंगों का अच्छे से ज्ञान था परन्तु उन्होंने अपने ग्रन्थों में काव्यांगों के लक्षण न लिखकर स्वतन्त्र रचनाएँ लिखी । इस धारा के कवियों ने भावपक्ष व कलापक्ष दोनों पर बल दिया ।

 

रीतिसिद्ध धारा के कवि -

 

1. बिहारी – Bihari-

जन्म- 1594, मृत्यु- 1663 ।

बिहारी का जन्म ग्वालियर में हुआ । बिहारी के पिता क नाम केशवराय था । रीतिकालीन कवियों में बिहारी का श्रेष्ठ स्थान  है। इनका एकमात्र ग्रन्थ है- 'बिहारी सतसई ।’ बिहारी सतसई में कुल 713 दोहे हैं । ग्रियर्सन ने इनकी रचना के बारे में कहा था कि- “यूरोप में ‘बिहारी सतसई' के समकक्ष कोई रचना नहीं है । इनके दोहों के लिए कहा जाता है ये 'गागर में सागर'  हैं ।

 

2. रसनिधि- Rasnidhi-

दतिया राज्य के बरौनी क्षेत्र के जमींदार ‘पृथ्वी सिंह’ रसनिधि नाम से रचना करते थे । इनका प्रसिद्ध ग्रन्थ “रतन हजारा' है । यह ग्रन्थ बिहारी सतसई को आदर्श मानकर लिखा गया है । रतनहजारा ग्रन्थ भी दोहा पद्धति में लिखा गया है ।

 

3. नृपशम्भु- Nripshambhu-

नृपशम्भु के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त नहीं होती है । उनकी तीन रचनाएँ है- 1. नायिका भेद 2. नखशिख 3. सात सप्तक ।

 

4. नेवाज- Newaj-

जन्म- 1739, मृत्यु- ज्ञात नहीं ।

नेवाज महाराजा छत्रसाल के समकालीन थे । इनकी रचनाएँ- 1. शकुन्तला नाटक 2. छत्रसाल बिरुदावली । इन दो रचनाओं के अतिरिक्त इनके फुटकर शृंगार परक छंद भी मिलते हैं ।

 

5. सेनापति- Senapati-

जन्म- 1584 मृत्यु- 1688 ।

इनकी एकमात्र रचना प्राप्त होती है- कवित्त रत्नाकर । कुछ लोग 'काव्यकल्पद्रुम' को भी इनकी रचना स्वीकारते हैं ।

 

(III) रीतिमुक्त काव्य- Reetimukta kavya

वे कवि जो काव्यशास्त्रीय ग्रन्थों के आधार पर अपनी रचना नहीं लिख रहे थे अर्थात् इस धारा के कवि शास्त्रीय पद्धति से कहीं-कहीं जुड़े तो थे, परन्तु लोक रुचियों व वियोग शृंगार पर ध्यान दे रहे थे, अतः ये रीतिमुक्त कवि कहलाए ।

 

रीतिमुक्त धारा के कवि-

 

1. घनानन्द- Ghananand-

जन्म- 1689 मृत्यु-1739 ।

घनानन्द इस काव्य धारा के प्रमुख कवि थे । ये दिल्ली के बादशाह मोहम्मद शाह के यहाँ मीर मुंशी थे । इनकी प्रेमिक सुजान नामक वैश्या थी । बादशाह के निकालने पर से वृन्दावन गए और निम्बार्क सम्प्रदाय में वैष्णव हो गए । मुख्य रूप से इनकी दो प्रकार की रचनाएँ हैं- लैकिक श्रृंगार व भक्ति परक । इनकी रचनाएँ निम्न है- 1. पदावली 2. सुजान हित प्रबन्ध 3. प्रीति प्रवास 4. कृपाकन्द निबन्ध 5. यमुनायश  6.प्रकीर्णन छन्द । इनकी भाषा ब्रज है ।

 

2. ठाकुर- Thakur-

जन्म 1774, मृत्यु- 1823 ।

ठाकुरदास बुन्देलखण्ड के निवासी थे । ये बुन्देलखण्ड के राजा केसरीसिंह के दरबारी कवि थे । इनकी दो रचनाएँ हैं- 1. ठाकुर ठसक 2. ठाकुर शतक ।

 

3. आलम- Aalam-

आलम का प्रारम्भिक नाम 'लालमणि' था । मुस्लिम महिला से विवाह के लिए इन्होंने अपना धर्म परिवर्तन किया । आचार्य राम चन्द्र शुक्ल ने दो आलम स्वीकारे हैं, एक अकबर के समकालीन व दूसरे औरंगजेब के पुत्र मुअज्जम के आश्रित । पहले आलम की रचना 'माधवानल- कामकंदला' है और दूसरे आलम की रचना 'आलमकेलि' है ।

 
4. बोधा- Bodha-

जन्म - 1767, मृत्यु- 1806 ।

इनका जन्म उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले के राजपुर ग्राम हुआ । इनकी दो रचनाएँ हैं. 1. विरहवारीश 2. इश्कनामा ।

 

5. द्विजदेव- Dwijdev

जन्म-1830, मृत्यु - 1871

ये रीतिमुक्त धारा के अन्तिम कवि थे । माना यह भी जाता है कि ये अयोध्या के राजा मानसिंह थे जो द्विजदेव नाम से काव्य लिखते थे । इनकी दो रचनाएँ हैं- 1. शृंगार बत्तीसी 2. शृंगार लतिका ।


धन्यवाद ।

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