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आरण्यकों की सम्पूर्ण जानकारी । Complete information of the Aranyakas । वेदों के आरण्यक । Aranyako ki Jankari ।

आरण्यकों की सम्पूर्ण जानकारी

Complete information of the Aranyakas

 

          आरण्यक वैदिक साहित्य के प्रमुख ग्रन्थ हैं । संहिता और ब्राह्मण ग्रन्थों के बाद आरण्यकों का क्रम आता है । आरण्यकों का प्रमुख विषय यज्ञभागों का अनुष्ठान न होकर तदंतर्गत अनुष्ठानों की आध्यात्मिक मीमांसा है । वस्तुत: यज्ञ का अनुष्ठान एक नितांत रहस्यपूर्ण प्रतीकात्मक व्यापार है और इस प्रतीक का पूरा विवरण आरण्यक ग्रंथो में दिया गया है । इन ग्रंथों में प्राणविद्या की महिमा का भी प्रतिपादन विशेष रूप से किया गया है । संहिता के मंत्रों में इस विद्या का बीज अवश्य उपलब्ध होता है, परंतु आरण्यकों में इसी को पल्लवित किया गया है । यह स्पष्ट है कि उपनिषदों व आरण्यकों में संकेतित तथ्यों की विशद व्याख्या है । इस प्रकार संहिता से उपनिषदों के बीच के सेतु का काम आरण्यकों द्वारा पूर्ण किया जाता है ।


Complete information of the Aranyakas
Aranyakas


          इस पोस्ट में आरण्यकों बारे में जानकारी (Aranyako ki jankari) प्रदान की जा रही है । चाअरों वेदों के आरण्यकों का सामान्य परिचय दिया जा रहा है । आइये पोस्ट को विस्तार से समझते हैं-


 
आरण्यकों की विस्तृत जानकारी-

Detailed information of Aranyakas-

# अरण्य का अर्थ है- 'जंगल', तो आरण्यक का सामान्य अर्थ हुआ 'अरण्य सम्बन्धी' ।

# गूढ़ और रहस्यात्मक विषयों को समझने के लिए एकान्त की आवश्यकता होती है। सबसे ज्यादा एकान्त वनों में ही प्राप्त होता है। अतः जिन ग्रन्थों का अध्ययन अरण्यों में किया गया उन्हें आरण्यक कहा गया ।

# आरण्यक ब्राह्मण ग्रन्थों के परिशिष्ट हैं।

# आरण्यकों का वर्ण्य विषय आध्यात्मवादी, रहस्यवादी, दार्शनिक, और प्रतीकवादी वर्णन करना है ।

# आरण्यकों में यज्ञ की आध्यात्मिक व्याख्या की गई है, जबकि ब्राह्मणों में यज्ञ के स्थूल रूप पर विचार किया गया है।

# आरण्यक ग्रन्थ ब्राह्मण व उपनिषदों को जोड़ने वाले सेतु हैं ।

 

 

ऋग्वेद के आरण्यक -

Aranyakas of the Rigveda-

# ऋग्वेद के 2 आरण्यक हैं- 1. ऐतरेय आरण्यक     2. शांखायन आरण्यक ।

 

1. ऐतरेय आरण्यक-

# ऐतरेय आरण्यक ऋग्वेद की शाकल शाखा से सम्बन्धित है ।

# यह 5 भागों में विभक्त है। प्रत्येक भाग को आरण्यक नाम दिया गया है। 5 आरण्यकों में 18 अध्याय हैं ।

# ऐतरेय आरण्यक के 1 से 3 भाग के रचयिता ऐतरेय महीदास हैं, 4वें भाग के रचयिता आश्वलायन और 5वें भाग के रचयिता शौनक हैं ।

# द्वितीय भाग(आरण्यक) के 4 से 6 अध्याय तक ऐतरेयोपनिषद है ।

# इसमें गवामयन, महाव्रत, उक्थ और निर्भुजसंहिता आदि विषयों का वर्णन है ।

 

2. शांखायन आरण्यक (कौषीतकि)-

# इस आरण्यक में 15 अध्याय व 137 खण्ड हैं ।

# इसके 3 से 6 अध्याय को कौषीतकि उपनिषद् कहा जाता है ।

# इसकी विषय-वस्तु ऐतरेय आरण्यक से मिलती-जुलती है।

 


यजुर्वेद के आरण्यक-

Aararanyakas of Yajurveda-

 

1. तैत्तिरीय आरण्यक-

# यह कृष्ण यजुर्वेद की तैत्तिरीय शाखा से सम्बन्धित है ।

# इसमें 10 प्रपाठक व 170 अनुवाक हैं । प्रपाठकों को अरण संज्ञा प्राप्त है ।

# 7वें से 9वें प्रपाठक को तैत्तिरीयोपनिषद् कहा जाता है।

# तैत्तिरीय आरण्यक में अनेक ऐतिहासिक तथ्यों, आख्यानों तथा ज्ञान-विज्ञान की बातों का संकेत किया गया है।

 

2. बृहदारण्यक-

# यह शुक्ल यजुर्वेद की माध्यन्दिन व काण्व शाखा का आरण्यक है ।

# शतपथ ब्राह्मण के अन्तिम काण्ड को बृहदारण्यक कहा जाता है।

# इसमें कुल 6 अध्याय हैं। मुख्य रूप से आत्म तत्व का विवेचन किया गया है।

 

 

सामवेद के आरण्यक-

Aranyakas of Samaveda-

 

1. तवलकार आरण्यक-

# यह जैमिनीय शाखा से सम्बंधित है ।

# इसमें 4 अध्याय हैं । अध्याय अनुवाकों में विभक्त हैं।

# चतुर्थ अध्याय के दशम अनुवाक में केनोपनिषद् है ।

 

अथर्ववेद के आरण्यक-

Aranyakas of Samaveda-

# अथर्ववेद का कोई भी आरण्यक प्राप्त नहीं होता है ।

 

धन्यवाद ।


  

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