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भक्तिकाल हिन्दी साहित्य का स्वर्ण युग । Complete information of the Bhaktikal । भक्तिकाल की सम्पूर्ण जानकरी । Bhaktikal ki Jankari ।

भक्तिकाल की सम्पूर्ण जानकरी

Complete information of the Bhaktikal

 

भक्तिकाल- एक परिचय

Bhaktikal- an introduction

    हिन्दी साहित्य के इतिहास के वर्गीकरण में भक्तिकाल का द्वितीय स्थान है । भक्तिकाल का आरम्भ अधिकांश विद्वान सन् 1350 से मानते हैं, किन्तु आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी सन् 1375 से स्वीकारते हैं । इस काल को भक्ति का स्वर्ण युग कहा गया है क्योंकि इस काल में संत कबीर, जायसी, तुलसीदास, सूरदास इन समकालीन कवियों ने अपनी रचनाओं का निर्माण कर भक्ति को चरम पर पहुँचाया । उपासना भेद की दृष्टि से इस काल के साहित्य को दो भागों में बाँटा गया है । एक सगुण भक्ति और दूसरा निर्गुण भक्ति । निर्गुण के दो भेद किए गए है । संतो की निर्गुण उपासना अर्थात ज्ञानमार्गी शाखा तथा सूफियों की निर्गुण उपासना अर्थात प्रेममार्गी शाखा । सगुण में विष्णु के दो अवतार राम और कृष्ण की उपासना साहित्य सृजित है । इस पोस्ट में भक्तिकाल की सम्पूर्ण जानकारी (Bhaktikal ki jankari) प्रदान की जा रही है ।


Bhaktikal
Bhaktikal


 

भक्तिकाल की परिस्थितियाँ-

Bhaktikal ki paristhitiyan-

1. राजनैतिक परिस्थितियाँ -

     हिन्दी साहित्य में भक्तिकाल तक उत्तरी भारत में मुस्लिम साम्राज्य की स्थापना हो चुकी थी । किन्तु इन दिनों मुगलों और अफगानों में परस्पर संघर्ष जारी हुआ । इस समय मुस्लिमों में हिन्दुओं से संबंध स्थापित कर अपना शासन दृढ करना शुरू किया । इस कालखण्ड में दिल्ली पर तुगलक वंश, लोधी वंश, बाबर, हुमायुं, अकबर, जहाँगीर और शाहजहाँ का शासन रहा है । मुगलवंश काल राजनीतिक दृष्टि से प्रायः यह काल अशान्त और संघर्षमय रहा था । इस काल में हिन्दुओं और मुसलिमों में द्वेष बढ गया था । जात-पात, छुआ-छूत, ऊँच-नीच की भावना अत्यधिक बढ गई थी ।

भक्तिकाल का साहित्य राजनीतिक वातावरण के प्रतिकूल है । कबीर, जायसी, तुलसी और सूरदास आदि इन कवियों को न तो सीकरी से काम था और न प्राकृत जन गुण-गान से सरोकार था । ये भक्ति मार्ग की धारा में अविरल बढते चले जा रहे थे ।

 

2. सामाजिक परिस्थितियाँ-

     15वीं शताब्दी तक आते आते हिन्दू और मुस्लिमों के बीच सामंजस्य की भावना का निर्माण हुआ था । जीवन के कई क्षेत्र में आदान-प्रदान कर रहे थे । इस काल में संत कबीर ने जाति-पाति के भेद व अन्धविश्वास का प्रखर विरोध किया । खान-पान के कोई बन्धन नहीं थे । चौदहवीं शताब्दी तक यह बन्धन कड़े नहीं थे । किन्तु आगे छुआछूत और खान-पान के बन्धन अधिक कड़े होते गए ।

  

3. धार्मिक परिस्थितियाँ-

     इस काल की धार्मिक परिस्थिती बडी शोचनीय थी । विविध धर्म और सम्प्रदायों का प्रचलन था । इन धर्मों में आपसी समन्वय की भावना नहीं थी । इसमें वैष्णव धर्म अपनी परम्परा की जड़े मजबूत कर रहा था । बौद्ध धर्म का विकृत रूप उभरा था । सूफी धर्म भी अपनी जड़े मजबूत बना रहा था । शंकराचार्य और कुमारिल भट्ट ने वैदिक हिन्दू धर्म का पुनरुद्धार किया । सुसंस्कृत जनता शंकराचार्य की ओर आकृष्ट हुई । वज्रयान में चौरासी सिद्ध हुए । इस समय नाथ पंथ भी मजबूत स्थिति में था । नाथ पंथ में गोरखनाथ प्रमुख रहे । इन्होंने नाथ सम्प्रदाय चलाया ।

 

3. साहित्यिक परिस्थितियाँ-

     भक्तिकाल के विचारकों ने गद्य में अपने विचार व्यक्त न करके उन्हें छंद-बद्ध रुप में व्यक्त किया । संस्कृत में इस संबंध में टीकाओं, व्याख्याओं की सृष्टि होती रही । किसी नवीन मौलिक उद्भावनाओं से काम नहीं लिया गया । सिद्धांत प्रतिपादन तथा भक्ति प्रचार की भावना उस समय के समस्त साहित्य में काम कर रही थी । कबीर, जायसी, सूर, तुलसी जैसे भावुक कवि भी इस मनोवृत्ती से अछूते नहीं रहें । इस युग में हिन्दुओं का उच्च वर्ग संस्कृत भाषा व्यवहार में उपयोग कर रहा था । मुसलमान भी मुख्यतः मुगलसत्ता के कारण राज काज में फारसी को स्वीकृत किया गया था । फलतः इतिहास के अनेक ग्रंथों का निर्माण फारसी में किया गया । इस काल में गद्य का प्रयोग राजस्थान की भाषाओं में और कुछ ब्रज भाषा की वचनिकाओं में हुआ ।


भक्तिकाल के अन्य नाम-

Bhaktikal ke anya nam-

 

(1) माध्यमिक काल

मिश्रबन्धु

(2) भक्तिकाल

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, डॉ. रामकुमार वर्मा,

हजारी प्रसाद द्विवेदी

(3) पूर्व मध्यकाल

डॉ. गणपति चन्द्र गुप्त

 

  

भक्तिकाल का वर्गीकरण-

Bhaktikal ka vargikaran-

 

# भक्तिकाल का वर्गीकरण मुख्य रूप से दो भागों में किया गया है-

1. निर्गुण काव्यधारा           2. सगुण काव्यधारा


# निर्गुण काव्यधारा के दो भेद हैं-

1. सन्त काव्य धारा- कबीरदास

2. सूफी काव्यधारा- मलिक मुहम्मद जायसी

 # सगुण काव्यधारा के भी दो भेद हैं-

1. राम काव्य धारा- तुलसीदास

2. कृष्ण काव्य धारा- सूरदास

 

निर्गुण काव्यधारा-

Nirgun Kavyadhara-

    निर्गुण भक्ति निराकार ईश्वर की भक्ति है, अर्थात जिस ईश्वर को आकार रूप में न स्वीकार किया जाए । निर्गुण भक्ति में ईश्वर का वास घट-घट में है । निर्गुण भक्ति का मार्ग ज्ञानमार्गी है । इसमें जाति-पाँति, वर्णभे व छुआछूत का कोई स्थान नहीं है । निर्गुण भक्ति के लिए गुरु का विशेष महत्त्व है । निर्गुण भक्ति में प्रेम का विशेष महत्त्व है, प्रेम के बिना भक्ति संभव नहीं है ।

निर्गुण भक्ति के दो भेद हैं – 1. ज्ञानाश्रयी  2. प्रेमाश्रमी

 

निर्गुण ज्ञानाश्रयी काव्य के प्रमुख कवि-

 

1. कबीरदास –

जन्म- 1398, मृत्यु- 1518 ।

इनका लालन-पालन नीरू और नीमा नामक जुलाहा दम्पति ने किया । इनकी पत्नी का नाम लोई था । इनके कमाल और कमाली नाम की दो बच्चे थे । इनके गुरु का नाम रामनन्द था । ये सिकन्दर लोदी के समकालीन थे । कबीर की रचनाओं का संकलन 'बीजक' है । इसके संकलन कर्ता धर्मदास हैं । बीजक ग्रन्थ के तीन भाग हैं- 1. साखी 2. सबद 3. रमैनी । ये अनपढ़ थे, जिसके बारे में इनकी स्वयं की एक उक्ति है- “समि कागद छुयो नहीं, कलम गह्यौ नहिं हाथ ।

इनके राम निर्गुण व निराकार थे । कबीर ने सामाजिक रुढियों, अंधविश्वासों, मूर्तिपूजा, हिंसा, माया, जात-पात, छुआछूत का उग्र विरोध किया 

 

2. रैदास  (रविदास) –

 जन्म 1398, मृत्यु- 1446 ।

इनका जन्म काशी में हुआ था । इनके गुरु का नाम रामानन्द था । ये रामानन्द के 12 शिष्यों में से एक थे । इन्होने अपनी जाति के बारे में स्वयं लिखा है- “कह रैदास खलास चमारा ।” रैदास की रचनाएँ संतमन के विभिन्न संग्रहों में संकलित हैं ।  रैदास के 25 पद गुरु ग्रन्थ साहिब में प्रकाशित हैं ।

 

3. गुरु नानक देव-

जन्म 1469, मृत्यु 1538 ।

सिख धर्म के प्रवर्तक व सिखों के प्रथम गुरु नानक जी का जन्म पंजाब के ननकाना साहिब के तलवडी गांव में हुआ । इनके पिता का नाम कालू चन्द व माता का नाम तृप्ता था । इनकी पत्नी का नाम सुलक्षणी था । इनके दो पुत्र थे- श्रीचन्द और लक्ष्मीचन्द । गुरु नानक देव जी ने अनेक पद, साखियाँ और भजन लिखे हैं । इनका संकलन सिखों के छठे गुरु अर्जुन देव जी ने सन् 1604 में गुरु ग्रन्थ साहिब में किया । इनके अनेक पदों की रचना गुरु ग्रन्थ साहेब में संकलित है । इनके प्रमुख रचनाएँ निम्न हैं – जपुजी, रहिरास, आसा दी वार और सोहिला ।

 

4. दादूदयाल-

जन्म 1544, मृत्यु 1603 ।

इनकी रचनाएँ “हरडेवाणी'’ नाम से उनके शिष्यों संतदास व जगतदास ने संकलित की हैं । इन्होने दादू पन्थ का प्रवर्तन किया ।

 

5. मलूक दास -

जन्म 1574, मृत्यु 1682 ।

इनका जन्म इलाहबाद जिले के कड़ा नामक गाँव में हुआ ।

इनकी रचनाएँ निम्न हैं-  ज्ञानबोध, रतनखान, भक्तिविवेक, भक्त बच्छावली, भक्त विरुदावली, पुरुष विलास, गुरु प्रताप अलखवनी, अवतार लीला, बारहखड़ी, ब्रजलीला, ध्रुवचरित ।

 

 

निर्गुण भक्ति- प्रेममार्गी शाखा

     

    इस धारा को सूफ़ी धारा भी कहते हैं । सूफ़ी शब्द सुफ का अर्थ है । सुफ का अर्थ ऊन, पगड़ी या चबूतरा होता है । मक्का मस्जिद के चबूतरे पर बैठकर भक्तिपरक गीत गाने के कारण से सूफ़ी कहलाए ।

 

 सूफी काव्यधारा के प्रमुख कवि-

 

1. मलिक मुहम्मद जायसी 

जन्म-1492, मृत्यु- 1542 ।

मलिक मुहम्मद जायसी का जन्म रायबरेली के जायस नगर में हुआ था । ये शेरशाह सूरी के समकालीन थे ।  मलिक मुहम्मद जायसी सूफी काव्यधारा के प्रमुख कवि थे । विद्वानों द्वारा इनकी 21रचनाएँ स्वीकारी जाती हैं । इन रचनाओं में पद्मावत, अखरावट, आखरी कलाम ये तीन रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं । अन्य रचनाएँ निम्न हैं- चम्पावत, इरावत, सखरावत,  मरकावत, चित्रावत, नैनावत, आखिरी कलाम, चित्ररेखा, कहरनामा, मसलानामा आदि ।  “पद्मावत” सूफी काव्यधारा का प्रतिनिधि ग्रन्थ है । यह ग्रन्थ 1540 में लिखा गया । इस धन्य में चित्तौड़ के राजा रत्नसेन व सिंहल द्वीप की कन्या पद्मावती के प्रेम विवाह व विवाह के पश्चात का वर्णन है । यह महाकाव्य अवधी में लिखा गया है ।

 

2. मुल्ला दाउद-

मुल्ला दाउद की रचना 'चन्दायन है । इस ग्रन्थ की भाषा अवधी है । इस काव्य के नायक का नाम लोर और नायिका का नाम चन्दा है ।

 

3. कुतुबन-

कुतुबन का जन्म 1493 में हुआ था । इनके गुरु का नाम शेख बुरहान था । इनकी रचना का नाम 'मृगावती' है । इसमें चन्द्रनगर के राजकुमार और कंचन पुरी की मृगावती की प्रेम कथा का वर्णन है । इस काव्य की भाषा अवधी है ।

  

4. मंझन –

इनकी रचना का मधुमालती है । इस काव्य के नायक का नाम मनोहर और नायिका का नाम मधुमालती है । इस काव्य की भाषा अवधी है ।

  

सगुण भक्ति काव्यधारा-

# सगुण काव्यधारा के भी दो भेद हैं- 1. रामभक्ति काव्य धारा 2. कृष्ण काव्य धारा । क्रम से दोनों के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं-


1. रामभक्ति काव्यधारा

     रामभक्ति काव्यधारा का प्रारम्भ श्री रामानुज जी व श्री  सम्प्रदाय से माना जाता है । रामभक्ति काव्यधारा में श्रीराम जी को अवतार के रूप में दिखाया गया है । इस धारा के अधिकांश कवियों ने दास्य भावना की भक्ति की है ।

 

रामभक्ति काव्यधारा के प्रमुख कवि-

 

1. गोस्वामी तुलसीदास - 

जन्म 1532, मृत्यु 1623 ।

इनके पिता का नाम आत्माराम दुबे व माता का नाम हुलसी था । इन्होंने नरहरिदास से शिक्षा-दीक्षा ली । तुलसी जी का विवाह रत्नावली से हुआ । मूल नक्षत्र में पैदा होने के कारण इनके माता-पिता ने इनका परित्याग कर दिया था । बाबा नरहरिदास ने इनका लालन-पालन किया । तुलसी जी के ग्रन्थ- रामचरित मानस, रामलला नहछू,  बरवै रामायण, बैराग्य सन्दीपनी, पार्वती मंगल, जानकी मंगल, रामाज्ञा प्रश्न, दोहावली, कवितावली,   गीतावली, कृष्ण गीतावली, विनयपत्रिका । तुलसी जी का प्रमुख काव्य रामचरित मानस है ।

 रामचरित मानस

     इस रचना का लेखन कार्य 1574 में हुआ था । इसको लिखने में 2 वर्ष व 9 माह लगे थे । इस रचना की भाषा अवधी है । इसमें कुल 7 काण्ड हैं- 1. बालकाण्ड 2. अयोध्याकाण्ड 3. अरण्यकाण्ड 4. किष्किन्धाकाण्ड 5. सुन्दर काण्ड 6. लंका काण्ड 7. उत्तरकाण्ड । इस ग्रन्थ का मूल “वाल्मीकि रामायण'’ है ।

 

2. स्वामी रामानन्द-

     स्वामी रामानन्दजी का जन्म 1400 में व मृत्यु 1470 ई. में हुई । इनका जन्म काशी में हुआ था और इन्होंने वैष्णव सम्प्रदाय के आचार्य राघवानन्द से दीक्षा ग्रहण की थी । वर्णाश्रम में आस्था रखने वाले रामानन्दजी भक्ति मार्ग में उन्होंने सभी को समान मानते हुए निम्न वर्ग के भक्तों को अपना शिष्यत्व प्रदान किया । इनके शिष्यों में कबीर, रैदास, धन्ना, पीपा आदि थे । स्वामी रामानन्दजी संस्कृत के पंडित थे । इन्होंने “वैष्णव मताब्द भास्कर” और “श्रीरामार्जुन पद्धति” यह प्रमुख ग्रंथ लिखे हैं । रामानन्दजी की भक्ति पध्दति का प्रभाव राम-भक्ति परम्परा पर लक्षित होता है। गोस्वामी तुलसीदास भी इनकी विचारधारा से प्रभावित थे । रामानन्द जी ने हनुमान जी की स्तुति लिखी, जो इस प्रकार से है- “आरती कीजै हनुमान लला की दुष्टदलन रघुनाथ कला की ।” ।।

 

3. स्वामी अग्रदास-

    स्वामी रामानंद की शिष्य परम्परा के राम भक्त कवि स्वामी अग्रदास थे । इन्होंने कृष्णदास पयहरी से दीक्षा लेकर शिष्यत्व प्राप्त किया था । इनके प्रमुख ग्रंथ 'ध्यान मंजरी',  'हितोपदेश उपखाणाँ बावनी,' 'रामभजन मंजरी', 'उपासना बावनी', 'कुंडलिया' आदि हैं ।


4. नाभादास-

     यह तुलसीदास कालीन रामभक्त कवि थे । नाभादास अग्रदास के शिष्य थे । इनकी तीन रचनाएँ हैं- 1. भक्तमाल 2. अष्टयाम 3. रामभक्ति सम्बन्धी स्फुट पद । इनकी रचना 'अष्टयाम' में सीता वल्लभ राम की दैनिक लीलाओं का चित्रण है ।

 

5.ईश्वरदास-

     ईश्वरदासजी का जन्म 1480 ई. माना जाता है। उनकी सुप्रसिद्ध कृति 'सत्यवती कथा' है, इसका रचना काल 1501 ई. है । रामकथा से संबंधित इनकी 'भरत मिलाप' और "अंगद पैज' यह दो रचनाएँ प्रचलित है । 'भरत मिलाप' में राम के वनगमन के उपरान्त 'भरत राम' भेट के करुण-कोमल प्रसंग को इस काव्य-कृति में पद्यबद्ध किया गया है । ईश्वरदास की दूसरी रचना 'अंगद पैज' रावण की सभा में अंगद के पैर जमाकर डट जाने का वीररसपूर्ण वर्णन मिलता है ।

 

6.केशवदास-

     केशवदास का जन्म 1555 ई. में और मृत्यु १६१७ ई. में हुई । इनके द्वारा लिखे गए प्रमुख ग्रंथ- कविप्रिया, रसिकप्रिया, रामचंद्रिका, वीरसिंहचरित, विज्ञानगीता, रतनबावनी और जहांगीर जसचंद्रिका आदि हैं । इनमें रामचन्द्रिका रामकाव्य परम्परा अंतर्गत प्रमुख कृति है ।

 

इनके अतिरिक्त रामकाव्य के अन्य कवि निम्न हैं- सेनापति, प्राणचन्द्र चौहान, माधवदास चारण, हृदयराम, नरहरि वापट, लालदास, और कपूरचन्द त्रिखा ।

 

 

कृष्णभक्ति काव्यधारा-

 

    कृष्ण भक्ति काव्यधारा की रचनाओं का मूल स्रोत ‘श्रीमद्भागवत पुराण' है । इस काव्यधारा के कवियों ने वल्लभ सम्प्रदाय, चैतन्य सम्प्रदाय, निम्बार्क सम्प्रदाय, गौडीय सम्प्रदाय, हरिदासी सम्प्रदाय आदि के रूप में कृष्ण का वर्णन किया । इस धारा के कवियों ने राधा कृष्ण की लीला का विशेष वर्णन किया । हिन्दी साहित्य में कृष्णभक्ति काव्य की प्रेरणा देने का श्रेय श्री वल्लभाचार्य जी (1478 ई.-1530 ई,) को जाता है । ये पुष्टिमार्ग के संस्थापक और प्रवर्तक थे । इनके द्वारा पुष्टिमार्ग में दीक्षित होकर सूरदास आदि आठ कवियों की मंडली ने अत्यन्त महत्त्वपूर्ण साहित्य की रचना की थी । इन आठ भक्त कवियों में चार वल्लभाचार्य जी के शिष्य थे औरा गोस्वामी बिट्ठलनाथ के शिष्य थे ।

 

वल्लभाचार्य जी के शिष्य-

सूरदास

कुम्भनदास

परमानंद दास

कृष्णदास

 

गोस्वामी बिट्ठलनाथ के शिष्य-

गोविंदस्वामी

नंददास

छीतस्वामी 

चतुर्भुजदास

    ये आठों भक्त कवि श्रीनाथजी के मन्दिर की नित्य लीला में भगवान श्रीकृष्ण के सखा के रूप में सदैव उनके साथ रहते थे,  इस रूप में इन्हे 'अष्टसखा' की संज्ञा से भी जाना जाता है । क्रम से सभी के बारे में जानते हैं-

 

1. कुम्भनदास -

     जन्म 1468 व मृत्यु 1582 ।

    कुम्भनदास ने 1492 में बल्लभाचार्य जी से दीक्षा ग्रहण की । ये श्रीनाथ जी के अनन्य भक्त थे । इनका कोई स्वतन्त्र ग्रन्थ नहीं है, परन्तु कुछ पद 'रागकल्पद्रुम', 'रागरत्नाकर', ‘वर्षोत्सव कीर्तन’ व ‘वसन्त धमार कीर्तन' आदि में संकलित हैं ।

 

2. परमानन्द दास-

    जन्म 1493 व मृत्यु 1584 ।

    परमानन्द दास ने भी बल्लभाचाचार्य जी से दीक्षा ली थी । इनकी रचनाओं का प्रकाशन परमानन्द सागर' 'परमानन्द के पद' और वल्लभ सम्प्रदायी कीर्तन संग्रह नाम से हुआ ।

 

3. सूरदास-

    जन्म 1478 व मृत्यु 1583 ।

    सूरदास कृष्ण भक्ति के सर्वश्रेष्ठ कवि हैं । चौरासी वैष्णवन वार्ता' के अनुसार इनका जन्म दिल्ली के निकट ‘सीही' के सारस्वत ब्राह्मण परिवार में हुआ । सूरदास को जन्मान्ध माना जाता है । इनके गुरु वल्लभाचार्य जी थे । सूरदास जी की कुल 25, रचनाएँ मानी जाती हैं । जिनमें कुछ प्रमुख रचनाएँ निम्न हैं- सूरसागर, सूरसारावली, साहित्य लहरी, सूरपचीसी, सूर रामायण, सूरसाठी, राधा रसकेलि, । इन रचनाओं में सूरसागर व साहित्य लहरी सर्वश्रेष्ठ रचनाएँ हैं । सूरसागर में भागवत पुराण के समान 12 स्कन्ध हैं ।  सूरदास की रचनाओं में वात्सल्य भाव स्पष्ट रूप से देखा जाता है । सूरदास ने प्रेम व विरह के द्वारा सगुण मार्ग से कृष्ण को साध्य माना है । इनकी रचनाओं में ब्रज भाषा का प्रयोग हुआ है ।

 

4. कृष्णदास-

    जन्म- 1496, मृत्यु- 1579 |

    कृष्णदास का जन्म गुजरात में राज नगर राज्य के चिलोतरा गांव में हुआ । ये बाल्यकाल में घर छोड़कर व्रज आ गए थे । इनके 186 पद 'पद संग्रह 'में संकलित हुए हैं ।

 

5. नन्ददास-

    जन्म- 1513, मृत्यु- 1583

    नन्ददास का जन्म उत्तर प्रदेश के सूकर क्षेत्र (सोरों) के रामपुर गाँव में हुआ था । इनकी काव्यभाषा ब्रज थी । इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्न हैं- अनेकार्थमंजरी, रसमंजरी, मानमंजरी, रूपमंजरी, विरहमंजरी, ज्ञानमंजरी, प्रेम बारहखड़ी, श्याम सगाई, भ्रमरगीत,  रास पंचाध्यायी, सिद्धान्त पंचाध्यायी, गोवर्धन लीला, नन्ददास पदावली, दानलीला, मानलीला, सुदामाचरित्र ।

 

6. गोविन्द स्वामी –

    जन्म- 1505,  मृत्यु- 1585 ।

    गोविन्द खामी का जन्म राजस्थान के भरतपुर राज्य के आंतरी नामक गांव में हुआ । इनके गुरु विकलनाथ जी थे । इनके 232 पद “गोविन्द स्वामी के पद” नाम से संकलित हुए ।

 

7. छीत स्वामी-

    जन्म- 1515,  मृत्यु- 1585 ।

   छीतस्वामी का जन्म मथुरा में हुआ | ये चतुर्वेदी ब्राह्मण थे । इनके 200 पद ‘पदावली’ नाम से संकलित हुए ।

 

8. चतुर्भुजदास-

    जन्म- 1518,  मृत्यु- 1585 ।

   चतुर्भुजदास का जन्म गोवर्धन के समीप जमुनावती गांव में हुआ । ये कुम्भनदास के सबसे छोटे पुत्र थे । इनकी रचनाएँ- चतुर्भज कीर्तन संग्रह, कीर्तनावली और दानलीला नाम से संकलित हुई।

 

 

कृष्ण भक्ति काव्यधारा के अन्य कवि-

 

मीराबाई -

     मीराबाई का जन्म 1504 में व मृत्यु 1563 में हुई । उनके पिता का नाम रत्नसिंह था । मीरा का विवाह चित्तौड़ के राणा सांगा के ज्येष्ठ पुत्र भोजराज के साथ हुआ । विवाह के 7 साल बाद ही इनके पति की मृत्यु हो गई । ये कृष्ण को ही अपना पति मानती थी । इनकी रचनाएँ- गीत गोविन्द टीका, नरसी जी का मायरा, स्फुट पद, राग सोरठ के पद ।

 

रसखान –

     रसखान का जन्म 1533 व मृत्यु 1618 में हुई । इसका मूल नाम सैयद इब्राहिम था । इन्होंने विट्ठलनाथ जी से वल्लभ सम्प्रदाय की दीक्षा ली । इनकी प्रमुख रचनाएँ - सुजान रसखान, प्रेम वाटिका । इनकी भाषा ब्रज थी ।

 

 

धन्यवाद ।

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8 Comments

  1. SIR AAPKE SAMJHANE KA TARIKA BAHUT ACCHA HAI SIR

    Sir aap cuntititution par post daale aap sir

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  2. बोहोत ही अच्छी तरीके से दिया गया है , इससे काफी हद तक मदद मिलेगी , आधुनिक काल के विषय मे भी बता दीजिए सर🙏🙏

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  3. Very good sir and mem and friends..

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  4. Very nice sir and mem and friends

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  5. Aapki post achi lgi isase Hume study m help mili
    Thank u sir

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  6. कबीर दास जी की मृत्यु का वर्ष गलत है

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