भक्तिकाल की सम्पूर्ण जानकरी
Complete information of the Bhaktikal
भक्तिकाल- एक परिचय
Bhaktikal- an introduction
हिन्दी
साहित्य के इतिहास के वर्गीकरण में भक्तिकाल का द्वितीय स्थान है । भक्तिकाल का आरम्भ
अधिकांश विद्वान सन् 1350 से मानते हैं, किन्तु आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी सन् 1375
से स्वीकारते हैं । इस काल को भक्ति का स्वर्ण युग कहा गया है क्योंकि इस काल में संत
कबीर, जायसी, तुलसीदास, सूरदास इन समकालीन कवियों ने अपनी रचनाओं का निर्माण कर भक्ति
को चरम पर पहुँचाया । उपासना भेद की दृष्टि से इस काल के साहित्य को दो भागों में बाँटा
गया है । एक सगुण भक्ति और दूसरा निर्गुण भक्ति । निर्गुण के दो भेद किए गए है । संतो
की निर्गुण उपासना अर्थात ज्ञानमार्गी शाखा तथा सूफियों की निर्गुण उपासना अर्थात प्रेममार्गी
शाखा । सगुण में विष्णु के दो अवतार राम और कृष्ण की उपासना साहित्य सृजित है । इस पोस्ट में भक्तिकाल की सम्पूर्ण जानकारी (Bhaktikal ki jankari) प्रदान की जा रही है ।
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Bhaktikal |
भक्तिकाल की परिस्थितियाँ-
1. राजनैतिक परिस्थितियाँ -
भक्तिकाल का साहित्य राजनीतिक वातावरण के प्रतिकूल है । कबीर, जायसी,
तुलसी और सूरदास आदि इन कवियों को न तो सीकरी से काम था और न प्राकृत जन गुण-गान से
सरोकार था । ये भक्ति मार्ग की धारा में अविरल बढते चले जा रहे थे ।
2. सामाजिक परिस्थितियाँ-
3. धार्मिक परिस्थितियाँ-
3. साहित्यिक परिस्थितियाँ-
भक्तिकाल के अन्य नाम-
Bhaktikal ke anya nam-
(1)
माध्यमिक काल |
मिश्रबन्धु |
(2)
भक्तिकाल |
आचार्य
रामचन्द्र शुक्ल, डॉ. रामकुमार वर्मा, हजारी
प्रसाद द्विवेदी |
(3)
पूर्व मध्यकाल |
डॉ.
गणपति चन्द्र गुप्त |
भक्तिकाल का वर्गीकरण-
Bhaktikal ka vargikaran-
#
भक्तिकाल का वर्गीकरण मुख्य रूप से दो भागों में किया गया है-
1.
निर्गुण काव्यधारा 2. सगुण काव्यधारा
#
निर्गुण काव्यधारा के दो भेद हैं-
1.
सन्त काव्य धारा- कबीरदास
2.
सूफी काव्यधारा- मलिक मुहम्मद जायसी
1. राम काव्य धारा- तुलसीदास
2. कृष्ण काव्य धारा- सूरदास
निर्गुण काव्यधारा-
Nirgun Kavyadhara-
निर्गुण भक्ति निराकार ईश्वर की भक्ति है, अर्थात जिस ईश्वर को आकार रूप में न स्वीकार किया जाए । निर्गुण भक्ति में ईश्वर का वास घट-घट में है । निर्गुण भक्ति का मार्ग ज्ञानमार्गी है । इसमें जाति-पाँति, वर्णभे व छुआछूत का कोई स्थान नहीं है । निर्गुण भक्ति के लिए गुरु का विशेष महत्त्व है । निर्गुण भक्ति में प्रेम का विशेष महत्त्व है, प्रेम के बिना भक्ति संभव नहीं है ।
निर्गुण
भक्ति के दो भेद हैं – 1. ज्ञानाश्रयी 2. प्रेमाश्रमी
निर्गुण ज्ञानाश्रयी काव्य
के प्रमुख कवि-
1. कबीरदास –
जन्म-
1398, मृत्यु- 1518 ।
इनका
लालन-पालन नीरू और नीमा नामक जुलाहा दम्पति ने किया । इनकी पत्नी का नाम लोई था । इनके
कमाल और कमाली नाम की दो बच्चे थे । इनके गुरु का नाम रामनन्द था । ये सिकन्दर लोदी
के समकालीन थे । कबीर की रचनाओं का संकलन 'बीजक' है । इसके संकलन कर्ता धर्मदास हैं
। बीजक ग्रन्थ के तीन भाग हैं- 1. साखी 2. सबद 3. रमैनी । ये अनपढ़ थे, जिसके बारे में
इनकी स्वयं की एक उक्ति है- “समि कागद छुयो नहीं, कलम गह्यौ नहिं हाथ ।
इनके राम निर्गुण व निराकार थे । कबीर ने सामाजिक रुढियों, अंधविश्वासों, मूर्तिपूजा, हिंसा, माया, जात-पात, छुआछूत का उग्र विरोध किया ।
2. रैदास (रविदास) –
इनका
जन्म काशी में हुआ था । इनके गुरु का नाम रामानन्द था । ये रामानन्द के 12 शिष्यों
में से एक थे । इन्होने अपनी जाति के बारे में स्वयं लिखा है- “कह रैदास खलास चमारा
।” रैदास की रचनाएँ संतमन के विभिन्न संग्रहों में संकलित हैं । रैदास के 25 पद गुरु ग्रन्थ साहिब में प्रकाशित हैं
।
3. गुरु नानक देव-
जन्म
1469, मृत्यु 1538 ।
सिख
धर्म के प्रवर्तक व सिखों के प्रथम गुरु नानक जी का जन्म पंजाब के ननकाना साहिब के
तलवडी गांव में हुआ । इनके पिता का नाम कालू चन्द व माता का नाम तृप्ता था । इनकी पत्नी
का नाम सुलक्षणी था । इनके दो पुत्र थे- श्रीचन्द और लक्ष्मीचन्द । गुरु नानक देव जी
ने अनेक पद, साखियाँ और भजन लिखे हैं । इनका संकलन सिखों के छठे गुरु अर्जुन देव जी
ने सन् 1604 में गुरु ग्रन्थ साहिब में किया । इनके अनेक पदों की रचना गुरु ग्रन्थ
साहेब में संकलित है । इनके प्रमुख रचनाएँ निम्न हैं – जपुजी, रहिरास, आसा दी वार और
सोहिला ।
4. दादूदयाल-
जन्म 1544, मृत्यु 1603 ।
इनकी
रचनाएँ “हरडेवाणी'’ नाम से उनके शिष्यों संतदास व जगतदास ने संकलित की हैं । इन्होने
दादू पन्थ का प्रवर्तन किया ।
5. मलूक दास -
जन्म
1574, मृत्यु 1682 ।
इनका
जन्म इलाहबाद जिले के कड़ा नामक गाँव में हुआ ।
इनकी
रचनाएँ निम्न हैं- ज्ञानबोध, रतनखान, भक्तिविवेक,
भक्त बच्छावली, भक्त विरुदावली, पुरुष विलास, गुरु प्रताप अलखवनी, अवतार लीला, बारहखड़ी,
ब्रजलीला, ध्रुवचरित ।
निर्गुण भक्ति- प्रेममार्गी
शाखा
सूफी काव्यधारा के प्रमुख
कवि-
1. मलिक मुहम्मद जायसी
जन्म-1492,
मृत्यु- 1542 ।
मलिक
मुहम्मद जायसी का जन्म रायबरेली के जायस नगर में हुआ था । ये शेरशाह सूरी के समकालीन
थे । मलिक मुहम्मद जायसी सूफी काव्यधारा के
प्रमुख कवि थे । विद्वानों द्वारा इनकी 21रचनाएँ स्वीकारी जाती हैं । इन रचनाओं में
पद्मावत, अखरावट, आखरी कलाम ये तीन रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं । अन्य रचनाएँ निम्न
हैं- चम्पावत, इरावत, सखरावत, मरकावत, चित्रावत,
नैनावत, आखिरी कलाम, चित्ररेखा, कहरनामा, मसलानामा आदि । “पद्मावत” सूफी काव्यधारा का प्रतिनिधि ग्रन्थ है
। यह ग्रन्थ 1540 में लिखा गया । इस धन्य में चित्तौड़ के राजा रत्नसेन व सिंहल द्वीप
की कन्या पद्मावती के प्रेम विवाह व विवाह के पश्चात का वर्णन है । यह महाकाव्य अवधी
में लिखा गया है ।
2. मुल्ला दाउद-
मुल्ला दाउद की रचना 'चन्दायन है । इस ग्रन्थ की भाषा अवधी है । इस काव्य के नायक का नाम लोर और नायिका का नाम चन्दा है ।
3. कुतुबन-
कुतुबन का जन्म 1493 में हुआ था । इनके गुरु का नाम शेख बुरहान था । इनकी रचना का नाम 'मृगावती' है । इसमें चन्द्रनगर के राजकुमार और कंचन पुरी की मृगावती की प्रेम कथा का वर्णन है । इस काव्य की भाषा अवधी है ।
4. मंझन –
इनकी
रचना का मधुमालती है । इस काव्य के नायक का नाम मनोहर और नायिका का नाम मधुमालती है
। इस काव्य की भाषा अवधी है ।
सगुण भक्ति काव्यधारा-
# सगुण काव्यधारा के भी दो भेद हैं- 1. रामभक्ति काव्य धारा 2. कृष्ण काव्य धारा । क्रम से दोनों के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं-
1. रामभक्ति काव्यधारा
रामभक्ति काव्यधारा के प्रमुख कवि-
1. गोस्वामी तुलसीदास -
जन्म 1532, मृत्यु 1623 ।
इनके
पिता का नाम आत्माराम दुबे व माता का नाम हुलसी था । इन्होंने नरहरिदास से शिक्षा-दीक्षा
ली । तुलसी जी का विवाह रत्नावली से हुआ । मूल नक्षत्र में पैदा होने के कारण इनके
माता-पिता ने इनका परित्याग कर दिया था । बाबा नरहरिदास ने इनका लालन-पालन किया । तुलसी
जी के ग्रन्थ- रामचरित मानस, रामलला नहछू,
बरवै रामायण, बैराग्य सन्दीपनी, पार्वती मंगल, जानकी मंगल, रामाज्ञा प्रश्न,
दोहावली, कवितावली, गीतावली, कृष्ण गीतावली, विनयपत्रिका । तुलसी जी का प्रमुख काव्य रामचरित मानस है ।
2. स्वामी रामानन्द-
3. स्वामी अग्रदास-
स्वामी रामानंद की शिष्य परम्परा के राम भक्त कवि स्वामी अग्रदास थे । इन्होंने कृष्णदास पयहरी से दीक्षा लेकर शिष्यत्व प्राप्त किया था । इनके प्रमुख ग्रंथ 'ध्यान मंजरी', 'हितोपदेश उपखाणाँ बावनी,' 'रामभजन मंजरी', 'उपासना बावनी', 'कुंडलिया' आदि हैं ।
4. नाभादास-
5.ईश्वरदास-
6.केशवदास-
इनके
अतिरिक्त रामकाव्य के अन्य कवि निम्न हैं- सेनापति, प्राणचन्द्र चौहान, माधवदास चारण,
हृदयराम, नरहरि वापट, लालदास, और कपूरचन्द त्रिखा ।
कृष्णभक्ति काव्यधारा-
कृष्ण
भक्ति काव्यधारा की रचनाओं का मूल स्रोत ‘श्रीमद्भागवत पुराण' है । इस काव्यधारा के
कवियों ने वल्लभ सम्प्रदाय, चैतन्य सम्प्रदाय, निम्बार्क सम्प्रदाय, गौडीय सम्प्रदाय,
हरिदासी सम्प्रदाय आदि के रूप में कृष्ण का वर्णन किया । इस धारा के कवियों ने राधा
कृष्ण की लीला का विशेष वर्णन किया । हिन्दी साहित्य में कृष्णभक्ति काव्य की प्रेरणा
देने का श्रेय श्री वल्लभाचार्य जी (1478 ई.-1530 ई,) को जाता है । ये पुष्टिमार्ग
के संस्थापक और प्रवर्तक थे । इनके द्वारा पुष्टिमार्ग में दीक्षित होकर सूरदास आदि
आठ कवियों की मंडली ने अत्यन्त महत्त्वपूर्ण साहित्य की रचना की थी । इन आठ भक्त कवियों
में चार वल्लभाचार्य जी के शिष्य थे औरा गोस्वामी बिट्ठलनाथ के शिष्य थे ।
वल्लभाचार्य जी के शिष्य-
सूरदास
कुम्भनदास
परमानंद
दास
कृष्णदास
गोस्वामी बिट्ठलनाथ के
शिष्य-
गोविंदस्वामी
नंददास
छीतस्वामी
चतुर्भुजदास
ये आठों भक्त कवि श्रीनाथजी के मन्दिर की नित्य लीला में भगवान श्रीकृष्ण के सखा के रूप में सदैव उनके साथ रहते थे, इस रूप में इन्हे 'अष्टसखा' की संज्ञा से भी जाना जाता है । क्रम से सभी के बारे में जानते हैं-
1. कुम्भनदास -
कुम्भनदास ने 1492 में बल्लभाचार्य जी से दीक्षा ग्रहण की । ये श्रीनाथ जी के अनन्य भक्त थे । इनका कोई स्वतन्त्र ग्रन्थ नहीं है, परन्तु कुछ पद 'रागकल्पद्रुम', 'रागरत्नाकर', ‘वर्षोत्सव कीर्तन’ व ‘वसन्त धमार कीर्तन' आदि में संकलित हैं ।
2. परमानन्द दास-
जन्म 1493 व मृत्यु 1584 ।
3. सूरदास-
जन्म 1478 व मृत्यु 1583 ।
सूरदास
कृष्ण भक्ति के सर्वश्रेष्ठ कवि हैं । चौरासी वैष्णवन वार्ता' के अनुसार इनका जन्म
दिल्ली के निकट ‘सीही' के सारस्वत ब्राह्मण परिवार में हुआ । सूरदास को जन्मान्ध माना
जाता है । इनके गुरु वल्लभाचार्य जी थे । सूरदास जी की कुल 25, रचनाएँ मानी जाती हैं
। जिनमें कुछ प्रमुख रचनाएँ निम्न हैं- सूरसागर, सूरसारावली, साहित्य लहरी, सूरपचीसी,
सूर रामायण, सूरसाठी, राधा रसकेलि, । इन रचनाओं में सूरसागर व साहित्य लहरी सर्वश्रेष्ठ
रचनाएँ हैं । सूरसागर में भागवत पुराण के समान 12 स्कन्ध हैं । सूरदास की रचनाओं में वात्सल्य भाव स्पष्ट रूप से
देखा जाता है । सूरदास ने प्रेम व विरह के द्वारा सगुण मार्ग से कृष्ण को साध्य माना
है । इनकी रचनाओं में ब्रज भाषा का प्रयोग हुआ है ।
4. कृष्णदास-
जन्म- 1496, मृत्यु- 1579 |
कृष्णदास
का जन्म गुजरात में राज नगर राज्य के चिलोतरा गांव में हुआ । ये बाल्यकाल में घर छोड़कर
व्रज आ गए थे । इनके 186 पद 'पद संग्रह 'में संकलित हुए हैं ।
5. नन्ददास-
जन्म- 1513, मृत्यु- 1583
नन्ददास
का जन्म उत्तर प्रदेश के सूकर क्षेत्र (सोरों) के रामपुर गाँव में हुआ था । इनकी काव्यभाषा
ब्रज थी । इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्न हैं- अनेकार्थमंजरी, रसमंजरी, मानमंजरी, रूपमंजरी,
विरहमंजरी, ज्ञानमंजरी, प्रेम बारहखड़ी, श्याम सगाई, भ्रमरगीत, रास पंचाध्यायी, सिद्धान्त पंचाध्यायी, गोवर्धन लीला,
नन्ददास पदावली, दानलीला, मानलीला, सुदामाचरित्र ।
6. गोविन्द स्वामी –
जन्म- 1505, मृत्यु- 1585 ।
गोविन्द
खामी का जन्म राजस्थान के भरतपुर राज्य के आंतरी नामक गांव में हुआ । इनके गुरु विकलनाथ
जी थे । इनके 232 पद “गोविन्द स्वामी के पद” नाम से संकलित हुए ।
7. छीत स्वामी-
जन्म- 1515, मृत्यु- 1585 ।
छीतस्वामी का जन्म मथुरा में हुआ | ये चतुर्वेदी ब्राह्मण थे । इनके 200 पद ‘पदावली’ नाम से संकलित हुए ।
8. चतुर्भुजदास-
जन्म- 1518, मृत्यु- 1585 ।
चतुर्भुजदास
का जन्म गोवर्धन के समीप जमुनावती गांव में हुआ । ये कुम्भनदास के सबसे छोटे पुत्र
थे । इनकी रचनाएँ- चतुर्भज कीर्तन संग्रह, कीर्तनावली और दानलीला नाम से संकलित हुई।
कृष्ण भक्ति काव्यधारा
के अन्य कवि-
मीराबाई -
रसखान –
धन्यवाद
।
8 Comments
धन्यवाद गुरुजी
ReplyDeleteSIR AAPKE SAMJHANE KA TARIKA BAHUT ACCHA HAI SIR
ReplyDeleteSir aap cuntititution par post daale aap sir
बोहोत ही अच्छी तरीके से दिया गया है , इससे काफी हद तक मदद मिलेगी , आधुनिक काल के विषय मे भी बता दीजिए सर🙏🙏
ReplyDeleteVery good sir and mem and friends..
ReplyDeleteVery nice sir and mem and friends
ReplyDeleteAapki post achi lgi isase Hume study m help mili
ReplyDeleteThank u sir
bahut achha he
ReplyDeleteकबीर दास जी की मृत्यु का वर्ष गलत है
ReplyDeleteसाथियों ! यह पोस्ट अपको कैसे लगी, कमेंट करके अवश्य बताएँ, यदि आप किसी टोपिक पर जानकारी चाहते हैं तो वह भी बता सकते हैं ।