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Shashthi Vibhakti ki upapad Vibhakti । षष्ठी विभक्ति की उपपद विभक्तियाँ । Shashthi Vibhakti in sanskrit । षष्ठी विभक्ति ।

षष्ठी विभक्ति की उपपद विभक्तियाँ


उपपद विभक्तियाँ-

       वाक्य में जब किसी विशेष पद (शब्द) के कारण कोई विभक्ति आती है, उसे उपपद विभक्ति कहते हैं । उपपद विभक्ति में कारक विभक्ति का प्रयोग नहीं करते हैं । जैसे-

(क) गाँव के चारों ओर पेड़ हैं ।

      ग्रामं अभित: वृक्षा: सन्ति ।

       इस वाक्य में ‘अभित:’ उपपद शब्द है, अभित: के योग में द्वितीया विभक्ति होती है । अभित: का अर्थ है “चारों ओर” । ‘चारों ओर’ का प्रभाव गाँव शब्द पर पड़ रहा है । अत: गाँव शब्द में द्वितीया विभक्ति (ग्रामं) हुई है ।

       यदि हम कारक के नियम के अनुसार देखें तो ‘गाँव’ के साथ ‘के’ कारक चिह्न है और ‘के’ चिह्न ‘सम्बन्ध’ का होता है, सम्बन्ध में षष्ठी विभक्ति होती है, परन्तु ऊपर के वाक्य में ‘अभितः’ के कारण द्वितीया विभक्ति हुई है ।


षष्ठी विभक्ति की उपपद विभक्तियाँ-


षष्ठी विभक्ति का सूत्र-

    “षष्ठी शेषे” – जो बात अन्य विभक्तियों से नहीं बतलाई जा सकती है, उसको बतलाने के लिए षष्ठी विभक्ति का प्रयोग होता है । किसी एक वस्तु का दूसरी वस्तु के साथ सम्बन्ध दिखाने के लिए सम्बन्ध का प्रयोग करते हैं ।


नियम- 1 “षष्ठी हेतुप्रयोगे”

हेतु (प्रयोजन) शब्द के साथ षष्ठी होती है । जैसे-

अन्न के लिए गाँव में रहता है ।

अन्नस्य हेतोः ग्रामे वसति ।

विशेष- यदि हेतु शब्द् के साथ सर्वनाम का प्रयोग हो तो सर्वनाम व हेतु शब्द दोनों में तृतीया, पंचमी या षष्ठी होती है ।

 

नियम- 2 “षष्ठ्यतसर्थप्रत्ययेन”

       अतसुच् (तस्) प्रत्ययान्त शब्दों (उत्तरतः, दक्षिणतः आदि) तथा इस प्रत्यय का अर्थ रखने वाले प्रत्ययान्त (उपरि, अधः, अग्रे, आदौ, पुरः आदि) की जिससे समीपता पायी जाती है , उसमें षष्ठी होती है । जैसे-

राम उत्तर की ओर से आता है ।

रामः उत्तरतः आगच्छति ।

पेड़ के उपर पक्षी हैं ।

वृक्षस्य उपरि खगाः सन्ति ।

विद्यालय के आगे तालाब हैं ।

विद्यालयस्य अग्रे सरोवरः अस्ति ।

 

नियम- 3 “दूरान्तिकार्थैः षष्ठ्यन्यतरस्याम्”

       दूर, अन्तिक (समीप) तथा इनके अर्थवाची शब्दों का प्रयोग होने पर षष्ठी तथा पंचमी होती है । जैसे-

गाँव से दूर वन है ।

ग्रामस्य/ग्रामाद् दूरं वनम् अस्ति ।

विद्यालय के समीप घर है ।

विद्यालयस्य समीपं गृहम् अस्ति ।

 

नियम- 4 “यतश्च निर्धारणम्”

एक समूह में से एक वस्तु को जब विशिष्ठ दिखाकर छाँट दी जाती है, तब जिससे छाँटा जाय उसमें षष्ठी विभक्ति होती है । जैसे-

कवियों में कालिदास श्रेष्ठ है ।

कवीनां/कविषु कालिदासः श्रेष्ठः ।

पर्वतों में हिमालय ऊँचा है ।

पर्वतेषु हिमालयः उन्नतः ।

 

नियम- 5 “षष्ठी चानादरे”

    जिसका अनादर (तिरस्कार) करके कोई कार्य किया किया जाता है, उसमें षष्ठी या सप्तमी विभक्ति होती है । जैसे-

रोते हुए बच्चे की माता बाहर चली गई ।

रुदतः शिशोः/रुदति शिशौ माता बहिरगच्छत् ।

 

नियम- 6 “तुल्यार्थैरतुलोपमाभ्यां तृतीयान्यतरस्याम्”

    बराबर, समान या ‘की तरह’ अर्थवाची तुल्य, सदृश, सम, सकाश आदि शब्दों के योग में वह शब्द तृतीया या षष्ठी में रखा जाता है, जिससे किसी की तुलना की जाए । जैसे-

राम के समान अमर है ।

रामस्य/रामेण समः अमरः अस्ति ।


धन्यवाद ।

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