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Saptmi Vibhakti ki upapad Vibhaktiyan । सप्तमी विभक्ति की उपपद विभक्तियाँ । Saptmi Vibhakti । सप्तमी विभक्ति ।

सप्तमी विभक्ति की उपपद विभक्तियाँ


       संस्कृत भाषा में वाक्यों का निर्माण दो प्रकार की विभक्तियों से होता है- 1. कारक विभक्तियाँ  2. उपपद विभक्तियाँ  

क्रम से दोनों के बारे में समझते हैं-

 

1. कारक विभक्तियाँ-

       कारकों के  लक्षण के अधार पर वाक्य में जहाँ पर विभक्ति का प्रयोग किया जाता है, उसे कारक विभक्ति कहते हैं । जैसे करण कारक की परिभाषा है- “क्रिया की सिद्धि में जो अत्यन्त सहायक होता है, उसे करण कारक कहते हैं । करण कारक में तृतीया विभक्ति होती है । करण कारक के चिह्न- ‘से, के द्वारा, के साथ’ हैं ।”

       यदि इस नियम के अधार पर वाक्य का निर्माण होगा तो वाक्य में कारक विभक्ति होगी । उदाहरण-

(क) मोहन बस से विद्यालय जाता है ।

      मोहन: बसयानेन विद्यालयं गच्छति ।

       इस वाक्य में “बस” करण कारक है, अत: यहाँ पर “बस” में तृतीया विभक्ति का प्रयोग हुआ है ।

 

2. उपपद विभक्तियाँ- 

       वाक्य में जब किसी विशेष पद (शब्द) के कारण कोई विभक्ति आती है, उसे उपपद विभक्ति कहते हैं । उपपद विभक्ति में कारक विभक्ति का प्रयोग नहीं करते हैं । जैसे-

(क) गाँव के चारों ओर पेड़ हैं ।

      ग्रामं अभित: वृक्षा: सन्ति ।

       इस वाक्य में ‘अभित:’ उपपद शब्द है, अभित: के योग में द्वितीया विभक्ति होती है । अभित: का अर्थ है “चारों ओर” । ‘चारों ओर’ का प्रभाव गाँव शब्द पर पड़ रहा है । अत: गाँव शब्द में द्वितीया विभक्ति (ग्रामं) हुई है ।

       यदि हम कारक के नियम के अनुसार देखें तो ‘गाँव’ के साथ ‘के’ कारक चिह्न है और ‘के’ चिह्न ‘सम्बन्ध’ का होता है, सम्बन्ध में षष्ठी विभक्ति होती है, परन्तु ऊपर के वाक्य में ‘अभितः’ के कारण द्वितीया विभक्ति हुई है ।


          सप्तमी विभक्ति की उपपद विभक्तियाँ

अधिकरण कारक का सूत्र-

    “आधारोऽधिकरणम्”- जिस स्थान पर किसी वस्तु का आधार होता है, उसे अधिकरण कारक कहते हैं । अधिकरण में सप्तमी विभक्ति होती है ।

 

सप्तमी विभक्ति का सूत्र-

    “सप्तम्यधिकरणे”- अधिकरण कारक में सप्तमी विभक्ति होती है । जैसे-

पेड़ पर फल हैं ।

वृक्षे फलानि सन्ति ।


                 उपपद विभक्तियाँ

नियम- 1 “यतश्च निर्धारणम्”

    एक समूह में से एक वस्तु को जब विशिष्ठ दिखाकर छाँट दी जाती है, तब जिससे छाँटा जाय उसमें षष्ठी विभक्ति होती है । जैसे-

कवियों में कालिदास श्रेष्ठ है ।

कवीनां/कविषु कालिदासः श्रेष्ठः ।

पर्वतों में हिमालय ऊँचा है ।

पर्वतेषु हिमालयः उन्नतः ।

 

नियम- 2 “यस्य च भावेन भावलक्षणम्”

    जब किसी कार्य के हो जाने पर दूसरे कार्य का होन प्रतीत होता है, तब जो कार्य हो चुका होता है उसमें सप्तमी विभक्ति होती है । जैसे-

सूर्य के उदय होने पर कमल खिलता है ।

सूर्ये उदिते कमलं विकसति ।

 

नियम- 3 “षष्ठी चानादरे”

    जिसका अनादर (तिरस्कार) करके कोई कार्य किया किया जाता है, उसमें षष्ठी या सप्तमी विभक्ति होती है । जैसे-

रोते हुए बच्चे की माता बाहर चली गई ।

रुदतः शिशोः/रुदति शिशौ माता बहिरगच्छत् ।

नियम- 4 “आयुक्तकुशलाभ्यां चासेवायाम्” “साधुनिपुणाभ्यामर्चायां सप्तम्यप्रतेः”

       संलग्नार्थक शब्दों तथा ( युक्तः, व्यापृतः, तत्परः आदि) चतुरार्थक शब्दों (कुशलः, निपुणः, पटुः आदि) के साथ सप्तमी होती है । जैसे-

मोहन काम में कुशल है ।

मोहनः कर्मणि कुशलः अस्ति ।

देव शास्त्रों में दक्ष है ।

देवः शास्त्रेषु दक्षः अस्ति ।

 

नियम- 5 “साध्वसाधु प्रयोगे च”

साधु व असाधु के प्रयोग में सप्तमी विभक्ति होती है । जैसे-

लता माता से साधु व्यवहार करता है ।

लता मातरि साधुः व्यवहरति ।


धन्यवाद ।

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