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शब्द रूप- संज्ञा शब्दरूप । Shabd roop । संस्कृत शब्दरूपाणि । Sanskrit Shabd roop । शब्दरुप किसे कहते हैं ? Shabd roop in sanskrit.

शब्दरुप प्रकरण

          शब्दरुप संस्कृत व्याकरण के महत्वपूर्ण भाग हैं । यदि शब्द ही नहीं होंगे तो वाक्य कैसे बनेगा । अत: वाक्य निर्माण के लिए शब्द का महत्वपूर्ण स्थान है । संस्कृत भाषा में शब्द मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं-

1. वे शब्द जिनके रूप बदलते हैं । जिनमें संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रिया आदि आते हैं ।

2. वे शब्द जिनके रूप बदलते नहीं हैं, जैसे- यदा, कदा, सदा, आदि, जिनको  अव्यय कहते हैं ।
                  
            रूप बदलने वाले शब्दों में संज्ञा, सर्वनाम और विशेषण शब्द आते हैं । इनके रूप विभक्तियों तथा वचनों में चलते हैं । हिंदी में जिस प्रकार से वाक्यों के बीच में “ने, को, से, के द्वारा, के साथ, के लिए आदि परसर्ग वाक्य का निर्माण करते हैं, उसी प्रकार संस्कृत में इन परसर्गों को नहीं जोड़ा जाता है, बल्कि शब्द के रूप में ही परिवर्तन किया जाता है, जिससे कि वाक्य का अर्थ निकल कर सामने आता है, जैसे- हिन्दी में- राम के पिता दशरथ  हैं, इसका संस्कृत अनुवाद होगा- रामस्य पिता दशरथ: अस्ति । हिन्दी वाले वाक्य में राम के बाद के का प्रयोग हुआ, किन्तु संस्कृत में राम शब्द बदलकर रामस्य हो गया । वाक्य में अर्थ लाने के लिए ही शब्द के रूप चलते हैं । जिसे शब्दरूप कहते हैं ।

शब्द रूप के प्रकार-

        शब्दरूप मुख्यत: दो प्रकार के होते हैं- 1. अजन्त शब्दरूप  2. हलन्त शब्दरूप ।


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1. अजन्त शब्दरूप-

        अजन्त शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है- अच्+अन्त । अच् का अर्थ है स्वर और अन्त का अर्थ है अन्तिम में, अर्थात् जिस शब्द के अन्त में स्वर हो उसे अजन्त कहते हैं, जैसे- ‘बालक’ शब्द । बालक शब्द को यदि हम अलग-अलग करके लिखेंगे तो ‘ब्+आ+ल्+अ+क्+अ’ इस प्रकार से लिखा जाएगा । बालक शब्द के अन्त में ‘अ’ है, क्योंकि ‘’ एक स्वर है तो बालक शब्द अजन्त शब्द कहलाएगा और जो बालक शब्द के रुप चलेंगे वे अजन्त शब्दरुप कहलाएँगे । अजन्त शब्दरूपों को ‘स्वरान्त शब्दरूप’ भी कहते हैं, अर्थात् जिनके अन्त में स्वर हों ।

2. हलन्त शब्दरूप-

        हलन्त शब्द भी दो शब्दों से मिलकर बना है- हल्+अन्त । हल् का अर्थ है व्यंजन और अन्त का अर्थ है अन्तिम में, अर्थात् जिस् शब्द के अन्त में व्यंजन हो उसे हलन्त कहते हैं । इनको व्यंजनान्त भी कहते हैं, अर्थात् जिनके अन्त में व्यंजन हों । जैसे- राजन् , राजन् शब्द को यदि हम अलग करके लिखेंगे तो- र्+आ+ज्+अ+न्’ । राजन् शब्द के अन्त में ‘न्’ व्यंजन अक्षर है, अत: यह हलन्त शब्द या व्यंजनान्त शब्द कहलाएगा ।

लिंग की दृष्टि से शब्दरूप के भेद-    

       लिंग की दृष्टि से शब्द तीन प्रकार के होते हैं- 1. पुल्लिंग  2. स्त्रीलिंग  3. नपुंसकलिंग । संज्ञा, सर्वनाम और विशेषण इन तीनों के रूप तीनों लिंगों में चलते हैं । संस्कृत में लिंग ज्ञान शब्दकोष की सहायता से अथवा साहित्य पढने से ही होता है, शब्द के अर्थ से लिंग ज्ञान होना कठिन है, जैसे तट:, तटी, तटम्  इन तीनों शब्दों का अर्थ एक ही है ‘किनारा’, किन्तु तट: शब्द पुल्लिंग का है, तटी शब्द स्त्रीलिंग का है और तटम् शब्द नपुंसकलिंग का है । अत: शब्दरूपों के लिंग ज्ञान को सावधानी पूर्वक जानना चाहिए । एक बार तीनों लिंगों के बारे में जान लेते हैं-

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1. पुल्लिंग शब्दरूप-

  पुल्लिंग शब्द सामान्यत: पुरुष जाति का बोध कराते हैं, जैसे- राम:, बालक:, हरि:, गुरु: आदि ।

2. स्त्रीलिंग-

      स्त्रीलिंग शब्द सामान्यत: स्त्री जाति का बोध कराते हैं, जैसे- रमा, लता, सीता, नदी, वधू आदि ।

3. नपुंसकलिंग-

       नपुंसकलिंग शब्द सामान्यत: नपुंसक जाति का बोध कराते हैं , जैसे- फलम्, वस्त्रम्, पुस्तकम्, गृहम् आदि ।


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शब्द का अन्त पहचानना-

   जब हम किसी भी शब्दरुप पर निगाह डालते हैं तो उसके ऊपर लिखा रहता है- अकारांत शब्दरूप, इकारांत शब्दरूप, उकारांत शब्दरूप, ऋकारांत शब्दरूप आदि । सर्वप्रथम हम इन्हीं के बारे में जानते हैं, जैसे- राम एक शब्द है । इस शब्द के रूप यदि आप किसी पुस्तक में या कहीं अन्य जगह ढूंढेंगे तो उसके ऊपर लिखा होगा अकारांत पुल्लिंग शब्दरूप । पुलिंग से तो आपको पता चल गया कि राम शब्द पुल्लिंग में प्रयोग होता है इसलिए पुल्लिंग लिखा है, परंतु  अकारांत क्या है ?

        यदि हम राम शब्द को अलग अलग करके लिखेंगे तो- र्+आ+म्+अ’‘म्’ के साथ अन्त में ‘अ’ है । अन्त में जो भी अक्षर होगा उसके साथ कार जोड़ देते हैं, जैसे अ है तो अकार, इ है तो इकार, उ है तो उकार आदि । राम शब्द के अन्त में होने के कारण राम शब्द अकारान्त पुल्लिंग शब्दरूप कहलाएगा । इसी प्रकार मुनि शब्द के अन्त में इ है, (म्+उ+न्+इ) तो वह इकारान्त पुल्लिंग शब्द होगा, इसी प्रकार से नदी शब्द है तो नदी के अंत में ई है, (न्+अ+द्+ई) तो वह ईकारान्त स्त्रीलिंग शब्द होगा, इसी प्रकार से यदि हम गुरु शब्द देखेंगे तो गुरु शब्द के अन्त में उ है, (ग्+उ+र्+उ)  तो वह उकारान्त पुल्लिंग शब्द कहलाएगा, इसी प्रकार पितृ शब्द के अन्त में त् के साथ ऋ है (प्+इ+त्+ऋ ) तो वह ऋकारान्त पुल्लिंग शब्द कहलाएगा ।

हलन्त शब्दरूप-

                 हलन्त का अर्थ है, जिस व्यंजन अक्षर के साथ कोई भी स्वर न हो वह हलन्त अक्षर कहलाता है । हलन्त का चिह्न कुछ इस प्रकार का प्रयोग होता है, जैसे- अर्थात् में त् के नीचे जो चिह्न लगा है, वह हलन्त का चिह्न है । किसी भी शब्द के अन्त में जो अक्षर हलन्त होगा उसी के नाम से उसका अन्त निर्धारित करते हैं, जैसे- राजन् एक शब्द है । इसके अन्त में हलन्त न् है, तो राजन् शब्द को नकारान्त शब्द कहेंगे । कुछ अन्य हलन्त शब्दरुप- वणिज्, धीमान्, आत्मन्,करिन् आदि ।

शब्दरूप का निर्माण-

        मूल शब्द के साथ सुबन्त आदि 21 प्रत्ययों के संयोग से शब्दरूप बनते हैं । सुबन्त प्रत्यय निम्न हैं-

विभक्ति    एकवचन    द्विवचन      बहुवचन
द्वितीया     अम्           औट्              शस्
तृतीया        टा             भ्याम्            भिस्
चतुर्थी         ङे              भ्याम्             भ्यस्
पंचमी         ङसि          भ्याम्            भ्यस्
षष्ठी          स्            ओस्            आम्
सप्तमी       ङि             ओस्             सुप्


संज्ञा शब्दरूप-

     संज्ञा उस विकारी शब्द को कहते है, जिससे किसी विशेष वस्तु, भाव और जीव के नाम का बोध हो, उसे संज्ञा कहते है । जैसे- राम, दिल्ली, रामयण, बचपन आदि ।

# अब कुछ प्रमुख संज्ञा शब्दरुपों को समझते हैं ।

1. पुल्लिंग शब्दरूप-


1. अकारान्त पुल्लिंग- राम (अजन्त)

विभक्ति

एकवचन

द्विवचन

बहुवचन

प्रथमा

रामः

रामौ

रामाः

द्वितीया

रामम्

रामौ

रामान्

तृतीया

रामेण

रामाभ्याम्

रामैः

चतुर्थी

रामाय

रामाभ्याम्

रामेभ्यः

पंचमी

रामात्

रामाभ्याम्

रामेभ्यः

षष्ठी

रामस्य

रामयोः

रामाणाम्

सप्तमी

रामे

रामयोः

रामेषु

सम्बोधन

हे राम !

हे रामौ !

हे रामाः

# इसी तरह वृक्ष:, नर:, छात्र:, अश्व:, सर्प:, शुक: आदि अकारान्त पुल्लिंग शब्दों के रूप भी चलेंगे ।

2. आकारान्त पुल्लिंग- विश्वपा (अजन्त)

विभक्ति

एकवचनम्

द्विवचनम्

बहुवचनम्

प्रथमा

विश्वपाः

विश्वपौ

विश्वपाः

द्वितीया

विश्वपाम्

विश्वपौ

विश्वपः

तृतीया

विश्वपा

विश्वपाभ्याम्

विश्वपाभिः

चतुर्थी

विश्वपे

विश्वपाभ्याम्

विश्वपाभ्यः

पञ्चमी

विश्वपः

विश्वपाभ्याम्

विश्वपाभ्यः

षष्ठी

विश्वपः

विश्वपोः

विश्वपाम्

सप्तमी

विश्वपि

विश्वपोः

विश्वपासु

सम्बोधन

हे विश्वपाः

हे विश्वपौ

हे विश्वपाः

# इसी तरह  सोमपा, गोपा, धूमपा, बलदा आदि आकारान्त पुल्लिंग शब्दों के रूप भी चलेंगे ।

3. इकारान्त पुल्लिंग- हरि (अजन्त)

विभक्ति
एकवचन
द्विवचन
बहुवचन
प्रथमा
हरिः
हरी
हरयः
द्वितीया
हरिं
हरी
हरीन्
तृतीया
हरिणा
हरिभ्याम्
हरिभिः
चर्तुथी
हरये
हरिभ्याम्
हरिभ्यः
पंचमी
हरेः
हरिभ्याम्
हरिभ्यः
षष्ठी
हरेः
हर्योः
हरीणां
सप्तमी
हरौ
हर्योः
हरिषु
सम्बोधन
हे हरे !
हे हरी !
हे हरयः!
# इसी तरह  कवि:, गिरि:, रवि:, कपि:, मुनि: आदि इकारान्त पुल्लिंग शब्दों के रूप भी चलेंगे ।

4. इकारान्तपुल्लिंग- पति (अजन्त)

विभक्ति
एकवचनम्
द्विवचनम्
बहुवचनम्
प्रथमा
पतिः
पती
पतयः
द्वितीया
पतिम्
पती
पतीन्
तृतीया
पत्या
पतिभ्याम्
पतिभिः
चतुर्थी
पत्ये
पतिभ्याम्
पतिभ्यः
पञ्चमी
पत्युः
पतिभ्याम्
पतिभ्यः
षष्ठी
पत्युः
पत्योः
पतीनाम्
सप्तमी
पत्यौ
पत्योः
पतिषु
सम्बोधन
हे पते
हे पती
हे पतयः

5. उकारान्त पुल्लिंग- गुरु (अजन्त)

विभक्ति
एकवचनम्
द्विवचनम्
बहुवचनम्
प्रथमा
गुरुः
गुरू
गुरवः
द्वितीया
गुरुम्
गुरू
गुरून्
तृतीया
गुरुणा
गुरुभ्याम्
गुरुभिः
चतुर्थी
गुरवे
गुरुभ्याम्
गुरुभ्यः
पञ्चमी
गुरोः
गुरुभ्याम्
गुरुभ्यः
षष्ठी
गुरोः
गुर्वोः
गुरूणाम्
सप्तमी
गुरौ
गुर्वोः
गुरुषु
सम्बोधन
हे गुरो
हे गुरू
हे गुरवः
# इसी तरह  भानु:, शम्भु:, विष्णु:, पशु:, बन्धु: आदि उकारान्त पुल्लिंग शब्दों के रूप भी चलेंगे ।  

6. ऊकारान्तपुल्लिंग- वर्षाभू (अजन्त)

विभक्ति

एकवचनम्

द्विवचनम्

बहुवचनम्

प्रथमा

वर्षाभूः

वर्षाभ्वौ

वर्षाभ्वः

द्वितीया

वर्षाभूम्

वर्षाभ्वौ

वर्षाभून्

तृतीया

वर्षाभ्वा

वर्षाभूभ्याम्

वर्षाभूभिः

चतुर्थी

वर्षाभ्वे

वर्षाभूभ्याम्

वर्षाभूभ्यः

पञ्चमी

वर्षाभ्वः

वर्षाभूभ्याम्

वर्षाभूभ्यः

षष्ठी

वर्षाभ्वः

वर्षाभ्वौ

वर्षाभ्वाम्

सप्तमी

वर्षाभ्विः

वर्षाभ्वौ

वर्षाभूषु

सम्बोधन

हे वर्षाभूः

हे वर्षाभ्वौ

हे वर्षाभ्वः

# इसी तरह  हूहू, खलपू, स्वभू, करभू आदि ऊकारान्त पुल्लिंग शब्दों के रूप भी चलेंगे ।

7. ऋकारान्तपुल्लिंग- कर्तृ (अजन्त)

विभक्ति
एकवचनम्
द्विवचनम्
बहुवचनम्
प्रथमा
कर्ता
कर्तारौ
कर्तारः
द्वितीया
कर्तारम्
कर्तारौ
कर्तॄन्
तृतीया
कर्त्रा
कर्तृभ्याम्
कर्तृभिः
चतुर्थी
कर्त्रे
कर्तृभ्याम्
कर्तृभ्यः
पञ्चमी
कर्तुः
कर्तृभ्याम्
कर्तृभ्यः
षष्ठी
कर्तुः
कर्त्रोः
कर्तॄणाम्
सप्तमी
कर्तरि
कर्त्रोः
कर्तृषु
सम्बोधन
हे कर्ता
हे कर्तारौ
हे कर्तारः
# इसी तरह  धातृ, नप्तृ, होतृ, भर्तृ, वक्तृ आदि ऋकारान्त पुल्लिंग शब्दों के रूप भी चलेंगे ।
         

8. ऋकारान्तपुल्लिंग- पितृ (अजन्त)

विभक्ति
एकवचनम्
द्विवचनम्
बहुवचनम्
प्रथमा
पिता
पितरौ
पितरः
द्वितीया
पितरम्
पितरौ
पितॄन्
तृतीया
पित्रा
पितृभ्याम्
पितृभिः
चतुर्थी
पित्रे
पितृभ्याम्
पितृभ्यः
पञ्चमी
पितुः
पितृभ्याम्
पितृभ्यः
षष्ठी
पितुः
पित्रोः
पितॄणाम्
सप्तमी
पितरि
पित्रोः
पितृषु
सम्बोधन
हे पिता
हे पितरौ
हे पितरः
# इसी तरह  जामातृ, भातृ, देवृ, शंस्तृ आदि ऋकारान्त पुल्लिंग शब्दों के रूप भी चलेंगे |

          

9. ओकारान्तपुल्लिंग- गो (अजन्त)


विभक्ति
एकवचनम्
द्विवचनम्
बहुवचनम्
प्रथमा
गौः
गावौ
गावः
द्वितीया
गाम्
गावौ
गावः
तृतीया
गवा
गोभ्याम्
गोभिः
चतुर्थी
गवे
गोभ्याम्
गोभ्यः
पञ्चमी
गोः
गोभ्याम्
गोभ्यः
षष्ठी
गोः
गवोः
गवाम्
सप्तमी
गवि
गवोः
गोषु
सम्बोधन
हे गौः
हे गावौ
हे गावः

10. नकारान्तपुल्लिंग- आत्मन् (हलन्त)


विभक्ति

एकवचनम्

द्विवचनम्

बहुवचनम्

प्रथमा

आत्मा

आत्मानौ

आत्मानः

द्वितीया

आत्मानम्

आत्मानौ

आत्मनः

तृतीया

आत्मना

आत्मभ्याम्

आत्माभिः

चतुर्थी

आत्मने

आत्माभ्यम्

आत्मभ्यः

पञ्चमी

आत्मनः

आत्मभ्याम्

आत्मभ्यः

षष्ठी

आत्मनः

आत्मनोः

आत्मनाम्

सप्तमी

आत्मनि

आत्मनोः

आत्मसु

सम्बोधन

हे आत्मन्

हे आत्मानौ

हे आत्मानः

          11. नकारान्त पुल्लिंग- राजन् (हलन्त)


विभक्ति
एकवचनम्
द्विवचनम्
बहुवचनम्
प्रथमा
राजा
राजानौ
राजानः
द्वितीया
राजानम्
राजानौ
राज्ञः
तृतीया
राज्ञा
राजभ्याम्
राजभिः
चतुर्थी
राज्ञे
राजभ्याम्
राजभ्यः
पञ्चमी
राज्ञः
राजभ्याम्
राजभ्यः
षष्ठी
राज्ञः
राज्ञोः
राज्ञाम्
सप्तमी
राज्ञि, राजनि
राज्ञोः
राजसु
सम्बोधन
हे राजन्
हे राजानौ
हे राजानः


12. सकारान्त पुल्लिंग- विद्वस् (हलन्त)


विभक्ति

एकवचनम्

द्विवचनम्

बहुवचनम्

प्रथमा

विद्वान्

विद्वांसौ

विद्वांसः

द्वितीया

विद्वांसम्

विद्वांसौ

विदुषः

तृतीया

विदुषा

विद्वद्भ्याम्

विद्वद्भिः

चतुर्थी

विदुषे

विद्वद्भ्याम्

विद्वद्भ्यः

पञ्चमी

विदुषः

विद्वद्भ्याम्

विद्वद्भ्यः

षष्ठी

विदुषः

विदुषोः

विदुषाम्

सप्तमी

विदुषि

विदुषोः

विद्वत्सु

सम्बोधन

हे विद्वन्

हे विद्वांसौ

हे विद्वांसः

2. स्त्रीलिंग शब्दरूप-

       

1. आकारान्त स्त्रीलिंग- रमा (अजन्त)

विभक्ति
एकवचनम्
द्विवचनम्
बहुवचनम्
प्रथमा
रमा
रमे
रमाः
द्वितीया
रमाम्
रमे
रमाः
तृतीया
रमया
रमाभ्याम्
रमाभिः
चतुर्थी
रमायै
रमाभ्याम्
रमाभ्यः
पञ्चमी
रमायाः
रमाभ्याम्
रमाभ्यः
षष्ठी
रमायाः
रमयोः
रमाणाम्
सप्तमी
रमायाम्
रमयोः
रमासु
सम्बोधन
हे रमे
हे रमे
हे रमाः
# इसी तरह  लता, दुर्गा, विद्या, गंगा, निशा, सीता आदि आकारान्त स्त्रीलिंग शब्दों के रूप भी चलेंगे ।

2. इकारान्तस्त्रीलिंग- मति (अजन्त)

विभक्ति
एकवचनम्
द्विवचनम्
बहुवचनम्
प्रथमा
मतिः
मती
मतयः
द्वितीया
मतिम्
मती
मतीः
तृतीया
मत्या
मतीभ्याम्
मतिभिः
चतुर्थी
मत्यै, मतये
मतीभ्याम्
मतिभ्यः
पञ्चमी
मत्याः, मतेः
मतीभ्याम्
मतिभ्यः
षष्ठी
मत्याः, मतेः
मत्योः
मतीनाम्
सप्तमी
मत्याम्, मतौ
मत्योः
मतिषु
सम्बोधन
हे मते
हे मती
हे मतयः
# इसी तरह  बुद्धि, भक्ति, प्रीति, जाति, रात्रि आदि इकारान्त स्त्रीलिंग शब्दों के रूप भी चलेंगे ।

3. ईकारान्त स्त्रीलिंग- नदी (अजन्त)

विभक्ति
एकवचनम्
द्विवचनम्
बहुवचनम्
प्रथमा
नदी
नद्यौ
नद्यः
द्वितीया
नदीम्
नद्यौ
नदीः
तृतीया
नद्या
नदीभ्याम्
नदीभिः
चतुर्थी
नद्यै
नदीभ्याम्
नदीभ्यः
पञ्चमी
नद्याः
नदीभ्याम्
नदीभ्यः
षष्ठी
नद्याः
नद्योः
नदीनाम्
सप्तमी
नद्याम्
नद्योः
नदीषु
सम्बोधन
हे नदि
हे नद्यौ
हे नद्यः
# इसी तरह  गौरी, काली, नारी, पत्नी, पुत्री आदि ईकारान्त स्त्रीलिंग शब्दों के रूप भी चलेंगे ।

4. उकारान्त स्त्रीलिंग- धेनु (अजन्त)


विभक्ति
एकवचनम्
द्विवचनम्
बहुवचनम्
प्रथमा
धेनुः
धेनू
धेनवः
द्वितीया
धेनुम्
धेनू
धेनूः
तृतीया
धेन्वा
धेनुभ्याम्
धेनुभिः
चतुर्थी
धेन्वै, धेनवे
धेनुभ्याम्
धेनुभ्यः
पञ्चमी
धेन्वाः, धेनोः
धेनुभ्याम्
धेनुभ्यः
षष्ठी
धेन्वाः, धेनोः
धेन्वोः
धेनूनाम्
सप्तमी
धेन्वाम्, धेनौ
धेन्वोः
धेनुषु
सम्बोधन
हे धेनो
हे धेनू
हे धेनवः
# इसी तनु, रेणु, हनु, आदि उकारान्त स्त्रीलिंग शब्दों के रूप भी चलेंगे ।

           

5. ऊकारान्त स्त्रीलिंग- वधू (अजन्त)

विभक्ति
एकवचनम्
द्विवचनम्
बहुवचनम्
प्रथमा
वधू
वध्वौ
वध्वः
द्वितीया
वधूम्
वध्वौ
वधूः
तृतीया
वध्वा
वधूभ्याम्
वधूभिः
चतुर्थी
वध्वै
वधूभ्याम्
वधूभ्यः
पञ्चमी
वध्वाः
वधूभ्याम्
वधूभ्यः
षष्ठी
वध्वाः
वध्वोः
वधूनाम्
सप्तमी
वध्वाम्
वध्वोः
वधुषु
सम्बोधन
हे वधु
हे वध्वौ
हे वध्वः
# इसी तरह  चमू, रज्जू, श्वश्रू, जम्बू आदि ऊकारान्त स्त्रीलिंग शब्दों के रूप भी चलेंगे ।

6. ऋकारान्त स्त्रीलिंग- मातृ (अजन्त)

विभक्ति
एकवचनम्
द्विवचनम्
बहुवचनम्
प्रथमा
माता
मातरौ
मातरः
द्वितीया
मातरम्
मातरौ
मातृः
तृतीया
मात्रा
मातृभ्याम्
मातृभिः
चतुर्थी
मात्रे
मातृभ्याम्
मातृभ्यः
पञ्चमी
मातुः
मातृभ्याम्
मातृभ्यः
षष्ठी
मातुः
मात्रोः
मातृणाम्
सप्तमी
मातरि
मात्रोः
मातृषु
सम्बोधन
हे मातः
हे मातरौ
हे मातरः
# इसी तरह  दुहितृ, यातृ, आदि ऋकारान्त स्त्रीलिंग शब्दों के रूप भी चलेंगे ।

7. चकारान्त स्त्रीलिंग- वाच् (हलन्त)


विभक्ति
एकवचनम्
द्विवचनम्
बहुवचनम्
प्रथमा
वाक्, वाग्
वाचौ
वाचः
द्वितीया
वाचम्
वाचौ
वाचः
तृतीया
वाचा
वाग्भ्याम्
वाग्भिः
चतुर्थी
वाचे
वाग्भ्याम्
वाग्भ्यः
पञ्चमी
वाचः
वाग्भ्याम्
वाग्भ्यः
षष्ठी
वाचः
वाचोः
वाचाम्,
सप्तमी
वाचि
वाचोः
वाक्षु
सम्बोधन
हे वाच्, वाग्
हे वाचौ
हे वाचः
# इसी तरह  त्वच्, शुच्, रुच्, रुच् आदि चकारान्त स्त्रीलिंग शब्दों के रूप भी चलेंगे ।

3. नपुंसकलिंग-


1. अकारान्त नपुंसकलिंग- फल (अजन्त)

विभक्ति
एकवचनम्
द्विवचनम्
बहुवचनम्
प्रथमा
फलम्
फले
फलानि
द्वितीया
फलम्
फले
फलानि
तृतीया
फलेन
फलाभ्याम्
फलैः
चतुर्थी
फलाय
फलाभ्याम्
फलेभ्यः
पञ्चमी
फलात्
फलाभ्याम्
फलेभ्यः
षष्ठी
फलस्य
फलयोः
फलानाम्
सप्तमी
फले
फलयोः
फलेषु
सम्बोधन
हे फलम्
हे फले
हे फलानि
# इसी तरह  वन, पुष्प, वस्त्र, मित्र, पत्र आदि अकारान्त नपुंसकलिंग शब्दों के रूप भी चलेंगे ।

2. इकारान्त नपुंसकलिंग- वारि (अजन्त)

विभक्ति
एकवचनम्
द्विवचनम्
बहुवचनम्
प्रथमा
वारि
वारिणी
वारीणि
द्वितीया
वारि
वारिणी
वारीणि
तृतीया
वारिणा
वारिभ्याम्
वारिभिः
चतुर्थी
वारिणे
वारिभ्याम्
वारिभ्यः
पञ्चमी
वारिेणः
वारिभ्याम्
वारिभ्यः
षष्ठी
वारिेणः
वारिणोः
वारीणाम्
सप्तमी
वारिणि
वारिणोः
वारिषु
सम्बोधन
हे वारिे
हे वारिणी
हे वारीणि
# इसी तरह  अस्थि, अक्षि, दधि, आदि इकारान्त नपुंसकलिंग शब्दों के रूप भी चलेंगे ।

3. उकारान्त नपुंसकलिंग- मधु (अजन्त)

विभक्ति
एकवचनम्
द्विवचनम्
बहुवचनम्
प्रथमा
मधु
मधुनी
मधूनि
द्वितीया
मधु
मधुनी
मधूनि
तृतीया
मधुना
मधुभ्याम्
मधुभिः
चतुर्थी
मधुने
मधुभ्याम्
मधुभ्यः
पञ्चमी
मधुनः
मधुभ्याम्
मधुभ्यः
षष्ठी
मधुनः
मधुनोः
मधूनाम्
सप्तमी
मधुनि
मधुनोः
मधुषु
सम्बोधन
हे मधो
हे मधु
हे मधूनि
# इसी तरह  दारु, जतु, तालु, सानु आदि उकारान्त नपुंसकलिंग शब्दों के रूप भी चलेंगे ।

4. सकारान्त नपुंसकलिंग- पयस् (हलन्त)
विभक्ति
एकवचनम्
द्विवचनम्
बहुवचनम्
प्रथमा
पयः
पयसी
पयांसि
द्वितीया
पयः
पयसी
पयांसि
तृतीया
पयसा
पयोभ्याम्
पयोभिः
चतुर्थी
पयसे
पयोभ्याम्
पयोभ्यः
पञ्चमी
पयसः
पयोभ्याम्
पयोभ्यः
षष्ठी
पयसः
पयसोः
पयसाम्
सप्तमी
पयसि
पयसोः
पयःसु
सम्बोधन
हे पयः
हे पयसी
हे पयांसि

5. तकारान्त नपुंसकलिंग- जगत् (हलन्त)

विभक्ति

एकवचनम्

द्विवचनम्

बहुवचनम्

प्रथमा

जगत्

जगती

जगन्ति

द्वितीया

जगत्

जगती

जगन्ति

तृतीया

जगता

जगद्भ्याम्

जगद्भिः

चतुर्थी

जगते

जगद्भ्याम्

जगद्भ्यः

पञ्चमी

जगतः

जगद्भ्याम्

जगद्भ्यः

षष्ठी

जगतः

जगतोः

जगताम्

सप्तमी

जगति

जगतोः

जगत्सु

सम्बोधन

हे जगत्

हे जगती

हे जगन्ति


6. नकारान्त नपुंसकलिंग- नामन् (हलन्त)

विभक्ति
एकवचनम्
द्विवचनम्
बहुवचनम्
प्रथमा
नाम
नामनी
नामानि
द्वितीया
नाम
नामनी
नामानि
तृतीया
नाम्ना
नामभ्याम्
नामभिः
चतुर्थी
नाम्ने
नामभ्याम्
नामभ्यः
पञ्चमी
नाम्नः
नामभ्याम्
नामभ्यः
षष्ठी
नाम्नः
नाम्नोः
नाम्नाम्
सप्तमी
नाम्नि
नाम्नोः
नामसु
सम्बोधन
हे नामन्
हे नामनी
हे नामानि

अगली पोष्ट में सर्वनाम व विषेशण शब्दों की जानकारी प्रदान की जाएगी ।

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