हिंदी वर्णमाला- Hindi Varnamala
प्रस्तावना -
साथियों ! जैसा कि आप सभी जानते ही हैं, हिन्दी हमारी मातृभाषा है । हमें इस भाषा का ज्ञान बचपन से ही हो जाता है, किन्तु बचपन में हम सिर्फ बोलना सीखते हैं । जब हम विद्यालय जाना प्रारम्भ करते हैं तब हमें सबसे पहले भाषा सिखाई जाती है । भाषा सीखने में हम सर्वप्रथम अक्षरों से परिचित होते हैं । अक्षर को वर्ण भी कहते हैं । इस वर्णमाला में हमें अक्षरों के अनेक रूप देखने को मिलते हैं । इस पोस्ट में मैंने आपको वर्णमाला से परिचित कराने का प्रयास किया है, तो आइये ! वर्णमाला से परिचित होते हैं-
हिन्दी वर्णमाला :
वर्णमाला शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है- वर्ण+माला , वर्ण= अक्षर और माला= समूह , अर्थात् वर्णो का समूह ही वर्णमाला कही जाती है । भाषा की सबसे छोटी इकाई ध्वनि होती है । इसी ध्वनि को वर्ण कहते हैं । वर्णों को व्यवस्थित करने के समूह को वर्णमाला कहते हैं । हिंदी में उच्चारण के आधार पर 44 वर्ण होते हैं। इनमें 11 स्वर और 33 व्यंजन होते हैं। लेखन के आधार पर 52 वर्ण होते हैं इसमें 13 स्वर , 35 व्यंजन तथा 4 संयुक्त व्यंजन हैं।
वर्णमाला के दो भाग होते हैं :-
1. स्वर
2. व्यंजन
1. स्वर क्या होते हैं :-
जिन वर्णों को स्वतंत्र रूप से बोला जा सके उसे स्वर कहते हैं । अर्थात् जिन अक्षरों के उच्चारण करने में किसी अन्य वर्ण की आवश्यकता न हो । जैसे- ‘आम’ यदि हम आम को पृथक् करके लिखेंगे तो कुछ इस प्रकार लिखा जाएगा- आ+म्+अ । अब यहाँ पर आप सभी एक बात का ध्यान दें ‘आ’ को बोलने के लिये किसी अन्य अक्षर की मदद नहीं ली, जबकि ‘म’ बोलने के लिए ‘अ’ की आवश्यकता पड़ी है, अत: स्वर स्वतन्त्र उच्चारित किये जाने वाले वर्ण हैं । परम्परागत रुप से स्वरों की संख्या 13 मानी गई है लेकिन उच्चारण की दृष्टि से 11 ही स्वर होते हैं ।
1. उच्चारण के आधार पर स्वर :-
अ, आ , इ , ई , उ , ऊ , ऋ, ए , ऐ , ओ , औ आदि।
अ, आ , इ , ई , उ , ऊ , ऋ, ए , ऐ , ओ , औ आदि।
2. लेखन के आधार पर स्वर :-
अ, आ, इ , ई , उ , ऊ , ऋ, ए , ऐ , ओ , औ , अं , अ: , आदि ।
अ, आ, इ , ई , उ , ऊ , ऋ, ए , ऐ , ओ , औ , अं , अ: , आदि ।
3. अं , अ: को अयोगवाह कहते हैं । ये पृथक् स्वर नहीं हैं अपितु स्वरों के साथ ही प्रयुक्त होते हैं ।
उच्चारण के समय की दृष्टि से स्वर के तीन भेद किए गए हैं-
1. ह्रस्व स्वर ।2. दीर्घ स्वर ।
3. प्लुत स्वर ।
विशेष- दीर्घ स्वरों को ह्रस्व स्वरों का दीर्घ रूप नहीं समझना चाहिए। यहां दीर्घ शब्द का प्रयोग उच्चारण में लगने वाले समय को आधार मानकर किया गया है।
1.ह्रस्व स्वर-
जिन स्वरों के उच्चारण में कम-से-कम समय लगता हैं उन्हें ह्रस्व स्वर कहते हैं। ये चार हैं- अ, इ, उ, ऋ । इन्हें मूल स्वर भी कहते हैं।2.दीर्घ स्वर-
जिन स्वरों के उच्चारण में ह्रस्व स्वरों से दुगुना समय लगता है उन्हें दीर्घ स्वर कहते हैं। ये हिन्दी में सात हैं- आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ।विशेष- दीर्घ स्वरों को ह्रस्व स्वरों का दीर्घ रूप नहीं समझना चाहिए। यहां दीर्घ शब्द का प्रयोग उच्चारण में लगने वाले समय को आधार मानकर किया गया है।
3.प्लुत स्वर-
जिन स्वरों के उच्चारण में दीर्घ स्वरों से भी अधिक समय लगता है उन्हें प्लुत स्वर कहते हैं । जैसे मुर्गा जब ध्वनि करता है तो वह 'कुकडु़ कूsssss' ऐसी ध्वनि करता है, इसमें जो ‘कूsssssssss' ध्वनि है वही ‘प्लुत स्वर’ है । प्रायः इनका प्रयोग दूर से बुलाने में किया जाता है । जैसे- ओ॓sssssss भाई, यहाँ आओ ।मात्राएँ -
स्वरों के बदले जिन चिह्नों का प्रयोग किया जाता है उन्हें मात्रा कहते हैं । स्वरों की मात्राएँ निम्नलिखित हैं-स्वर मात्राएँ-
शब्द अ × - कम आ ा – कामइ ि - किसलय ई ी – खीर
उ ु – गुलाब ऊ ू - भूल
ऋ ृ – तृण ए े – केश
ऐ ै - है ओ ो – चोर
औ ौ – चौखट
* मुख्य बिन्दु- अ वर्ण (स्वर) की कोई मात्रा नहीं होती ।
![]() |
varnamala in hindi |
व्यंजन-
जिन वर्णों के पूर्ण उच्चारण के लिए स्वरों की सहायता ली जाती है वे व्यंजन कहलाते हैं । अर्थात व्यंजन बिना स्वरों की सहायता के बोले ही नहीं जा सकते। ये संख्या में 33 हैं। इसके निम्नलिखित तीन भेद हैं-
1. स्पर्श
2. अंतःस्थ
3. ऊष्म
1.स्पर्श -
इन्हें पाँच वर्गों में रखा गया है और हर वर्ग में पाँच-पाँच व्यंजन हैं । हर वर्ग का नाम पहले वर्ण के अनुसार रखा गया है ।जैसे-
कवर्ग- क् ख् ग् घ् ङ्
चवर्ग- च् छ् ज् झ् ञ्
टवर्ग- ट् ठ् ड् ढ् ण् (ड़् ढ़्)
तवर्ग- त् थ् द् ध् न्
पवर्ग- प् फ् ब् भ् म्
2. अंतःस्थ -
यह निम्नलिखित चार हैं-य् र् ल् व्
3. ऊष्म –
ये निम्नलिखित चार हैं-
श् ष् स् ह्
संयुक्त व्यंजन अक्षर-
जहाँ भी दो अथवा दो से अधिक व्यंजन मिल जाते हैं वे संयुक्त व्यंजन कहलाते हैं, किन्तु देवनागरी लिपि में संयोग के बाद रूप-परिवर्तन हो जाने के कारण इन तीन को गिनाया गया है । ये दो-दो व्यंजनों से मिलकर बने हैं।
जैसे- क्ष = क्+ष अक्षर
त्र = त्+र त्रिगु्ण
ज्ञ = ज्+ञ ज्ञान
मुख्य बिन्दु-
कुछ लोग क्ष् त्र् और ज्ञ् को भी हिन्दी वर्णमाला में गिनते हैं, पर ये संयुक्त व्यंजन हैं। अतः इन्हें वर्णमाला में गिनना उचित प्रतीत नहीं होता।
अयोगवाह-
जो न स्वर हों और न ही व्यंजन वे अयोगवाह कहलाते हैं । इनका प्रयोग स्वर के साथ ही होता है । हिन्दी में ये मुख्यरुप से तीन ही हैं-
1. अनुस्वार-
इसका प्रयोग पंचम वर्ण के स्थान पर होता है। इसका चिन्ह (ं) है। जैसे- सम्भव=संभव, सञ्जय=संजय, गड़्गा=गंगा।
2. विसर्ग-
इसका उच्चारण ह् के समान होता है। इसका चिह्न (:) है। जैसे-अतः, प्रातः ।3. चंद्रबिंदु-
जब किसी स्वर का उच्चारण नासिका और मुख दोनों से किया जाता है तब उसके ऊपर चंद्रबिंदु (ँ) लगा दिया जाता है।
यह अनुनासिक कहलाता है। जैसे-हँसना, आँख। लेकिन आजकल आधुनिक पत्रकारिता में सुविधा और स्थान की दृष्टि से चंद्रबिन्दु को लगभग हटा दिया गया है। लेकिन भाषा की शुद्धता की दृष्टि से चन्द्र बिन्दु लगाए जाने चाहिए।
हिन्दी वर्णमाला में 11 स्वर तथा 33 व्यंजन गिनाए जाते हैं, परन्तु इनमें ड़्, ढ़् अं तथा अः जोड़ने पर हिन्दी के वर्णों की कुल संख्या 48 हो जाती है।
हलंत-
जब कभी व्यंजन का प्रयोग स्वर से रहित किया जाता है तब उसके नीचे एक तिरछी रेखा (्) लगा दी जाती है। यह रेखा हल कहलाती है । हलयुक्त व्यंजन हलंत वर्ण कहलाता है। जैसे-सतत् |
विशेष- यह वर्णमाला देवनागरी लिपि में लिखी गई है। देवनागरी लिपि में संस्कृत , मराठी , कोंकणी , नेपाली , मैथिलि भाषाएँ लिखी जाती हैं। हिंदी वर्णमाला में ऌ , ॡ का प्रयोग नहीं किया जाता है।
विशेष :- भाषा की सार्थक इकाई वाक्य हैं । वाक्य से छोटी इकाई उपवाक्य , उपवाक्य से छोटी इकाई पदबंध , पदबंध से छोटी इकाई पद , पद से छोटी इकाई अक्षर है, अक्षर को वर्ण भी कहते हैं।
जैसे :- पुन: = इसमें दो अक्षर हैं – पु , न: । लेकिन इसमें वर्ण चार हैं = प् ,उ , न , : आदि ।
वर्णों के उच्चारण स्थान
मुख के जिस भाग से वर्ण का उच्चारण किया जाता है, उसे उस वर्ण का उच्चारण स्थान कहते हैं । मुख के उच्चारण स्थान के भागों को निम्न चित्र से जानिए-
![]() |
varno ke ucharan sthan |
हिन्दी के वर्णो के उच्चारण स्थान निम्न हैं-
9. दन्तोष्ठ व
0 Comments
साथियों ! यह पोस्ट अपको कैसे लगी, कमेंट करके अवश्य बताएँ, यदि आप किसी टोपिक पर जानकारी चाहते हैं तो वह भी बता सकते हैं ।